Delhi Election 2025: पूर्वांचल के दबदबे वाली 27 सीटों के ‘मोहजाल’ में उलझी राजनीति
आम मतदाता देख रहा अपनी भलाई, राजनीतिक दल क्षेत्रवाद के पचड़े में फंसा रहे
Sandesh Wahak Digital Desk/Prem Kishore Tiwari: दिल्ली का तख्त-ओ-ताज राजनीतिक दलों के लिए कितना मायने रखता है, इसका प्रमाण यहां के ताजा हालात हैं। किसी नेता के जुबान पर कोई अंकुश नहीं रह गया। मर्यादा तो हर चुनाव की तरह दिल्ली में भी तार-तार हो रही है। आप नेता अरविंद केजरीवाल हैट्रिक लगाकर कथित शीशमहल पाने को बेताब हैं तो इस महल को पाने की हसरत भाजपाइयों के मन में भी हिलोरें मार रही है।
इसके लिए दोनों ही दलों के लिए जरूरी है कि वह पूर्वांचल बाहुल्य वाली 27 सीटों पर अपना वर्चस्व जीत के रूप में कायम कर सकें। इसमें 16 सीटों पर जीत पूरी तरह पूर्वांचल के मतदाताओं का दबदबा है , लेकिन शेष 11 सीटों पर भी पूर्वांचल के मतदाता निर्णायक भूमिका में है। 70 सीटों वाली विधान सभा में यह बड़ा नंबर है, जो चुनावी तस्वीर बदल सकता है।
आप नेता केजरीवाल की जुबान पर यूपी-बिहार आया तो भाजपा ने मुद्दा बनाया
दिल्ली में आप और भाजपा दोनों जनता के हितों के मुद्दों से इतर सिर्फ छिद्रान्वेषण करने में लगे हैं। यूपी-बिहार से लाकर फर्जी मतदाता बनाने के बयान के पीछे केजरीवाल की मंशा जो भी रही हो पर भाजपा ने उसे पूर्वांचल के मतदाताओं के अपमान से जोडक़र ‘जंग’ छेड़ दी। त्रेता युग में महाभारत के दौरान कौरव सेना के महारथी द्रोण को इसी अर्धसत्य के आधार पर धराशायी किया गया था।
यहां महाभारत का उल्लेख इसलिए भी प्रासंगिक है कि तब भी पूरा सत्य जाने बगैर कौरव सेना का एक मजबूत स्तंभ गिरा था और दिल्ली चुनाव में भी यही दोहराया जा रहा है। पूर्वांचल मुद्दे को लेकर आंदोलनरत भाजपा केजरीवाल के बयान का पूरा सत्य आम आवाम तक पहुंचने देने के बजाय उसे क्षेत्रवाद की ओर ले जा रही है।
भाजपा को जिसका था इंतजार वही मौका हाथ लग गया
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने शीतकालीन सत्र के दौरान सदन में आरोप लगाया था कि दिल्ली में भाजपा पूर्वांचल के वर्षों से रह रहे लोगों के नाम मतदाता सूची से कटवाकर अपने लोगों का जुड़वा रही है। इसी बात को लेकर आप ने निर्वाचन आयोग में शिकायत भी दर्ज कराई है। अब इसी के उलट अरविंद केजरीवाल के फर्जी मतदाताओं को यूपी-बिहार से जोडऩे के बयान से दिल्ली में ‘सियासी भूचाल’ आ गया है।
और तो और भाजपाइयों के आंदोलन से कानून-व्यवस्था को कायम रखना भी बड़ी चुनौती बनी हुई है। दरअसल, यह सारी जद्दोजहद दिल्ली विधान सभा की 27 सीटों पर कब्जा करने की रणनीति का हिस्सा है। दिल्ली में लोकसभा चुनाव में सबके टिकट कट गए, लेकिन मनोज तिवारी बच गए। यह भी पूर्वांचल मतों पर कब्जा करने की भाजपा की दूरदर्शी नीति का परिणाम थी।
विधानसभा की सीटों पर अधिकाधिक कब्जे की राजनीति ने हर दल के नेता को जुबान पर कंट्रोल खत्म कर दिया। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बार-बार केजरीवाल को धोखेबाज कहा तो टीवी डिबेट में आप नेता प्रियंका कक्कड़ ने बीजेपी को बहुत झूठा पार्टी की संज्ञा दी। बहरहाल, भाजपा को आम आदमी पार्टी ने पूर्वांचल विरोधी होने का मुद्दा थाली में परोस कर दे दिया। भाजपा अब उसे चबा-चबा कर खा रही है और आम आदमी पार्टी सफाई दे रही है कि यह अधर्सत्य है।
पिछले तीन चुनावों में कितनी सीटें मिली थी?
दिल्ली विधान सभा के पिछले तीन चुनावों का जिक्र करें तो 2013 में आप को 11, भाजपा को 13 और कांग्रेस को 03 सीटें मिली थीं। 2015 के चुनाव में आंकड़े बदल गए। आप ने 27 में 25 सीटों पर जीत दर्ज कर सबको बुरी कदर पछाड़ दिया। भाजपा को इस बार सिर्फ दो सीटें ही मिलीं। उसे पिछले चुनाव की तुलना में 11 सीटें खोने के बाद सिर्फ दो सीटों पर संतोष करना पड़ा।
कांग्रेस का खाता ही नहीं खुला। 2020 में आम आदमी पार्टी ने पिछली बार की तुलना में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकी। उसको तीन सीटों का नुकसान उठाना पड़ा और 22 सीटें ही वह हासिल कर सकी। हालांकि 22 का अंक भी आप की मजबूत स्थित को दर्शाता है, लेकिन भाजपा ने भी अपनी स्थिति पिछले चुनाव की तुलना में मजबूत की। भाजपा ने 05 सीटों पर कब्जा किया। कांग्रेस इस बार भी खाता नहीं खोल सकी।
Also Read: ‘विकसित भारत युवा नेता संवाद’ कार्यक्रम में पहुंचे PM मोदी, 3 हजार यंग लीडर्स से करेंगे संवाद