महाघोटाला पार्ट-3: टाउनशिप के मायाजाल से अंसल ने हड़पा करोड़ों का स्टांप शुल्क
मदर सिटी भाग का भू-उपयोग बदलने से इंकार पर दो मंडलायुक्तों की हुई थी विदाई

Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava: सुल्तानपुर रोड स्थित अंसल एपीआई की सुशांत गोल्फ सिटी टाउनशिप में घोटालों को नियमितीकरण का चोला पहनाने में एलडीए अफसर और इंजीनियर हमेशा आगे रहे। खासतौर से मास्टरप्लान को ताख पर रखते हुए न सिर्फ अवैध निर्माणों का भूउपयोग बदला गया बल्कि बड़े पैमाने पर एक अरब से ऊपर के स्टाम्प शुल्क का झटका यूपी सरकार को दिया गया। इन फर्जीवाड़ों को अमलीजामा पहनाने के लिए चुनिंदा अफसरों का सिंडिकेट तैनात था। इनके आड़े जो भी अफसर आया, झट हटा दिया गया। ख़ास बात ये है कि अंसल ने एससी की जमीन लेने के लिए जो कंसोर्टियम बनाया था। उसके जरिये बड़े पैमाने पर खेल किये गए। अंसल के घोटाले की विस्तृत जांच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए। जिससे सिंडिकेट में शामिल चेहरों को बेनकाब किया जा सके।

संजीव दुबे ने मना किया तो हटा दिए गए
तकरीबन 11 वर्ष पहले एलडीए के तत्कालीन वीसी राजीव अग्रवाल के कार्यकाल में बोर्ड बैठकों के जरिये अंसल एपीआई को सैकड़ों करोड़ का लाभ पहुंचाया गया। अखिलेश सरकार के दौरान 2013 में एलडीए की बोर्ड बैठक रखी गयी थी। इसमें हाईटेक टाउनशिप के मदरसिटी भाग की 15.071 हेक्टेयर भूमि (भूउपयोग वाहन क्रय-विक्रय केन्द्र) व 87.47 हेक्टेअर भूमि (भूउपयोग सामाजिक/सांस्कृतिक/शोध संस्थाएं एवं सेवाएं) को आवासीय करने का कुचक्र रचा गया। बोर्ड बैठक के जरिए अंसल के घोटालों का नियमितीकरण करने से तत्कालीन बेहद ईमानदार मंडलायुक्त संजीव दुबे ने साफ तौर पर मना कर दिया। दुबे ने अपने रुख को सरकार और शासन के शिखर पर बैठे कर्णधारों तक पहुंचा दिया था। इसके बाद वही हुआ, जिसका अंदेशा था। उनकी मंडलायुक्त के पद से झट विदाई करा दी गयी। इसी बैठक में कई वर्षों से बिना भूउपयोग संचालित हो रहे विदेशी स्टोर वालमार्ट का भी नियमितीकरण होना था। दुबे लगातार एलडीए की बोर्ड बैठक को टाल रहे थे।

देवेश चतुर्वेदी ने लखनऊ के मंडलायुक्त का कार्यभार ग्रहण करने से किया था मना
व्यावसायिक स्टोर का भूउपयोग नियम विपरीत आवासीय कराने का खाका खींचा गया था। इसके बाद बेहद ईमानदार आईएएस अफसरों में शुमार देवेश चतुर्वेदी को लखनऊ के मंडलायुक्त के पद पर तैनाती दी गयी। लेकिन आईएएस देवेश ने दो दिनों के भीतर ही तत्कालीन मुख्य सचिव जावेद उस्मानी से मिलकर कार्यभार ग्रहण करने से स्पष्ट मना कर दिया। उन्हें भी अंसल के भूउपयोग घोटालों का नियमितीकरण एलडीए की बोर्ड बैठक के जरिये किये जाने की भनक लग चुकी थी। तत्कालीन वीसी राजीव अग्रवाल की मंशा फिर अधूरी रह गयी। शासन ने देवेश चतुर्वेदी को वापस प्रयागराज मंडलायुक्त के पद पर बरकरार रखा और लखनऊ मंडलायुक्त के पद पर किया तबादला निरस्त कर दिया।

