UP MSCL : दवा सप्लाई में नहीं टूट पा रहा माफिया तंत्र

आखिर सरकारी अस्पतालों में खपाने से पहले क्यों नहीं पकड़ी जाती हैं घटिया दवाएं?

Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava: उत्तर प्रदेश में दवा और उपकरण माफियाओं का संगठित तंत्र तोडऩे के लिए योगी सरकार ने यूपी मेडिकल सप्लाइज कार्पोरेशन का गठन किया था। इसके बावजूद प्रदेश में इन माफियाओं का तंत्र आज तक बरकरार है। बीते कुछ वर्षों में दवा माफियाओं ने सरकारी अस्पतालों में करोड़ों की घटिया दवाओं की आपूर्ति भेजी है। जिसका खुलासा अक्सर जांच में हुआ है। लेकिन मरीजों के बीच घटिया दवाओं को खपाये जाने के बाद मामले पकड़ में आने से अक्सर जान पर भी बन आती है।

प्रदेश के सभी 75 जिलों को ब्लड प्रेशर और हृदयरोग के मरीजों के लिए 10 लाख से अधिक मेटोप्रोलोल टैबलेट-50 एमजी टैबलेट सप्लाई की गई थी। 10-10 हजार टैबलेट लखनऊ से सप्लाई की गई थी। इसी वर्ष फरवरी में भदोही में एफएसडीए की जांच में दवा घटिया पाई गयी। रिलीफ बायोटेक प्राइवेट लिमिटेड ने करीब दो साल पहले यूपी मेडिकल सप्लाईज कारपोरेशन को दवाओं की आपूर्ति की थी। यूपी के राजकीय अस्पतालों में डेढ़ साल बाद जांच में दवा घटिया साबित हुई।

हालांकि कारपोरेशन ने दवा के वितरण पर रोक लगाकर दवा वापस करने के लिए पत्र भेज दिया था। कार्पोरेशन के पास ऐसा कोई तंत्र नहीं कि अस्पतालों में पहुंचने से पहले ही इन घटिया दवाओं को रोका जा सके। जबकि कार्पोरेशन में दवाओं के लिए क्वालिटी मैनेजमेंट से जुड़े अफसरों और कर्मियों की पूरी चेन है। अक्सर स्टोरेज व्यवस्था में खामियों के चलते भी दवाएं खराब हो जाती हैं। इसी तरह पिछले वर्ष मलेरिया व डेंगू बुखार के कहर के बीच आगरा, अयोध्या, अलीगढ़, बरेली समेत प्रदेश के 20 जिलों में सात लाख से अधिक मरीजों को घटिया एंटीबायोटिक दवा सिफ्लॉक्सिन 250 एमजी बांट दी गई।

एफएसडीए की जांच में कई मामले हो चुके हैं बेनकाब

आजमगढ़ में एफएसडीए की जांच में दवा का सैंपल फेल हो गया। मेडिकल कारपोरेशन के वापस मंगाने से पहले ही घटिया दवा के स्टॉक की 95 फीसदी खपत हो चुकी थी। घटिया दवाओं के खेल में कार्पोरेशन के अफसरों की मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता है। दो साल पहले मेडिकल सप्लाइज कारपोरेशन ने रायबरेली, अयोध्या, बाराबंकी, गोंडा, अंबेडकर नगर सहित ग्यारह जिलों में दर्द की दवा (एक्लोफिनेक) की अधोमानक दवा की आपूर्ति कर दी थी।

इन चंद उदाहरणों से साफ है कि प्रदेश में सरकारी दवाओं की आपूर्ति की गुणवत्ता पर अक्सर सवाल खड़े होते आये हैं। लेकिन कोई सख्त कार्रवाई कभी नहीं होती। अफसर भी सिर्फ कंपनियों को ब्लैकलिस्ट करके अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं।

