संपादक की कलम से: प्रदूषण नियंत्रण में लापरवाही

Sandesh Wahak Digital Desk: प्रदूषण को नियंत्रित करने में नाकामी पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर संबंधित निकायों को फटकार लगायी है। कोर्ट ने कहा कि प्रदूषण नियंत्रण के दावे हवा-हवाई है और इस संदर्भ में कुछ भी नहीं किया गया है। साथ ही अदालत ने वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग से रिपोर्ट भी तलब की है।

सवाल यह है कि :

  • केंद्र और राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड क्या कर रहे हैं?
  • क्यों शीर्ष अदालत के आदेशों को दरकिनार किया जा रहा है?
  • पराली जलाने पर रोक लगाने के ठोस उपाय क्यों नहीं किए जा रहे हैं?
  • क्या केंद्र और राज्य सरकारें इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं?
  • क्या लोगों की जान से खिलवाड़ करने की छूट किसी को दी जा सकती है?
  • प्रदूषण के लिए जिम्मेदार अन्य कारकों पर नियंत्रण लगाने की कोशिश क्यों नहीं हो रही है?
  • क्या मानव संसाधनों की कमी के कारण संबंधित निकाय हालात को नियंत्रित नहीं कर पा रहे हैं?
  • सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बावजूद प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए गंभीर प्रयास क्यों नहीं किये जा रहे हैं?
  • पराली जलाने के विकल्प में उपकरणों का इस्तेमाल जमीनी स्तर पर क्यों नहीं सुनिश्चित किया जा सका है?

पूरे देश में बढ़ता प्रदूषण गंभीर चिंता का विषय बन चुका है। यह मामला पिछले कई सालों से सुप्रीम कोर्ट के सामने उठता रहा है। अब जब सर्दी का मौसम फिर दस्तक देने वाला है, दिल्ली और आसपास के राज्यों में प्रदूषण का खतरा गहरा गया है। देश के अन्य शहरों की अपेक्षा यहां सबसे अधिक प्रदूषण रहता है। इसको नियंत्रित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट केंद्र और राज्यों के प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और सरकारों को आदेशित कर चुका है।

शीर्ष अदालत ने दिए थे सख्त निर्देश

इसके लिए गाइडलाइन्स भी जारी की जा चुकी है लेकिन स्थिति में कोई सुधार होता नहीं दिख रहा है। दिल्ली और एनसीआर में प्रदूषण के लिए पराली यानी किसनों द्वारा फसलों के अवशेषों को जलाना, को सबसे अधिक जिम्मेदार माना जाता है। इसे लेकर शीर्ष अदालत ने सख्त निर्देश जारी किए थे। संबंधित निकायों को आदेश दिया गया था कि इस पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए और किसानों को इसका विकल्प मुहैया कराया जाए। केंद्र सरकार ने इसके विकल्प के रूप में कुछ उपकरण भी उपलब्ध कराए लेकिन इसका प्रयोग आज तक पर्याप्त संख्या में नहीं किया जा रहा है।

सच यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को न तो राज्य सरकारें न ही प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड गंभीरता से ले रहा है। यही नहीं वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग भी इस मामले में कछुआ की चाल से चल रहा है। इसके कारण हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। सिर्फ पराली ही नहीं बल्कि अन्य प्रदूषण उत्पन्न करने वाले कारकों मसलन, पुरानी डीजल गाडिय़ां, सडक़ पर उड़ते धूलकण और खुले में रखी गयी निर्माण सामग्री आदि को लेकर भी कोई कार्रवाई नहीं हो रही है। साफ है यदि सरकार प्रदूषण को नियंत्रित करना चाहती है तो उसे संबंधित निकायों को न केवल सक्रिय करना होगा बल्कि उन्हें जवाबदेह भी बनाना होगा।

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