‘मुखिया जी’ के राज में चेलों की बल्ले-बल्ले

Sandesh Wahak Digital Desk/ Vinay Shankar Awasthi: नगर को चमकाने वाले विभाग के ‘मुखिया जी’ का दूसरा जोड़ देश में दिया लेकर ढूंढने पर भी नहीं मिलेगा। ये तो मोदी जी के भी गुरु निकले। मोदी जी कहते हैं, न खाऊंगा, न खाने दूंगा। मगर, साहब का कहना है, ऐसा खिलाऊंगा कि याद रखोगे जन्मों तक। हमारे राज में चेलों की मलाईखोरी देख, तुम्हारे पुरखे न तर जाए तो कहना किसी ने कहा था।

इस चराचर जगत में ईमानदारी की ऐसी वैराइटी बिरले ही देखने को मिलती है। अब तो एंटी करप्शन वाले भी ‘मुखिया जी’ की इस वैराइटी के कायल हो चुके हैं। जब देखो उनके विभाग में मलाई की गंध सूंघते हुए आ धमकते हैं। ऐसा चारा फेंकते हैं कि आदमी का फंसना और फडफ़ड़ाना तय है। अब तो कंबल ओढक़र घी पीना भी दुश्वार हो चुका है। बताओ कितने बेरहम हैं, आदमी समेत कंबल और घी का पतीला तक उठा ले जाते हैं।

लेकिन ‘मुखिया जी’ हैं कि उन्हें इस बात से जरा भी फर्क नहीं पड़ता। उनके राज में चेलों की बल्ले-बल्ले हैं। उनका सारा फोकस चेलों की हर मुराद पूरी करने पर है। फिर चाहे जनता की मुराद पूरी हो या न हो उनकी की बला से। ‘चोटी वाले साहब’ हों या फिर हिसाब-किताब संभालने वाले ‘मिस्टर खाऊ राम’।  ‘मुखिया जी’ अपने हर चेले का पूरा ख्याल रखते हैं। ऐसा गुणा गणित बैठा रखा है कि मैडम भी चारों खाने चित्त हो गई हैं। उनका हर दांव-पेच फेल हो चुका है। ‘मिस्टर खाऊ राम’ के खिलाफ ‘दाढ़ी वाले वजीर’ को लिखी गई मैडम की चिठ्ठी तक साजिशन दबा दी गई है। इसी खुशी में चेले और उनके साहब दफ्तर में ही भांगड़ा डांस करने को तैयार हैं।

उधर, ‘चोटी वाले साहब’ की सेहत बनी रहे इसलिए ‘मुखिया जी’ ने पद और कद से ऊंची कुर्सी उन्हें थमा रखी है। जिससे ‘साहब’ और उनकी ‘चोटी’ दोनों ही फलते-फूलते रहें। ‘मुखिया जी’ ने उन्हें इशारो-इशारो में मलाईखोरी की खुली छूट दे रखी है। भले ही मर चुके आदमी के नाम पर फर्जीवाड़ा तक कर दो, सब माफ है। ‘चोटी वाले साहब’ भी कम उस्ताद नहीं है, ठीक वैसे ही चरते हैं,जैसे लहलहाती फसल के बीच सांड चरता है। चरने के चक्कर में साहब कई बार लोगों को सींघ मारकर घायल भी कर चुके हैं। तभी तो उनके नीचे की कुर्सी पर किसी बौड़म टाइप आदमी को बैठाने के लिए तलाश चल रही है। जो सीनियर-जूनियर के पचड़े से विरक्त हो और साहब के चारे में मुंह भी न मारे।

ये तो कुछ नही है ‘मिस्टर खाऊ राम’ का दर्जा इससे भी कहीं ऊपर है। उनकी मलाईखोरी में कोई बाधा न पहुंचे इसलिए सुरक्षा का विशेष ध्यान रखा गया है। गुप्त कमरे को ‘खुल जा सिमसिम’ टाइप बनाने पर विचार चल रहा है। ऐसा मायाजाल देख एंटीकरप्शन वाले भी हथियार डालने पर मजबूर हैं और ‘मुखिया जी’ को बाकायदा अपना गुरु (सरदार) तक घोषित करने को तैयार हैं।

वैसे ‘गुप्त कमरे’ का राज हो या फिर ‘तिलस्मी बैग’ का रहस्य। ‘मुखिया जी’ सब जानते हैं, जानकर भी अंजान बनने की कला ही उन्हें  ‘कलाकार’ का दर्जा दिला चुकी है। ‘मुखिया जी’ ने अपनी इसी कला की बदौलत ही ईमानदारी की नई वैराइटी की खोज की है। ठीक उसी तरह जैसे ‘वास्को डि गामा’ ने भारत की खोज की थी। ईमानदारी की इस नई वैराइटी का सेहरा ‘मुखिया जी’ खुद अपने सिर पर बांधे फिर रहे हैं। अब तो ‘ऐरा-गैरा नत्थू खैरा’ भी पूछ बैठता है, तो साहब आप कौन-सी वैराइटी के ईमानदार हो। ये सुनते ही साहब बिदक जाते हैं।

अब ‘मुखिया जी’ अपनी दुबली-पतली काया को देख कर इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि रोटी खाने से कोई मोटा नहीं होता, बल्कि घूस खाने से मोटाई में इजाफा होता है। वैसे भी इस घोर कलयुग में केवल घूसखोरी की रकम में ही ‘पौष्टिक तत्व’ बचे है। सो साहब इस ‘पौष्टिक तत्व’ का सर्वप्रथम प्रयोग अपने चेलों पर कर रहें हैं अगर रिजल्ट अच्छे रहे तो निकट भविष्य में साहब भी इसी ‘पौष्टिक तत्व’ का आनंद लेते नजर आएंगे। खैर अब ‘मुखिया जी’ जाने और उनके चेले। हमें क्या हम तो चुप ही रहेंगे।

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