दागी संजीव सरन को बनाना पड़ा था लखनऊ का मंडलायुक्त
एलडीए की बोर्ड बैठक के जरिये अंसल एपीआई के लिए जो भूउपयोग बदला जा रहा है। उसका शुल्क करीब 90 करोड़ के आसपास था। पैसा एलडीए के खाते में पहुंचा या नहीं, ये भी कोई अफसर स्पष्ट बताने को तैयार नहीं है। लखनऊ के मंडलायुक्त के पद से मानो दो वरिष्ठ ईमानदार आईएएस अफसरों की विदाई होने के बाद अंसल के मददगारों ने दागी आईएएस संजीव सरन को आगे बढ़ाया। संजीव को लखनऊ मंडलायुक्त के पद पर तैनाती दे दी गयी। इस दागी आईएएस को बिठाकर नौकरशाही ने अंसल की राह में कोई कांटा नहीं आने दिया।
कंसोर्टियम के जरिये जमीनों की खरीद फरोख्त में फर्जीवाड़ा
इसी तरह एससी की जमीनें लेने के लिए जो कंसोर्टियम बनाया गया था। उसमें दो फीसदी स्टाम्प ड्यूटी नियमों के मुताबिक लगाई जानी चाहिए थी। लेकिन सिर्फ हजार और पांच सौ रुपयों के स्टाम्प पर जमीनों की खरीद फरोख्त होती रही। प्रथम दृष्टया इसमें करीब सौ करोड़ से ऊपर की स्टाम्प चोरी होने की प्रबल संभावना है। माना जा रहा है कि 1100 एकड़ भूमि अंसल ने बिना खरीदे ही बेच डाली है। विस्तृत जांच के बाद ही पूरी सच्चाई सामने आ सकती है। दस्तावेजों में अभी भी एससी के लोगों का नाम चढ़ा हुआ है।
ऐसे में जिनको प्लाट दिए गए। वे खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। अनुबंध रजिस्टर्ड न किये जाने से करोड़ों के राजस्व की तगड़ी चपत लगाई गई। प्लॉट और फ्लैटों के पुन: विक्रय पर भी अंसल ने खूब पैसा कमाया, सरकार का राजस्व दबा गया।
बसपा सरकार के दौरान हुए कई घोटालों से घिरे इंजीनियरों को हाईटेक इंटीग्रेटेड टाउनशिप का जिम्मा सौंपा गया था। रिटायर इंजीनियर ओपी मिश्रा और आरके शुक्ला से लेकर तत्कालीन संयुक्त निदेशक भूमि अर्जन एसबी मिश्रा का नाम इनमें प्रमुख है।
संदेशवाहक के खुलासे के बाद आवास विकास सक्रिय, रजिस्ट्री पर लगाई रोक
सन्देश वाहक के खुलासे के बाद आवास विकास परिषद के अफसर सक्रिय हो गए हैं। अंसल के ऊपर 53 करोड़ के बकाये को डूबने से बचाने के लिए बंधक जमीन की किसी अन्य को रजिस्ट्री और नक्शा पास करने से रोकने लिए निबंधन विभाग और एलडीए को भी पत्र लिखा गया है।
उप्र आवास विकास परिषद के आयुक्त बलकार सिंह के अनुसार डिवेलपमेंट चार्ज वसूलने के लिए अंसल एपीआई को आरसी जारी की गयी। रकम जमा नहीं होने पर अब आगे की कार्यवाही होगी। बंधक जमीन पर कोई काबिज नहीं है और न ही किसी को रजिस्ट्री हुई है।
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