संपादकीय : पूछताछ से परेशानी क्यों?
संदेशवाहक डिजिटल डेस्क। दिल्ली शराब घोटाले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से सीबीआई ने पूछताछ शुरू कर दी है। इस मामले में केंद्रीय जांच एजेंसियों ने पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया से न केवल पूछताछ की बल्कि गिरफ्तार भी किया है और वे फिलहाल न्यायिक हिरासत में जेल में बंद हैं। कोर्ट ने अभी तक उनको जमानत नहीं दी है। केजरीवाल ने एजेंसी के सामने पेश होने से पहले न केवल दिल्ली में अपने मंत्रियों, विधायकों व समर्थकों के जरिए विरोध प्रदर्शन कराया बल्कि एक तरह से जांच एजेंसी पर दबाव बनाने की कोशिश भी की। वे अपने ईमानदार होने का दावा भी करते रहे।
सवाल यह है कि :-
- यदि शराब नीति में कोई घोटाला नहीं हुआ है तो केजरीवाल इतने परेशान क्यों हैं?
- एजेंसी के सामने शक्ति प्रदर्शन करने की जरूरत क्यों पड़ रही है?
- क्या एजेंसियां बिना किसी सबूत के किसी को पूछताछ के लिए तलब कर सकती हैं?
- अदालतें शराब घोटाला केस में मनीष सिसोदिया को जमानत क्यों नहीं दे रही हैं?
- क्या राज्य सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोग या राजनेता कानून से ऊपर हैं?
- क्या केंद्र के इशारे पर यह कार्रवाई की जा रही है?
दिल्ली शराब नीति में अब तक जांच एजेंसियों ने न केवल कई लोगों से पूछताछ की है बल्कि कुछ को गिरफ्तार भी किया है। इसमें केजरीवाल के करीबी मनीष सिसोसिया और विजय नायर भी शामिल हैं। इनकी गिरफ्तारी के बाद से ही यह अनुमान लगाया जाने लगा था कि इसकी आंच केजरीवाल तक पहुंचेगी और आखिरकार सीबीआई ने उनको पूछताछ के लिए बुलाया लिया।
इस मामले में ईडी ने दावा किया है कि बड़े शराब कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए सौ करोड़ की रिश्वत लेकर आबकारी नीति में फेरबदल किया गया और गोवा चुनाव में इस पैसे का प्रयोग किया गया। सीबीआई और ईडी ने इस संबंध में कई सबूत भी पेश करने का दावा भी किया है। हालांकि यह अदालत के फैसले के बाद ही स्पष्ट हो सकेगा कि जांच एजेंसियों का दावा कितना सही था।
सियासी प्रदर्शन की बजाए एजेंसी के सवालों का जवाब दें
जाहिर है एक जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति को इस मामले में सियासी प्रदर्शन करने के बजाए एजेंसी के सवालों का जवाब देना चाहिए। अगर केजरीवाल के इस दावे को मान भी लें कि केंद्र के इशारे पर उनको परेशान किया जा रहा है तो उनके पास इस सवाल का क्या जवाब है कि फिर अदालतें आरोपियों को जमानत क्यों नहीं दे रही हैं।
खुद सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में विपक्ष द्वारा दायर याचिका को खारिज करते साफ कर दिया था कि नेताओं और आम आदमी के लिए अलग-अलग कानून नहीं बनाया जा सकता है। सभी कानून के समक्ष बराबर है। अब किसी प्रकार की गुंजाइश नहीं बची है।
ऐसे में जांच एजेंसियों के सवालों का न केवल जवाब दिया जाना चाहिए बल्कि अदालत के फैसलों का इंतजार भी किया जाना चाहिए। इस तरह के प्रदर्शन आम आदमी के मन में संबंधित व्यक्ति के प्रति संदेह का कारण बनते हैं जो निकट भविष्य में राजनीतिक दलों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकते हैं।
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