महाघोटाला पार्ट-6: मुकेश मेश्राम ने नहीं टेके घुटने, श्रीकृष्ण बन गये थे अंसल एपीआई के एजेंट
सिंचाई विभाग की नहर की जमीनों के नक्शे खारिज करने के एलडीए के फैसले को स्थगित करके शासन ने रखी थी अरबों के घोटाले की नींव

Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava: सुल्तानपुर रोड स्थित अंसल एपीआई के टाउनशिप घोटाले की कलंक कथा लिखने वाले अफसर और नेता अभी तक सेफ जोन में हैं। हालांकि चंद ऐसे भी नौकरशाह रहे, जिन्होंने सत्ता के दबाव के बावजूद इस दागी बिल्डर के आगे घुटने टेकने से साफ इंकार कर किया।
इन अफसरों के फैसलों को पलटने का अंजाम तकरीबन दो हजार करोड़ के घोटाले के रूप में नजर आया। जिसकी जांच के आदेश खुद हाईकोर्ट ने दो साल पहले दिए थे। इस घोटाले की इबारत लिखने के लिए दागी बिल्डर ने मानो पूरा आवास विभाग ही खरीद लिया था।
तत्कालीन प्रमुख सचिव आवास की जमीनों के नक्शे पास करने में बड़ी भूमिका
हाईटेक टाउनशिप में सिंचाई विभाग की नहर की जमीन पर अंसल एपीआई ने पूंजीपतियों के लिए बड़े-बड़े भूखंड, विला सृजित करने का खाका खींचा था। नहर को पाटने के बाद शुरू हुआ घोटालों को नियमितीकरण कराने का सिलसिला। आकाओं के जरिये अंसल एपीआई ने इन भूखंडों का नक्शा स्वीकृत कराने के लिए एलडीए में पैरवी कराना शुरू किया। जिम्मा सम्भाला अंसल के दलालों में शामिल पूर्व आईएएस रमेश यादव और पूर्व पीसीएस पीएन मिश्रा जैसे भ्रष्टों ने।

2008-09 के दौरान मायावती सरकार में एलडीए में वीसी के पद पर मुकेश मेश्राम (मौजूदा प्रमुख सचिव पर्यटन) तैनात थे। जिन्होंने अंसल की मंशा पर न सिर्फ पानी फेर दिया बल्कि सिंचाई की जमीन के नहर वाले हिस्से के नक्शों को निरस्त करने में तनिक भी देर नहीं लगाई। इससे बौखलाए बिल्डर ने तत्कालीन आवास मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी से मेश्राम पर दबाव बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया। अंसल के इस दांव से भी उसकी दाल नहीं गली। जिन प्रभावशाली लोगों को सिंचाई विभाग की जमीन पर अवैध तरीके से बसाने की साजिश रची गयी थी। उनमें आईएएस, आईपीएस, पीसीएस, प्रभावशाली नेताओं से लेकर रिटायर जजों के नाम शामिल थे।
एलडीए वीसी के अर्दब में न आने पर अंसल के दलाल पीएन मिश्रा और रमेश यादव ने इसके बाद तत्कालीन लखनऊ मंडलायुक्त विजय शंकर पांडेय का दरवाजा खटखटाया। यहां भी उनके अरमान नहीं पूरे हुए। जिसके बाद अंसल ने सीधे आवास विभाग में एलडीए के फैसले के खिलाफ अपील की। तत्कालीन प्रमुख सचिव आवास श्रीकृष्ण तो मानो अंसल के एजेंट बनकर इन्तजार कर रहे थे।
नतीजतन शासन में बैठे अफसरों ने झट सिंचाई विभाग की नहर की जमीन पर नक्शे स्वीकृत करने को हरी झंडी दिखाते हुए एलडीए के फैसले को स्थगित (सेट असाइड) कर दिया। ख़ास बात ये है कि उत्तर प्रदेश शहरी नियोजन एवं विकास अधिनियम 1973 के मुताबिक शासन के फैसले के खिलाफ कहीं अपील भी नहीं हो सकती है। लिहाजा एलडीए के पास दूसरा विकल्प भी नहीं बचा। सिंचाई की जमीनें हड़पने के घोटाले का नियमितीकरण अफसरों की साठगांठ से करवा दिया गया।
नसीमुद्दीन ने कहा था-मिस्टर वीसी, हम जानते हैं उड़ती चिडिय़ा के पर कतरना
सुल्तानपुर रोड स्थित सुशांत गोल्फ सिटी के अंदर किये जा रहे अंसल एपीआई के महाघोटाले को सत्ता शिखर पर बैठे नेताओं का व्यापक समर्थन प्राप्त था। एलडीए के पुराने अफसर सुर्खियों में रहा एक चर्चित किस्सा बताते हुए कहते हैं कि मायावती सरकार के दौरान तत्कालीन आवास मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने भी अंसल जैसे दागी बिल्डर की पैरोकारी के लिए तत्कालीन एलडीए वीसी मुकेश मेश्राम पर दबाव डालना चाहा था।
नसीमुद्दीन ने अंसल के दबाव में नहर की जमीनों के नक्शे न स्वीकृत करने पर मेश्राम से यहां तक कहा था कि मिस्टर वीसी जबसे आये हैं, आपके पर बहुत निकल आये हैं। उड़ती चिडिय़ा के पर कतरना हम बहुत अच्छे से जानते हैं। हालांकि वीसी रहे मुकेश मेश्राम ने सिद्दीकी से साफ तौर पर कहा कि आपका बहुत बहुत शुक्रिया, मेरा ट्रांसफर करा दें, मैं एक किलो मिठाई दूंगा।
बाद में आए एक भी प्रमुख सचिव आवास ने नहीं ली सुध
2008-09 के बाद शासन में आवास विभाग के मुखिया बनकर कई वरिष्ठ आईएएस अफसर आये। लेकिन एक भी प्रमुख सचिव ने अंसल के घोटालों पर शिकंजा कसना मुनासिब नहीं समझा। वहीं सिंचाई विभाग की नहर की जमीन पर नक्शों की मंजूरी के तथ्य से लगभग हर प्रमुख सचिव वाकिफ था। इसके बावजूद किसी ने शासन के फैसले की पुनः समीक्षा करने की जहमत नहीं उठायी। ख़ास बात ये है कि बाद में आये प्रमुख सचिव सदाकांत जैसे अफसरों ने भी अंसल के लिए रेड कार्पेट बिछाकर बिल्डर के प्रोजेक्टों को खूब फायदा पहुंचाया।
एनसीएलटी के आदेश को यूपी रेरा देगा चुनौती
अंसल एपीआई के निवेशकों के हित सुरक्षित रखने को यूपी रेरा ने पहल की है। नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (एनसीएलटी) के आदेश को रेरा चुनौती देने जा रहा है। इसके लिए दिवालियापन समाधान प्रक्रिया (आईआरपी) को रेरा ने अंसल के खिलाफ जारी सभी सभी वसूली प्रमाणपत्रों और लंबित आदेशों की प्रतियां भेजी हैं। यूपी रेरा के अध्यक्ष संजय भूसरेड्डी के मुताबिक आईबीसी कानून लागू होने के बाद ये पहला मामला है जिसमें यूपी रेरा एनसीएलटी में आईए फाइल कर रहा है।
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