संपादक की कलम से: ओलंपिक में भारत फिसड्डी क्यों?
Sandesh Wahak Digital Desk : भारत ने बड़ी धूमधाम से पेरिस ओलंपिक में भाग लिया। 117 खिलाड़ियों की टीम ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में शिरकत की और कुल छह पदकों के साथ स्वदेश लौटी। इनमें एक रजत और पांच कांस्य पदक शामिल हैं। भारत ने एक भी स्वर्ण पदक नहीं हासिल किया और यहां के दिग्गज भी कुछ खास नहीं कर सके। इसके पहले 2020 में हुए ओलंपिक में भारत ने सात पदक जीते थे। वहीं अमेरिका 126 पदकों के साथ पहले स्थान पर रहा। 91 पदकों के साथ चीन दूसरे और 45 पदकों के साथ जापान तीसरे स्थान पर रहा है।
सवाल यह है कि :
- वैश्विक स्तर की प्रतियोगिता में भारत के खिलाड़ी फिसड्डी क्यों साबित हो जाते हैं?
- अमेरिका और जापान जैसी छोटी आबादी वाले देश हमेशा आगे क्यों रहते हैं?
- चीन भी हर बार ओलंपिक खेलों में भारत को काफी पीछे कैसे छोड़ देता है?
- क्या खेल संस्कृति के अभाव के कारण उम्दा खिलाड़ी देश को नहीं मिल पा रहे हैं?
- क्या क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों पर फोकस नहीं किए जाने के कारण स्थितियां बिगड़ी हैं?
- क्या खेल संघों की आपसी खींचतान का नकारात्मक असर खेलों पर पड़ रहा है?
भारत का पेरिस ओलंपिक की पदक तालिका में 71वें स्थान पर रहना गंभीर चिंता का विषय है। यह इस बात की पुष्टि कर रहा है कि खेलों को लेकर सरकार और खेल संघ दोनों ही गंभीर नहीं हैं। कई खिलाड़ी खुद संघर्ष कर आगे बढ़ रहे हैं। हालांकि खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने खेलो इंडिया अभियान शुरू किया है लेकिन यह भी औपचारिक बनकर रह गया है। दरअसल, भारत में खेल संस्कृति का अभाव है।
समाज में भी खेलों को लेकर जागरूकता
प्राथमिक स्तर पर खेलकूद को बढ़ावा देने के लिए कोई ठोस योजना नहीं लागू की गयी है। अधिकांश स्कूलों और कॉलेजों में खेल मैदान नहीं हैं। न ही खेलों को बढ़ावा देने के लिए पर्याप्त बजट है। समाज में भी खेलों को लेकर जागरूकता नहीं है। आज भी अभिभावक खेलों में अपने बच्चों को भेजने से कतराते हैं। इसकी बड़ी वजह इसका रोजगार से नहीं जुड़ा होना है। यदि किसी तरह खिलाड़ी अपने दम पर जिला और राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच भी जाते हैं तो उन्हें खेल संघों की राजनीति और भाई भतीजावाद का शिकार होना पड़ता है। खेल संघ भी खेलों को लेकर गंभीर नहीं दिखते हैं।
यही वजह है कि ट्रैक एंड फील्ड में भारत वैश्विक प्रतियोगिताओं में कहीं नहीं टिकता है जबकि भारत में प्रतिभाओं की कोई कमी है। हमारी खेल नीति भी ऐसी है कि प्रतिभाओं को खोजना और तलाशना कठिन है। यदि सरकार वैश्विक प्रतियोगिताओं में भारत का परचम फहराना चाहती है तो उसे न केवल देश के अंदर खेल संस्कृति का विकास करना होगा बल्कि इसे रोजगार से भी जोडऩा होगा। खेल संघों की कमान खिलाडिय़ों को सौंपनी होगी और इसे सियासी अखाड़ा बनाने से दूर रखना होगा। वहीं प्राइमरी स्तर से बच्चों को विभिन्न खेलों में प्रशिक्षित करने की व्यवस्था करनी होगी अन्यथा हम वैश्विक प्रतियोगिताओं में फिसड्डी ही बने रहेंगे।
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