UPMSCL: बायो मेडिकल वेस्ट मैनेजमेंट में 300 करोड़ डकारने की तैयारी पर सीवीसी का शिकंजा

Sandesh Wahak Digital Desk/ Manish Srivastava: यूपी के सभी जिला अस्पतालों, सीएचसी और पीएचसी के वास्ते बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट (Bio Medical Waste Treatment) सेवा प्रदाता के चयन संबंधी टेंडर के बहाने तीन सौ करोड़ से ज्यादा के राजस्व की चपत लगाने की फुलप्रूफ प्लानिंग फर्मों ने बनाई थी। भ्रष्टाचार के कटघरे में खुद मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन के एमडी जगदीश और जीएम उपकरण उज्जवल कुमार हैं।

केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) में कच्चा चिटठा पहुंचने के बाद केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय (डीओपीटी) ने यूपी के मुख्य सचिव को मामले में कार्रवाई के निर्देश दिए हैं। जिसके बाद यूपी के नियुक्ति विभाग ने प्रमुख सचिव स्वास्थ्य से इस मामले में बिंदुवार आख्या मांगी है।

सुनियोजित साजिश के तहत रखी गईं थीं पांच गुना कीमतें

जांच की आंच आईएएस तक आते देख कार्पोरेशन से लेकर शासन तक हडक़ंप मच गया है। इस खेल में कई बड़ों का हाथ बताया जा रहा है। आखिर किसके इशारों पर सुनियोजित साजिश के तहत टेंडर में कंपनियों ने गुटबाजी करके पांच गुना कीमतें रखीं थी।

कार्पोरेशन ने 15.5.2023 को तीन वर्ष के लिए बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट (Bio Medical Waste Treatment) सेवा प्रदाता के चयन का टेंडर निकाला था। जिसमें 28 फर्मों ने हिस्सा लिया। अधिकांश फर्मों ने आपस में साठगांठ करके करीब 36 रूपए से लेकर 86 रूपए तक (बिना टैक्स) प्रति बेड प्रति दिन के हिसाब से अपनी कीमतें रखी। ऐसी भी फर्मों को टेंडर की तकनीकी अहर्ताओं में हरी झंडी दिखाई गयी। जिन्हे यूपी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के नियमों का पालन न करने पर नोटिस तक मिल चुका है। बाकायदा वायु और जल सहमति तक नहीं होने के आरोप हैं।

पर्यावरण मंत्रालय की सेंट्रल मॉनिटरिंग कमेटी के निर्णय को भी दरकिनार किया गया। कॉमन बायो मेडिकल वेस्ट ट्रीटमेंट फैसिलिटी के लिए दिल्ली में चार रूपए प्रति दिन प्रति बेड,  हरियाणा सरकार नौ रूपए प्रति दिन प्रति बेड, तेलंगाना पांच से साढ़े सात रूपए प्रति दिन प्रति बेड, त्रिपुरा सरकार आठ रूपए प्रति दिन प्रति बेड और आंध्रप्रदेश दस रूपए प्रति बेड प्रति दिन के हिसाब से समय समय पर कंपनियों को शुल्क देती है।

फोर्टिस और यशोदा समेत कई नामी अस्पताल इसमें शामिल

राज्यों में औसतन दस से 11 रूपए प्रति दिन प्रति बेड प्रति दिन (करों समेत) इस मद में कंपनियों को दिया जा रहा है। टेंडर में शामिल होने वाली कंपनियां निजी अस्पतालों को कई गुना कम कीमतों पर सेवा उपलब्ध करा रही हैं। जिसमें फोर्टिस और यशोदा समेत कई नामी अस्पताल शामिल हैं। शुल्क अधिकतम 5 रु. से 12 रूपए तक है।

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सरकारी अस्पतालों के लिए पांच गुना मंहगी कीमतें गुटबंदी करके फर्मों ने डाली थीं। सालाना सौ करोड़ के हिसाब से तीन साल में तीन सौ करोड़ की चोट की तैयारी थी। दो साल टेंडर विस्तार पर आंकड़ा पांच सौ करोड़ पहुंच सकता था। भ्रष्टाचार के शिकायतें शासन से लेकर कार्पोरेशन स्तर तक करने के बावजूद किसी भी अफसर ने संज्ञान नहीं लिया। मामला सीवीसी जाते ही अब अफसरों ने गर्दन बचाने के लिए टेंडर निरस्त कर दिया है। मुख्यमंत्री योगी को पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच करानी चाहिए।

प्रमुख सचिव स्वास्थ्य व कार्पोरेशन एमडी बोले, टेंडर निरस्त

प्रमुख सचिव स्वास्थ्य पार्थ सारथी सेन शर्मा ने कहा कि कार्पोरेशन ने फर्मों पर एक जैसी कीमतें डालने का आरोप देख टेंडर को निरस्त कर दिया है। कार्पोरेशन के एमडी जगदीश ने बताया कि प्रकरण पर शासन से पुन: आख्या मांगी गयी है। जिसे जल्द भेजा जाएगा। फर्मों की गुटबंदी को देखते हुए टेंडर प्रक्रिया निरस्त हुई है। भ्रष्टाचार के आरोप निराधार हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से भी एक रिपोर्ट मांगी गयी है। टेंडर में फर्मों ने पांच गुना रेट बढाए थे, ये सही है। जिस कम्पनी का प्रत्यावेदन निरस्त किया, उसी ने आरोप लगाए हैं।

जिस एमडी पर आरोप, उसी से शासन ने मांगी आख्या

डीओपीटी के पत्र के बाद नियुक्ति विभाग ने मामले में प्रमुख सचिव स्वास्थ्य से 28 जून को आख्या मांगी थी। जिसके बाद शासन स्तर पर खलबली मची। कार्पोरेशन एमडी जगदीश के खिलाफ अरबों के खेल के आरोप लगाए गए थे। करीब एक माह के अंतराल के बाद 23 जुलाई को प्रमुख सचिव स्वास्थ्य पार्थ सारथी सेन शर्मा के आदेश पर एमडी से ही शासन ने एक हफ्ते में शिकायतों पर बिंदुवार आख्या मांगी है।

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