Barabanki: महिला थाना या समझौतों की दुकान, डेढ़ महीने से एक भी केस दर्ज नहीं!
बाराबंकी पुलिस लाईन (Barabanki Police Station) स्थित जि़ले के एक मात्र महिला थाने में साफ़ सफाई तो है लेकिन कुछेक पान की पीक भी दीवारें पर दिख जाती हैं, यह मर्दों की उपस्थिति का संकेत भी कराती हैं।
Sandesh Wahak Digital Desk: बाराबंकी पुलिस लाईन (Barabanki Police Station) स्थित जि़ले के एक मात्र महिला थाने में साफ़ सफाई तो है लेकिन कुछेक पान की पीक भी दीवारें पर दिख जाती हैं, यह मर्दों की उपस्थिति का संकेत भी कराती हैं। चेन से बंधा हुआ आगमन गेट भी आपका स्वागत करता हैं जिससे अंदर जाने के लिए कड़ी मशक्क़त करनी पड़ती है। देखकर लगता है जैसे मर्द और वर्षों से चली आ रही मर्दाना सोच महिला थाने पर भी हावी है। 27 साल की वर्षा (बदला हुआ नाम) कई महीनों से कोर्ट के चक्कर लगा रही हैं उनका आरोप हैं कि उनके होने वाले पति ने शादी से पहले ही उनके साथ जबरन शारीरिक संबंध बनाए।
6 महीने की कोशिश के बाद एफआईआर
वर्षा का कहना है कि वे शिकायत लेकर महिला थाने गईं लेकिन वहां उनकी शिकायत दर्ज नहीं हुई उन्हें कोर्ट के चक्कर काटने पड़े और 6 महीने की कोशिश के बाद बीते महीने मामले की एफआईआर हुई। वर्षा कहती हैं मैं जब थाने गई तो महिला पुलिसकर्मियों ने मुझे उसी लडक़े से ही शादी कर लेने की सलाह दी, वो यहां कानून का पालन करने के लिए हैं या समझौता करवाने के लिए। मुझे इस बात का अहसास कराया गया कि जैसे जुर्म मैंने ही किया है मेरा पूरा एक साल इस चक्कर में बर्बाद हो गया और लडक़ा आज भी खुलेआम घूम रहा है।
महिला थाना को खोलने का मक़सद महिलाओं को जल्द न्याय दिलाना था लेकिन महिला एक्टीविस्टों की मानें तो नतीजा शून्य रहा। कार्य गुज़ारी का अंदाज़ा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि बीते अप्रैल महीने में महिला थाने में एक भी केस दर्ज नहीं किया गया और आधा मई 2023 भी बीत गया।
बकौल महिला एक्टीविस्ट और अधिवक्ता और जिला बार एसोसिएशन की महामंत्री शाहीन अख़्तर कहती हैं महिला थाने में सिर्फ सुलह पर विशेष जोर रहता है कोई प्रथम सुचना रिपोर्ट दर्ज होने वाली होती भी है तो उसे सम्बंधित थाने में भेज दिया जाता है और अपना पल्ला झाड़ लेते है जिसका मुख्य कारण है विवेचना और काम से बच जाएं।
कांउसलिंग के जरिए रास्ता निकालने की कोशिश
बाराबंकी पुलिस लाइन (Barabanki) स्थित महिला थाने की प्रभारी आशा शुक्ला इस बात को खारिज करती है कि ‘थाने पुरुष मानसिकता के साथ काम कर रहे हैं’ वो कहती हैं हमारे पास ज्य़ादातर मसले पति-पत्नी के झगड़े के आते हैं। ज्य़ादातर महिलाएं समझौता चाहती हैं इसलिए हम कांउसलिंग के जरिए रास्ता निकालने की कोशिश करते हैं, जिस मामले में ये संभव नहीं वहां शिकायत दर्ज होती है।
पुलिस क्षेत्राधिकारी शहर डॉ बीनू सिंह कहती हैं- महिला थाने में पूरी प्राथमिकता दी जाती है की कोई फरियादी अथवा पीड़ित न्याय से वंचित न रह जाए।प्राथमिकता के आधार पर पूरी कोशिश की जाती है किसीका परिवार न टूटे, ज्यादातर प्रथम सूचना रिपोर्ट सम्बंदित थाने में दर्ज कराई जाती है ताकि पीड़ित को परेशान न होना पड़े।
थाने में तीन उपनिरीक्षक, एक हेड कांस्टेबल, दो हेड मुअररिर, दो कांस्टेबल, 21 महिला पदाधिकारियों और कर्मचारियों की तैनाती है इसके अलावा सहित चौकी में 1 पुरुष सब इंस्पेक्टर, दो हेड कांस्टेबल और 10 आरक्षी तैनात हैं जो हर माह वेतन लेते हैं। ड्राइवर हैं पुरुष पदाधिकारी की तैनाती के सवाल पर महिला थानाध्यक्ष कहती हैं हमें अगर किसी पुरुष को पकडऩा है तो हमें पुरुष कर्मचारी चाहिए ही।
क्या कहती है महिलाएं?
इस सब के बीच बाराबंकी जिले (Barabanki) की महिलाओं की अलग-अलग राय है। मानसी यादव एक महाविद्यालय में प्रशासनिक प्रमुख के तौर पर कार्य कर रही हैं, वो कहती हैं हमारे यहां महिला थाना ठीक ठाक काम कर रहा है लेकिन मैं जब भी किसी महिला पुलिसकर्मी को देखती हूँ तो ज्य़ादा सहज महसूस करती हूँ मुझे लगता है कि अगर महिला थाने में सिर्फ महिलाएं हों, तो वहां हमारा कंफ़र्ट लेवल बढ़ जाएगा, महिला थाने में पुरुष नहीं होने चाहिए।
हालांकि ऋतु वर्मा इससे इत्तेफाक नहीं रखती ऋतु ब्यूटी पार्लर चलाती हैं वो कहती हैं महिला थाने में औरतों से उम्मीद की जाती है कि घर बचाना है तो वो थोड़ा एडजेस्ट करके रहें अगर एडजेस्ट कराना ही आपकी प्राथमिकता है तो फिर पुरुष थाने ही रहने देते, ये अलग से महिला थाना क्यों खोला? ऋतु जैसी महिलाओं का ये जवाब जनपद में महिला थाने पर कई सवाल छोड़ जाता है।
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