संपादक की कलम से : दरकते पहाड़ और लापरवाह तंत्र

Sandesh Wahak Digital Desk: भारी बारिश और बादल फटने की घटनाओं से हिमाचल और उत्तराखंड में एक बार फिर भयावह त्रासदी हुई। वर्षाजनित घटनाओं में 22 लोगों की मौत हो गयी जबकि 50 से अधिक लोग लापता हो गए। पहाड़ों के टूटकर गिरने के कारण कई जगह सडक़ें क्षतिग्रस्त हो गईं और बुनियादी ढांचे को भारी नुकसान पहुंचा है। पहाड़ों की बारिश के चलते मैदानी इलाकों में बाढ़ का खतरा और बढ़ गया है। कई नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही है।

सवाल यह है कि :

  • इन राज्यों में साल-दर-साल पहाड़ दरकने की घटनाएं लगातार बढ़ती क्यों जा रही है?
  • हिमालयी रेंज के पहाड़ों को सुरक्षित रखने में राज्य सरकारें नाकाम क्यों हैं?
  • क्या विकास की अंधाधुंध दौड़ के कारण पहाड़ कमजोर होते जा रहे हैं?
  • क्या जंगलों की अवैध कटान ने पहाड़ों के दरकने की प्रक्रिया को तेज कर दिया है?
  • आखिर पर्यावरण विदों और भू-गर्भ वैज्ञानिकों की चेतावनियों को दरकिनार क्यों किया जा रहा है?
  • क्या सरकार और भी भयावह त्रासदी का इंतजार कर रही है?

पिछले दो दशकों से पहाड़ी राज्यों हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में हर मानसून का मौसम लोगों के लिए खौफ लेकर आता है। यहां प्रतिवर्ष बादल फटने और पहाड़ के टूटकर गिरने से भारी जन-धन की हानि हो रही है। कई जगहों पर पूरा का पूरा इंफ्रास्ट्रक्चर दोबारा तैयार करना पड़ता है। घर और बाग तबाह हो जाते हैं। कई बस्तियां मिट्टी में मिल जाती हैं। इसकी सबसे बड़ी वजह सरकार के नीतिगत फैसले हैं।

राज्य सरकारों ने पर्यटकों को लुभाने के लिए यहां के प्राकृतिक वातावरण से जमकर छेड़छाड़ की है। पहाड़ों को काटकर न सिर्फ सडक़ें बनायी जा रही हैं बल्कि सुरंगों का भी निर्माण किया जा रहा है। पहाड़ों को तोडऩे के लिए विस्फोटकों का इस्तेमाल किया जाता है। इससे पूरा पहाड़ हिल जाता है और धीरे-धीरे वह कमजोर होने लगता है।

छोटे-बड़े बांध भी कर रहे पहाड़ों को कमजोर

इसके अलावा पहाड़ों को मजबूती देने वाले पेड़ों की अंधाधुंध कटाई ने भी इनको कमजोर कर दिया है। पहाड़ों पर बनाए जा रहे छोटे-बड़े बांध भी पहाड़ों को कमजोर कर रहे हैं। दरअसल, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ अभी बनने की प्रक्रिया में हैं लिहाजा वे अभी अन्य पहाड़ों की तरह मजबूत नहीं हैं। ऐसे में यहां बढ़ती मानवीय गतिविधियां व विकास कार्यों ने पूरे पर्यावरण पर नकारात्मक असर डाला है। यही वजह है कि कमजोर हो चुके पहाड़ भारी बारिश में टूटकर बिखरने लगते हैं।

हालांकि पर्यावरण विदों और भू-गर्भ वैज्ञानिकों ने इसे लेकर राज्य सरकारों को कई बार इसके खतरे को लेकर चेताया लेकिन उसका असर नहीं दिख रहा है। जाहिर है यदि सरकार ने पर्यावरण विदों और भू-गर्भ वैज्ञानिकों की चेतावनियों और सलाह का अनुपालन सुनिश्चित नहीं किया तो इन राज्यों में भयावह स्थितियां उत्पन्न हो जाएंगी। सरकार को चाहिए कि वे यहां प्रकृति केंद्रित विकास को बढ़ावा दे। जंगलों की सुरक्षा सुनिश्चित करें और इसका दायरा भी बढ़ाए अन्यथा हालात और भी बदतर होंगे।

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