त्वरित टिप्पणी: पुलिस की निरंकुशता या सरकार की अक्षमता!
Sandesh Wahak Digital Desk: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में यूपी पीसीएस, आरओ-एआरओ की प्रारंभिक परीक्षा दो दिन में कराने के आयोग के निर्णय के विरोध में प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया। पुलिस की इस कार्रवाई ने सरकार की मंशा और नीति दोनों पर सवाल खड़े कर दिए हैं।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि :-
- शांति पूर्ण तरीके से प्रदर्शन कर रहे छात्रों पर लाठीचार्ज करने की कौन सी मजबूरी थी?
- क्या यह पुलिस को खुली छूट देने का नतीजा है?
- क्या प्रदेश में पुलिसिया राज स्थापित करने का प्रयत्न किया जा रहा है?
- क्या पुलिस का इस प्रकार का रवैया सरकार की अक्षमता को उजागर कर रहा है?
- क्या पुलिस की निरंकुशता के कारण आम आदमी के बीच खाकी और सरकार की छवि खराब नहीं हो रही है?
पिछले साढ़े सात वर्षों में कानून का राज स्थापित करने के नाम पर प्रदेश सरकार ने जिस तरह पुलिस को खुली छूट दी है उसके नतीजे रोज सामने आने लगे हैं। पुलिस शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे आंदोलनकारियों को भी नहीं छोड़ रही है। पिछले महीने गाजियाबाद कोर्ट में अधिवक्ताओं तक पर लाठीचार्ज किया गया। प्रदेश में अपराध को कंट्रोल करने के तरीके पर भी सवाल उठ रहे हैं। पूछताछ के नाम पर थाने में दी गयी थर्ड डिग्री के कारण कई लोगों की हिरासत में मौत हो चुकी है।
हिरासत में हुई थी मोहित की मौत
अक्टूबर में लखनऊ की चिनहट पुलिस दो भाइयों मोहित और शोभाराम को आपसी झगड़े में थाने ले आयी। इसमें एक मोहित की मौत हिरासत में हुई। इसी तरह विकास नगर में एक दलित युवक अमन की हिरासत में मौत हो गयी। दोनों के परिजनों ने पुलिस पर थर्ड डिग्री देने का आरोप लगाया है। केंद्र सरकार के आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2020-2021 और 2021-2022 में सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में हिरासत में सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में हुईं।
2020-21 में यूपी में हिरासत में 451 जबकि 2021-22 में 501 मौतें दर्ज की गईं। यह सिलसिला आज भी जारी है। पुलिस द्वारा किए गए एनकाउंटर भी कठघरे में हैं। साढ़े सात साल में यूपी पुलिस 12 हजार से ज्यादा एनकाउंटर कर चुकी है। इनमें 210 बदमाशों की जान गई है, 1601 घायल हुए हैं और 27 हजार से ज्यादा मुठभेड़ के बाद पकड़े गए हैं। ऐसे भी केस सामने आए हैं जब कई पुलिसकर्मी अपराध में शामिल पाए गए हैं। जुलाई में बलिया में ट्रकों से अवैध वसूली में थाना प्रभारी, चौकी प्रभारी और पांच पुलिसकर्मियों समेत 23 पर एफआईआर दर्ज की गयी।
वर्दी के नाम पर हो रही अवैध वसूली
साफ है सरकार भले ही प्रदेश में कानून का राज स्थापित करने का दावा कर रही हो जमीनी हकीकत इसके उलट है। छोटे मामलों में आम आदमी को डराने-धमकाने और वसूली जैसे काम वर्दी के नाम पर किए जा रहे हैं। सरकार को समझना होगा कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में पुलिस की ऐसी निरंकुशता खतरनाक है और यह कानून नहीं डर का राज कायम करती है। यूपी पुलिस के रवैये के कारण आम आदमी अपनी समस्याएं लेकर थाने में जाने से कतराता है।
इसमें दो राय नहीं है कि पुलिस को खुली छूट देने से सरकार के प्रति भी अच्छा संदेश नहीं जाता है। आम आदमी में यह धारणा उत्पन्न होती है कि सरकार प्रशासन को चलाने में अक्षम है और पुलिस के जरिए अपनी धमक बनाने की कोशिश कर रही है। सरकार को चाहिए कि वह पुलिस तंत्र की खुली छूट की अपनी नीति पर मंथन करे, विभाग में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाए और पुलिसकर्मियों को आम आदमी के प्रति उचित व्यवहार का प्रशिक्षण दे वरना हालात बेकाबू हो जाएंगे।
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