लखनऊ एयरपोर्ट से तस्करों के भागने का मामला, फिर ग्रुप ए अफसरों को बचा ले जाएगी IRS लॉबी
Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava: वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से, मैं एतबार न करता तो और क्या करता…वसीम बरेलवी साहब के इस शेर पर केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर और सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) बिलकुल सटीक बैठता है। तभी लखनऊ में तेजी से बढ़ रही सोने और सिगरेट की तस्करी के संगठित रैकेट की जांच की आंच में सिर्फ ग्रुप बी के कर्मी ही झुलसते हैं। ऐसा आईआरएस लॉबी के दबाव में ग्रुप ए के बड़े अफसरों को सेफ जोन में पहुंचाने की नीयत से किया जाता है।
सारा दोषारोपण सिर्फ एक हवलदार के मत्थे मढ़ने का कुचक्र
लखनऊ एयरपोर्ट पर हिरासत से 30 तस्करों की फरारी जैसे बड़े काण्ड में एक बार फिर वही कहानी दोहराई जा रही है। जिसमें तीन साल पहले इसी एयरपोर्ट पर करीब दस करोड़ के सोना तस्करी मामले में सारा दोषारोपण सिर्फ एक हवलदार के मत्थे मढ़ने का कुचक्र रचकर तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर निहारिका लाखा को मानो अभयदान दिया गया था।
असली खिलाड़ियों को बचाने के इस खेल में सिर्फ कस्टम ही नहीं डीआरआई के बड़े अफसरों की भूमिका भी संदिग्ध प्रतीत होती है। एयरपोर्ट से सोने और सिगरेट की तस्करी बिना उच्च स्तर पर बैठे अफसरों की साठगांठ के संभव ही नहीं है। तस्करों को भले पहली बार गैंग मानकर गैंगेस्टर के तहत जांच शुरू की गयी है। लेकिन इस गैंग में प्रथम दृष्टया आईआरएस अफसरों का सिंडिकेट भी प्रमुख रूप से शामिल नजर आ रहा है।
30 तस्कर भागने के मामले में छह ग्रुप बी (पांच कस्टम इंस्पेक्टर, एक महिला सुपरिंडेंटेंट) व दो हवलदार को निलंबित किया गया है। वहीं केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर भवन में बैठे आईआरएस (ग्रुप ए) अफसरों को अभी तक छुआ भी नहीं गया। आलम ये है कि इन 36 तस्करों के बाद 25 तस्कर दूसरी फ्लाइट से फिर लखनऊ एयरपोर्ट पर उतरे थे। इसके बावजूद शीर्ष पदों पर बैठे अफसर सिर्फ बेफिक्र बने रहे।
लखनऊ एयरपोर्ट पर जब सोना तस्कर पकड़े जाते हैं तो पूरी वाहवाही यही आईआरएस लूटते हैं। लेकिन जब गर्दन फंसती है, तो कस्टम में ग्रुप बी के अफसरों-कर्मियों को बलि का बकरा बनाने के लिए हमेशा आगे करने की परंपरा सीबीआईसी में शुरू से कायम है।
हाथ पर हाथ धरे बैठे थे कस्टम-डीआरआई के बड़े अफसर
बड़े आईआरएस अफसरों की लापरवाही की लम्बी फेहरिस्त है। एक अप्रैल के दिन डीआरआई की टीम ने 36 तस्करों को पकड़ा था। कस्टम अफसरों की सुपुर्दगी के बावजूद तकरीबन 48 घंटे तक कस्टम के बड़े आईआरएस अफसरों ने कोई निर्णय नहीं लिया। सिर्फ चंद ग्रुप बी अफसरों के जिम्मे तीन दर्जन तस्कर दे दिए गए। कस्टम कमिश्नर और एडिशनल कमिश्नर एयरपोर्ट इंचार्ज इतनी बड़ी लापरवाही पर अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच सकते हैं। जिन्होंने कोई बड़ा निर्णय लेना जरुरी नहीं समझा।
इसमें सिर्फ कस्टम ही नहीं डीआरआई लखनऊ जोन में उच्च स्तर पर बैठे आईआरएस अफसरों का कुप्रबंधन भी शामिल है। जिन्होंने इतने बड़े मामले को बेहद हल्के में लिया। वरना डीआरआई अफसर पहले आप पहले आप के फेर में न फंसते। तत्काल केस दर्ज करने से न सिर्फ करोड़ों के सोना-सिगरेट के तस्कर जेल की सलाखों के पीछे होते बल्कि मददगारों के नाम भी बेनकाब होते।
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