Mayawati : पिछले 10 वर्षों में बसपा का भारी पतन, 25 फीसदी से घटकर 7 फीसदी रह गया वोट बैंक
Mayawati : बीते एक दशक में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थिति लगातार खराब होती चली गई है। पार्टी का वोट बैंक 25 प्रतिशत से घटकर अब मात्र 7 प्रतिशत तक सीमित हो चुका है। भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के आरोपों से घिरी इस पार्टी को उसके पारंपरिक वोट बैंक ने नकार दिया है। पार्टी की इस दुर्दशा के लिए बसपा सुप्रीमो मायावती को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, जिनके नेतृत्व में पार्टी ने अपने ढांचे में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया।
चुनावी नतीजों से बिगड़ी स्थिति
विधानसभा चुनावों के परिणामों पर नजर डालें तो 2012 में बसपा को 25.91 प्रतिशत वोट मिले थे और 80 सीटों पर जीत मिली थी। इसके बाद पार्टी सत्ता से बाहर हो गई, और फिर कभी अपनी खोई हुई ताकत वापस नहीं पा सकी। 2017 में 22.23 प्रतिशत वोट मिलने के बावजूद बसपा केवल 19 सीटों पर जीत सकी। 2022 के विधानसभा चुनावों में बसपा का प्रदर्शन और भी खराब रहा, जब पार्टी को महज 12.83 प्रतिशत वोट मिले और सिर्फ एक प्रत्याशी जीत सका। हालिया उपचुनाव में तो पार्टी को मात्र 7 प्रतिशत वोट मिले हैं, जो उसकी गिरती स्थिति का स्पष्ट प्रमाण है।
गलत फैसलों का असर
सत्ता से बाहर होने के बाद, बसपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ने का निर्णय लिया, जो पार्टी के लिए बड़ा नुकसान साबित हुआ। पार्टी का कोई भी उम्मीदवार चुनाव नहीं जीत सका। 2019 में सपा के साथ गठबंधन करने के बावजूद, यह साझेदारी ज्यादा दिन नहीं चल पाई और 2022 के विधानसभा चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी फिर से हाशिए पर चली गई।
परिवारवाद और नेतृत्व की असफलता
बसपा सुप्रीमो ने अपने भाई आनंद कुमार और भतीजे आकाश आनंद को पार्टी में महत्वपूर्ण पदों पर बैठाया। आनंद को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और आकाश को नेशनल कोआर्डिनेटर बनाया गया। इससे पार्टी के पारंपरिक दलित और ब्राह्मण नेता खफा हो गए। जो नेता बसपा की ताकत थे, वे या तो अन्य दलों में शामिल हो गए या राजनीति से दूर हो गए। सतीश चंद्र मिश्रा को ब्राह्मणों को एकजुट करने की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन यह प्रयास भी असफल रहा।
भाजपा की बी टीम होने का आरोप
पार्टी की कमजोरी का फायदा बाकी विपक्षी दलों ने उठाया और बसपा पर भाजपा की “बी टीम” होने का आरोप लगाया। चुनावों में कमजोर और गुमनाम उम्मीदवारों को टिकट देने, साथ ही अल्पसंख्यक बहुल सीटों पर सपा और कांग्रेस के मुकाबले अल्पसंख्यकों को टिकट देने की पार्टी की रणनीति ने विपक्ष के इस आरोप को और मजबूत किया।
भ्रष्टाचार के आरोप
2017 के विधानसभा चुनावों में बसपा को सबसे बड़ा नुकसान हुआ, जब पार्टी के कई नेता भाजपा में शामिल हो गए। इन नेताओं ने मायावती पर टिकट के बदले करोड़ों रुपये मांगने के आरोप लगाए। ये आरोप पार्टी की छवि को और धूमिल करने में सफल रहे, और बसपा अब तक इससे उबर नहीं पाई है। बाद में हुए चुनावों में भी टिकट न मिलने वाले प्रत्याशी लगातार भ्रष्टाचार के आरोप लगाते रहे।
इस प्रकार, पार्टी के अंदर के विवाद, गलत चुनावी फैसले और भ्रष्टाचार के आरोपों ने बसपा को गंभीर संकट में डाल दिया है। अब देखना यह है कि मायावती और उनके नेतृत्व में पार्टी इस संकट से उबर पाती है या नहीं।