BJP-RLD Alliance: यूपी की इन 8 सीटों पर हार-जीत तय कर सकते हैं जयंत चौधरी, इसबार BJP को मिलेगा फायदा?
BJP-RLD Alliance: लोकसभा चुनाव के मद्देनज़र आए दिन नए समीकरण बनते और बिगड़ते नज़र आ रहे है. ऐसे ही एक समीकरण को बनाने में जयंत चौधरी की अहम भूमिका साबित होती दिख रही है. दरअसल, लोकसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी का साथ छोड़कर राष्ट्रीय लोक दल यानी RLD के एनडीए गठबंधन में आने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कई पार्लियामेंट्री सीटों का गणित बदल सकता है.
आरएलडी प्रमुख जयंत चौधरी ऐसा चेहरा हैं, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों समाज में स्वीकार्य हैं. ऐसे में उनका भाजपा के साथ आना समाजवादी पार्टी के लिए खतरे की घंटी माना जा रहा है. उनके आने से बसपा और सपा को साफ़ नुकसान होता दिख रहा है.
बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 27 सीटों में से बीजेपी ने 19 पर जीत हासिल की थी. बाकी की 8 सीटों पर सपा और बसपा को जीत मिली. साल 2019 में सपा और बसपा ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था, जिसका दोनों दलों को इन सीटों पर फायदा मिला और बीजेपी नहीं जीत सकी.
तो आइये समझते हैं कि आखिर RLD-BJP के साथ होने से किन सीटों पर गणित बदल सकता है
1- नगीना लोकसभा
नगीना लोकसभा सीट पर किसी एक पार्टी का कब्जा नहीं रहा है. यहां अब तक तीन बार चुनाव हुए हैं. और तीनों बार अलग पार्टी को जीत मिली. 2009 में नगीना लोकसभा सीट बनी और पहली बार चुनाव हुआ. इसमें सपा के यशवीर सिंह जीते. फिर, 2014 के चुनाव में बीजेपी के यशवंत सिंह को जीत मिली और 2019 में बसपा के गिरीश चंद्रा यहां से जीते. यहां सबसे ज्यादा आबादी मुसलमानों की है, लेकिन तीन चुनावों के नतीजें देखें तो तीनों बार हिंदू कैंडिडेट को जीत मिली है.
2- अमरोहा लोकसभा
वेस्टर्न यूपी की अमरोहा सीट पर जाट, दलित और सैनी वोटरों की संख्या ज्यादा हैं. और मुस्लिमों की 20 फीसदी आबादी है. ऐसे में जयंत चौधरी यहां बीजेपी के लिए जाट और मुस्लिम वोटरों को साधने का काम कर सकते हैं. साल 2014 में यह सीट बीजेपी के पास थी, लेकिन 2019 के चुनाव में बसपा के कुंवर दानिश अली जीत गए. हालांकि, उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया है और बसपा ने डॉ. मुजाहिद हुसैन को अमरोहा से प्रत्याशी बनाया है.
3- सहारनपुर लोकसभा
सहारनपुर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुस्लिम बहुल्य सीट है. यहां करीब 6 लाख मुस्लिम आबादी रहती है. और 3 लाख अनुसूचित जाति, 3.5 लाख स्वर्ण और 1.5 लाख गुर्जर रहते हैं. 2019 में बहुजन समाज पार्टी के हाजी फजुर्लरहमान जीते थे, लेकिन इस बार सपा-बसपा का गठबंधन नहीं है. ऐसे में जयंत चौधरी-बीजेपी के गठबंधन से यहां समीकरण बदल सकते हैं.
4- बिजनौर लोकसभा
पश्चिमी यूपी की एक और मुस्लिम बहुल लोकसभा सीट है बिजनौर। जहां पर समीकरण बदल सकते हैं. यहां 1.35 लाख मुस्लिम वोटर हैं. और 80 हजार दलित हैं. 2014 में बीजेपी ने यह सीट जीती थी, लेकिन 2019 में सपा-बसपा गठबंधन का जादू चला और सीट बसपा के मलूक नागर के पास चली गई. हालांकि, इस बार बीजेपी के साथ आरएलडी के आने से समीकरण बदलने की उम्मीद है.
5- मुरादाबाद लोकसभा
नगीना की तरह मुरादाबाद सीट पर भी किसी एक पार्टी का कब्जा नहीं रहा. 1999 से 2019 तक अलग-अलग पार्टी के उम्मीदवारों को जीत मिली है. साल 1999 में जगदंबिका पाल ने अखिल भारतीय लोकतांत्रिक कांग्रेस नाम से पार्टी बनाई और चुनाव जीत गईं. साल 2004 में सपा का कब्जा हुआ, वहीं, साल 2009 में कांग्रेस के टिकट पर पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरुद्दीन जीते और साल 2014 में यह सीट बीजेपी के पास चली गई. हालांकि, साल 2019 में सपा को यहां जीत हासिल हुई.
6- रामपुर लोकसभा
रामपुर सीट पर सपा का कब्जा रहा है. हालांकि, उपचुनाव में यह सीट बीजेपी के पास चली गई. साल 2019 में सपा के दिग्गज आजम खां ने यहां जीत दर्ज की थी. लेकिन हेट स्पीच मामले में तीन साल की सजा मिलने के बाद उन्हें यह सीट छोड़नी पड़ी. यहां मुसलमानों की 50.57 फीसदी और 45.97 फीसदी हिंदुओं की आबादी है. साल 2022 में हुए उपचुनाव में बीजेपी के राम सिंह लोधी जीते थे. बता दें कि इस सीट को आजम खां का गढ़ माना जाता है.
7- संभल लोकसभा
संभल की लोकसभा सीट पर 40 फीसदी हिंदू और 50 फीसदी मुस्लिम आबादी है. साल 1984 तक संभल लोकसभा सीट कांग्रेस का गढ़ थी. लेकिन साल 2009 में सपा के टिकट पर चुनाव लड़कर शफीकुर्रहमान बर्क ने कब्जा कर लिया. फिर 2014 में बीजेपी को जीत मिली और 2019 के चुनाव में शफीकुर्रहमान ने फिर से बाजी मार ली. हालांकि, 2024 में बीजेपी और आरएलडी गठबंधन इस सीट का गणित बिगाड़ सकता है.
8- मैनपुरी लोकसभा
उत्तर प्रदेश की मैनपुरी सीट सपा का अभेद्य दुर्ग है. मुलायम सिंह यादव यहां से चुनाव जीतते रहे हैं. लेकिन उनके निधन के बाद यह सीट खाली हो गई. इसके बाद उपचुनाव में अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव चुनाव लड़ीं और जीत गईं.
बता दें कि यहां की कुल साढ़े तीन लाख आबादी में से 1.5 लाख ठाकुर, 1.20 लाख ब्राह्मण और 1 लाख आबादी मुस्लिम और वैश्यों की है. सपा ने इस बार भी डिंपल यादव को यहां से मैदान में उतारा है. राजनीतिक पंडितों की मानें तो आरएलडी-बीजेपी गठबंधन यहां भी असर डाल सकता है.