233 दवा कंपनियों ने भेजी थी घटिया दवाएं

एफएसडीए भले इधर घटिया दवाओं के खेल पर उतना सख्त नजर नहीं आ रहा है। लेकिन खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफएसडीए) की तत्कालीन अपर मुख्य सचिव अनीता भटनागर जैन ने 2019 में इस खेल पर शिकंजा कसा था। दो साल में 19 राज्यों की 233 दवा निर्माता कंपनियों ने घटिया दवाएं यूपी भेजी थी। जैन ने ऐसे 492 मामले पकड़े जाने के बाद सभी 19 राज्यों के सचिवों, आयुक्तों व महानिदेशकों को पत्र भेजकर कार्रवाई की उम्मीद जताई थी। सबसे ज्यादा दागी कंपनियां उत्तराखंड व हिमाचल में प्रदेश में हैं।

सिविल के फिजियोथेरेपी वार्ड में घटिया उपकरणों की आपूर्ति

सिविल अस्पताल में बने फिजियोथेरेपी वार्ड में खराब गुणवत्ता की मशीनें आपूर्ति कर दीं। करीब एक साल पहले फिजियो थेरेपी वार्ड के विस्तार को लेकर मशीनें खरीदी गईं थीं। जब मशीनों की आपूर्ति अस्पताल में हुईं। मशीनों की गुणवत्ता खराब मिलने पर जिम्मेदारों ने इन्हें लगाने से मना कर लौटा दिया। सिविल अस्पताल के जिम्मेदारों के मुताबिक नई मशीनों की सूची बनायी गई है। जल्द खरीदने की प्रक्रिया का टेंडर निकाला जाएगा।

अनंत मिश्रा

चिकित्सा उपकरणों के माफियाओं की अफसरों से सांठगांठ

यूपी में चिकित्सा उपकरणों का भी खेल वर्षों पुराना है। अफसरों से साठगांठ करके उपकरण माफिया बजट तक स्वीकृत करा लेते हैं। कार्पोरेशन के अलावा स्वास्थ्य विभाग में भी इस खेल को बखूबी अंजाम दिया जाता है। जिसमें एक चश्मा व्यापारी से उपकरण माफिया बने व्यक्ति का अहम रोल है। ये उपकरण माफिया पूर्व स्वास्थ्य मंत्री अनंत मिश्रा का भी बेहद ख़ास है। इस माफिया की जेब में स्वास्थ्य विभाग से लेकर शासन तक के कई बड़े अफसर हैं।

कुछ समय पहले इस माफिया के एक पारिवारिक कार्यक्रम में शासन के कई बड़े अफसर पहुंचे थे। योगी सरकार के कई मंत्रियों ने इस उपकरण माफिया की तीन कंपनियों की कई शिकायतें की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई। अब ये उपकरण माफिया गोमतीनगर के लोहिया चौराहे के पास करोड़ों की काली कमाई के जरिए बेहद आलीशान बंगला बनवा रहा है। इसी तरह एक एक दवा माफिया दर्जनों कंपनियों के सहारे कार्पोरेशन से लगातार ठेके पा रहे हैं। इनमें एनआरएचएम घोटाले में फंसे कई दलाल भी शामिल हैं।

दवाओं से ज्यादा जिम्मेदारों की आर्थिक सेहत सुधरी

यूपी मेडिकल सप्लाई कार्पोरेशन में अरबों की दवाओं और उपकरणों की खरीद होती है। जिसमें खेल करके अफसरों और कर्मियों की किस्मत बदल चुकी है। दवा, उपकरण, वेयरहाउस और क्वालिटी विंग में काबिज कई अफसरों-कर्मियों  की आय से अधिक सम्पत्ति मामले में जांच कराई जाए तो कई चौंकाने वाले खुलासे हो सकते हैं। वेयरहाउस में सालाना करोड़ों की दवाएं एक्सपायर हो जाती हैं। इस खेल को पूर्व में डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने औचक निरीक्षण में पकड़ा भी था। लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई।

क्या कहते हैं अफसर?

कार्पोरेशन के एक अफसर ने कहा कि दवाओं की गुणवत्ता जांचने की हमारे यहां पूरी प्रक्रिया है। आपूर्ति से पहले सैम्पल्स की जांच एनएबीएल द्वारा मान्य प्रयोगशालाओं में कराई जाती है। कई दवा कंपनियों को अधोमानक आपूर्ति पर ब्लैकलिस्ट भी किया गया है।

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