मिल्कीपुर में जीत-हार पर मंडरा रहा भितरघात का साया, भाजपा की ‘फौज’ से सपा खेमे में खलबली
Sandesh Wahak Digital Desk/Prem Kishore Tiwari: मिल्कीपुर विधानसभा क्षेत्र की मूलभूत समस्याएं सुरसा की तरह मुंह फैलाकर जनता को लीलने को तैयार है। उधर प्रत्याशी व उनकी पार्टियां जातीय बंटवारे पर सारा जोर लगाए हैं।
सुरक्षित सीट पर भाजपा व सपा ने कूटनीतिक दांव-पेच में माहिर स्वजातीय नेताओं को जोड़-तोड़ में लगा रखा है। जबकि सपा व भाजपा दोनों ही भितरघात के डर से हलकान है। पंथ के तकाजे के बाद जाति में भी उपजाति तलाशने का करिश्मा राजनीति नहीं, कूटनीति ही कर सकती है। यही डिवाइड एंड रूल की पॉलिटिक्स इस चुनाव में भी बलवती हो उठी है। इस पर दोनों दल मतदाताओं की नब्ज टटोल रहे हैं, पर कम पढ़ा-लिखा फटेहाल वोटर भी कम चालाक नहीं है।
अवधेश प्रसाद के हवाले चुनाव की जिम्मेदारी
उधर नेताओं व मंत्रियों की धमाचौकड़ी से जिले के छोटे से लेकर बड़े अफसर तक मानसिक दबाव में बने हैं। सपा ने तो मिल्कीपुर विधान सभा क्षेत्र को सांसद अवधेश प्रसाद के हवाले पहले से ही कर रखा है। 2022 में अवधेश प्रसाद यहां बाबा गोरखनाथ को हराकर विधायक बने थे। इसके बाद वह अयोध्या से सांसद बन गए तो समाजवादी पार्टी ने इनके पुत्र पर विश्वास जताया और चुनाव में अपने दल से उतार दिया। सपा को अपने ही दल के बागी सूरज चौधरी द्वारा सपाई वोटबैंक में सेंध मारने का डर सता रहा है।
माना जा रहा है कि आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी सूरज चौधरी को जो वोट मिलेगा वह सपा का ही ज्यादा होगा। वहीं कुछ ऐसे सपाई भी हैं जो प्रत्याशी अजीत प्रसाद के हारने पर अपना रास्ता साफ होने का इंतजार कर रहे हैं। सपा की इस तरह के नेताओं पर भी नजर है। वहीं भाजपा के बाबा गोरखनाथ एक बार चुनाव जीतकर अपने अनुभव का परिचय दे चुके हैं। गत चुनाव में भी बाबा गोरखनाथ गले बराबर समाजवादी पार्टी से लड़े।
भाजपा में टिकट की दौड़ में नंबर वन पर चल रहे बाबा आखिर में मात खा गए। इसी तरह पैनल में चार और नाम भी थे, जिन पर भाजपा हाईकमान ने विचार नहीं किया। यह दावेदार भले ही अनुशासन या शासन के तकाजे से विरोध न करें, लेकिन इनकी उपेक्षा इन नेताओं के साथ समर्थकों का उत्साह जरूर कम कर सकती है।
बीजेपी ने झोंकी पूरी ताकत
दूसरी तरफ सपा को पिछले उपचुनाव में सरकारी तंत्र के रवैये का कड़वा अनुभव भी साल रहा है। समाजवादी पार्टी निर्वाचन आयोग से भी इस तरह की आशंका जता चुकी है। इधर आधा दर्जन भर मंत्रियों की फौज व कद्दावर नेताओं के निर्वाचन क्षेत्र में डेरा डालने से अफसरों की जान सांसत में बनी है।
भाजपा ने अगड़ी, पिछड़ी, दलित जाति के ठेकेदार नेताओं को बिरादरी के बीच जाकर भाजपा और कमल निशान को न बिसराने का आग्रह करने का महत्वपूर्ण दायित्व सौंप रखा है। यह भी अफसरों की तरह चुनावी इम्तिहान को पास करने की कोशिश में लगे हैं। साथ ही उन्हें इस बात के लिए प्रेरित कर रहे हैं कि वह भी उनकी ही तरह रिश्तेदारों व मिलने वालों के बीच जाकर भाजपा को वोट दिलाने की कोशिश में लग जाएं।
जनता के मुद्दे चुनावी चकाचौंध में गुम
यूं तो चुनाव लडऩे के पीछे जनता के हितों की दुहाई दी जा रही है, लेकिन इसके पीछे छिपी राजनीति तो चुनाव जीतने की होती है। चुनाव लड़ रही पार्टियों का फोकस जनता से ज्यादा जातीय पंचायतों पर है। मोहल्ला-टोला में जाति पूछकर उनकी ही जाति के नेता जी जाते हैं और बिरादरीवाद की दुहाई देते हैं। वहीं चुनाव की चकाचौंध कर देने वाली रोशनी में बिजली-सडक़-पानी की समस्या किसी को भले नजर न आए पर जनता को नजर आती हैं। हूटर की चीखती आवाजें रह-रह कर गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई में जी रहे लोगों को सिर्फ चौंका रही हैं।
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