एशियाई विकास बैंक ने भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान घटाकर 6.5 प्रतिशत किया
Sandesh Wahak Digital Desk : एशियाई विकास बैंक (एडीबी) ने बुधवार को भारत के लिए आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 7 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत कर दिया है। यह संशोधन निजी निवेश और आवास की मांग में उम्मीद से कम वृद्धि के कारण किया गया है। इसके साथ ही, एडीबी ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए भी भारत के विकास पूर्वानुमान को घटा दिया है।
एडीबी के नवीनतम एशियाई विकास परिदृश्य (एडीओ) रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी व्यापार, राजकोषीय और आव्रजन नीतियों में संभावित बदलावों के कारण विकासशील एशिया और प्रशांत क्षेत्र की आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है, जिससे महंगाई में वृद्धि की संभावना है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया और प्रशांत क्षेत्र की अर्थव्यवस्थाएं 2024 में 4.9 प्रतिशत की दर से बढ़ सकती हैं, जो पहले अनुमानित 5 प्रतिशत से थोड़ा कम है। एडीबी ने भारत के विकास पूर्वानुमान में कटौती के बारे में बताया कि “निजी निवेश और आवास की मांग में अपेक्षित वृद्धि की कमी के कारण भारत का विकास परिदृश्य इस वर्ष के लिए 7 प्रतिशत से घटाकर 6.5 प्रतिशत और अगले वर्ष के लिए 7.2 प्रतिशत से घटाकर 7 प्रतिशत कर दिया गया है।”
इससे पहले भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने भी चालू वित्त वर्ष के लिए अपनी वृद्धि दर के अनुमान को 7.2 प्रतिशत से घटाकर 6.6 प्रतिशत कर दिया था। आरबीआई ने मुद्रास्फीति का अनुमान भी बढ़ाकर 4.8 प्रतिशत कर दिया है, जो खाद्य पदार्थों की कीमतों में तेजी और आर्थिक मंदी के प्रभाव को दर्शाता है।
भारत की आर्थिक वृद्धि मजबूत बनी रहेगी
हालांकि, एडीबी ने यह भी कहा कि भारत की आर्थिक वृद्धि मजबूत बनी रहेगी, क्योंकि उच्च कृषि उत्पादन से अर्थव्यवस्था को समर्थन मिलेगा। इसके अलावा, सेवा क्षेत्र में निरंतर लचीलापन और कम ब्रेंट क्रूड की कीमतों के चलते 2024 और 2025 में आर्थिक गतिविधियों में सुधार की संभावना है।
रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया कि दक्षिण-पूर्व एशिया की वृद्धि दर इस वर्ष 4.7 प्रतिशत तक पहुंचने का अनुमान है, जो पहले 4.5 प्रतिशत थी, और इसका कारण मजबूत विनिर्माण निर्यात और सार्वजनिक पूंजीगत व्यय है।
चीन के लिए एडीबी ने इस वर्ष के लिए विकास दर का अनुमान 4.8 प्रतिशत और अगले वर्ष के लिए 4.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा है। एडीबी के अनुसार, एशिया और प्रशांत क्षेत्र में आर्थिक वृद्धि अगले दो वर्षों में स्थिर रहेगी, लेकिन अमेरिकी नीतियों में बदलाव का दीर्घकालिक असर क्षेत्रीय आर्थिक दृष्टिकोण पर पड़ सकता है।