UP: सवालों में इंडिया गठबंधन की एकता, क्या यूपी में द एन्ड की ओर बढ़ रही कांग्रेस-सपा की दोस्ती?

Sandesh Wahak Digital Desk: सियासत में कभी दोस्ती नहीं होती, दोस्ती में कभी सियासत नहीं होती… इन पंक्तियों पर यूपी में इण्डिया गठबंधन के अहम साथी सपा मुखिया अखिलेश यादव और कांग्रेस नेता राहुल गांधी का दोस्ताना बिलकुल सटीक बैठता है।

यूपी के उपचुनाव में सीट बंटवारे को लेकर शुरू हुई सपा और कांग्रेस के बीच खटपट अब दोनों नेताओं में मानो नाराजगी का सबब भी बनती जा रही है। तभी रायबरेली आ रहे कांग्रेस सांसद राहुल गांधी के दौरे को उपचुनाव की सियासी गर्माहट से पूरी तरह दूर रखा जा रहा है। इससे संकेत साफ़ हैं कि मिशन 2027 से पहले ही इस सियासी दोस्ती का द एन्ड भी हो सकता है।

राहुल गांधी का सियासी कार्यक्रम तय नहीं

दरअसल मंगलवार को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष व कांग्रेस नेता राहुल गांधी का रायबरेली दौरा प्रस्तावित है। कांग्रेस से जुड़े नेताओं के मुताबिक रायबरेली में राहुल बतौर स्थानीय सांसद जिला प्रशासन और बाकी सरकारी विभागों संग जिला विकास समन्वय एवं निगरानी समिति (दिशा) की बैठक की अध्यक्षता करेंगे। इसके बाद उन्हें तेलंगाना भी जाना है। लेकिन यूपी में नौ विधानसभा सीटों के लिए होने जा रहे उपचुनाव को लेकर उनका कोई भी सियासी कार्यक्रम फिलहाल तय नहीं है।

तभी राहुल के दौरे को सार्वजनिक नहीं करने का निर्णय लिया गया है। कांग्रेस के प्रदेश नेतृत्व की इस बात का गले उतरना थोड़ा मुश्किल इसलिए भी नजर आ रहा है क्योंकि चंद दिनों में उपचुनाव होना है। ऐसे में राहुल इण्डिया गठबन्धन के बैनर तले उतरे सपा के उम्मीदवारों के पकड़ में चुनावी प्रचार करके विपक्ष के बीच आ रही दरारों पर सत्ता पक्ष और आलोचकों को करारा जवाब भी दे सकते थे।

राहुल द्वारा प्रचार न किया जाना सियासी संकेत

कांग्रेस नेतृत्व ने तय किया था कि सपा का समर्थन उपचुनाव में करेगी। तभी प्रयागराज में कांग्रेस नेता को फूलपुर से नामांकन पर बाहर का रास्ता दिखा दिया था। इसके बावजूद विपक्ष के प्रत्याशियों के पक्ष में राहुल द्वारा प्रचार न किया जाना सियासी संकेत दिखा रहा है। उपचुनाव में प्रचार के वास्ते महज आठ दिन ही बचे हैं। अगले आठ दिनों राहुल का यूपी में कोई दूसरा दौरा होने की संभावना भी नजर नहीं आ रही है।

उपचुनाव में राहुल और अखिलेश की संयुक्त रैली का भी कोई प्लान नहीं है। अखिलेश ने कांग्रेस के समर्थन की दुहाई दी थी। कांग्रेस से बड़े नेता चुप रहे। लोकसभा चुनाव में दलितों और मुस्लिमों की पहली पसंद कांग्रेस थी। दलित वोटर को सपा और कांग्रेस में से किसी एक को चुनना पड़ा तो पहली पसंद कांग्रेस हो सकती है। मुस्लिम भी कांग्रेस के चलते सपा के पक्ष में वोट दिया था। इसीलिए अखिलेश इंडिया गठबंधन की दुहाई देकर मुस्लिम और दलितों को साधे रखने का दांव चल रहे हैं। लेकिन कांग्रेस साइलेंट भूमिका में है।

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