अखिलेश यादव की मंशा : मध्य प्रदेश का बदला या तीसरी ताकत का दबाव
यूपी में विपक्ष का इण्डिया गठबंधन धराशायी, सपा और कांग्रेस के बीच सियासी तलाक की इबारत तैयार
Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava : पीएम नरेंद्र मोदी को लखनऊ से गए 24 घंटे भी न बीते थे, यूपी में कांग्रेस और सपा के बीच सियासी तलाक की इबारत तैयार हो गयी। इसके लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने दिन भी ऐसा चुना, जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा अपने अहम पड़ाव यानि यूपी की राजधानी लखनऊ में आनी थी।
ऐसा लगा मानो विपक्ष के इण्डिया गठबंधन को अलविदा कहने की स्क्रिप्ट पूरी तैयार है, बस सार्वजनिक करना बाकी था। सियासी संकेतों की माने तो पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ऐसा करके या तो मध्य प्रदेश चुनाव के दौरान कांग्रेस से हुए विवाद का जवाब दे रहे हैं या फिर किसी तीसरी ताकत के दबाव में विपक्षी एकता को धराशायी करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते।
सपा प्रमुख पर बीजेपी को मदद करने के आरोप
अन्यथा एक एक करके सीटों के फेर में फंसाने की दुहाई देकर अखिलेश अपने सियासी दोस्तों को दूर नहीं करते। सपा प्रमुख के ऊपर अंदरखाने से भाजपा की मदद करने के आरोप भी लगने शुरू हो गए हैं। तभी मंगलवार को प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के गृह जनपद की वाराणसी सीट से भी उन्होंने सपा प्रत्याशी के तौर पर पूर्व मंत्री सुरेंद्र सिंह पटेल को उतार दिया है।
सिर्फ यही नहीं सपा प्रमुख अखिलेश जिस अंदाज में कांग्रेस के ऊपर 17 सीटों की पेशकश पर उदासीन रवैया अख्तियार करने का आरोप लगा रहे हैं। उसमें भी कई सियासी पेंच हैं। सुनियोजित रणनीति के तहत सपा ने कांग्रेस को उन सीटों पर लडऩे का प्रस्ताव दिया, जहां उसकी स्थिति पहले से कमजोर है।
जहां कांग्रेस पिछले चुनावों में दूसरे नंबर पर भी रही, उसे वहां से भी सियासी ताल ठोंकने देने से परहेज किया गया। कानपुर में पिछले चुनाव में भी कांग्रेस उम्मीदवार श्रीप्रकाश जायसवाल दूसरे नंबर पर रहे थे। सपा उम्मीदवार को कानपुर में 50 हजार वोट भी नहीं मिले थे, इसके बावजूद सपा ने इस सीट पर अपनी दावेदारी पेश की।
सपा ने कांग्रेस को नहीं दी सहारनपुर सीट
वहीं कांग्रेस सहारनपुर सीट से चुनाव लड़ना चाहती थी, लेकिन अखिलेश यादव ने यह सीट भी नहीं दी। पिछले चुनाव में सहारनपुर से हाजी फजलुर्रहमान ने सपा-बसपा गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की थी, लेकिन इमरान मसूद यहां से कांग्रेस के मजबूत प्रत्याशी थे और तीसरे नंबर पर रहे थे।
इस बार यदि सपा-कांग्रेस गठबंधन का उम्मीदवार यहां से उतरे तो उसकी जीत की संभावना बन सकती है। इसी तरह लखनऊ की सबसे अहम सीट पर सपा और कांग्रेस दोनों अपना दावा छोडऩे को तैयार नहीं हैं। दोनों दलों के बीच यूपी में इण्डिया गठबंधन के खत्म होने का एलान मात्र औपचारिकता भर रह गया है।
सब सोची-समझी स्क्रिप्ट थी, जिसे पढ़ रहे थे अखिलेश
कांग्रेस नेताओं के मुताबिक अखिलेश यादव किसी दबाव में काम कर रहे हैं। यदि गठबंधन को मजबूत करने की सोच होती, तो जो दल जहां मजबूत है, उसे वहीं से सीटें ऑफर की जातीं। इससे भाजपा को रोकने में कामयाबी मिलती। उन्होंने कहा, सब सोची-समझी स्क्रिप्ट थी, जिसे अखिलेश यादव पढ़ रहे थे। उन्हें जांच एजेंसियों का डर भी सता रहा है।
सुभासपा अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने तो साफ़ कहा कि अखिलेश पूरी तरह भाजपा से मिले हुए हैं और दिल्ली से संचालित हो रहे हैं। वहीं सपा नेताओं के मुताबिक 2017 में कांग्रेस से गठबंधन ने बेहद निराश किया था। इसलिए अखिलेश कोई रिस्क नहीं लेना चाहते।
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