बहुत गहरी हैं नकली दवाओं के रैकेट की जड़ें, यूपी समेत कई राज्यों में फैले हैं तार
Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava: उत्तर प्रदेश में नकली दवाओं का सिंडिकेट मजबूती से जड़ें जमा चुका है। बीते वर्षों में करोड़ों की नकली दवाओं से लेकर ऐसी फैक्ट्रियां तक पकड़ी गयीं, जिनके तार न सिर्फ कई राज्यों और शहरों से जुड़े थे बल्कि रैकेट की पहुंच अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पाई गयी।
दो साल पहले समीक्षा के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सालाना बीस हजार दवाओं के नमूनों की जांच के निर्देश खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफएसडीए) विभाग को दिए थे। इसके बावजूद नकली दवाओं के हाईटेक कारोबार को रोकने के खिलाफ उतनी तेजी अभी नहीं आ सकी है। कैंसर तक की नकली दवाओं की बाजार में भरमार है।
मार्च में दिल्ली पुलिस की टीम ने गाजियाबाद और शामली में छापेमारी करके गजरौला में नकली दवाओं की बड़ी फैक्ट्री का खुलासा करते हुए दस लोगों की गिरफ्तारी और करोड़ों का माल जब्त किया था। पैनिक डिसॉर्डर और डिप्रेशन के इलाज में काम आने वाली अल्प्राजोलम समेत एंटासिड, हाइ ब्लडप्रेशर और डायबिटीज जैसी बीमारियों में काम आने वाली बड़ी फार्मा कंपनियों की नकली दवाओं को यहां बनाया जा रहा था।
ब्लडप्रेशर, डायबिटीज से लेकर कैंसर समेत तमाम बीमारियों की नकली दवाएं बाजार में मौजूद
ब्रांडेड दवाओं की कॉपी करके नकली दवाओं को बेचने वालों के तार यूपी, दिल्ली, हरियाणा और उत्तराखंड समेत कई राज्यों से जुड़े थे। यहां अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स की जीवन रक्षक नकली दवाएं भी बरामद हुईं। इतने बड़े रैकेट के सामने आने के बावजूद यूपी की एजेंसियों समेत एफएसडीए के अफसरों की सेहत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। लखनऊ के अमीनाबाद स्थित मेडिसिन मार्केट समेत वाराणसी और आगरा समेत कई शहरों के बड़े कारोबारियों ने अपने हाथ इस धंधे में काले कर रखे हैं।
अमीनाबाद समेत कई शहरों के दवा बाजारों के बड़े कारोबारी इस खेल में शामिल
जून 2021 में अमीनाबाद स्थित इसी मार्केट से करोड़ों की नकली दवाओं का जखीरा पकडऩे के बावजूद इन कारोबारियों को मानो बख्श दिया गया। जिसका नतीजा कोरोना काल में नकली रेमडेसिविर इंजेक्शन से लेकर तमाम नकली दवाओं के रूप में सामने आया। नकली दवाओं के खेल में इन कारोबारियों के साथ बाकायदा दागी डॉक्टरों से लेकर एमबीबीएस डिग्रीधारियों भी शामिल हैं। नकली दवाओं के रैपर और पैकेजिंग के लिए शिक्षित लोगों का ही इस्तेमाल होता है। प्रदेश में नकली दवाओं की सप्लाई हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और राजस्थान से मुख्य रूप से होती है। पूर्व में नकली दवाओं का बड़ा गैंग वाराणसी में पकड़ा गया था। गैंग का कारोबार कुली और कोरियर कंपनियों के जरिए चल रहा था।
आगरा में तीन दर्जन से ज्यादा दवाएं जांच में नकली साबित हुई
एसटीएफ ने कुलियों और कोरियर कंपनियों पर निगरानी बढ़ाई थी। छोटे पैकेट के जरिए दवाएं एक शहर से दूसरे शहर में पहुंचा दी जाती थी। एसटीएफ और एफएसडीए की टीम को पूरे नेटवर्क की जानकारी मिलने के बावजूद आगे कार्रवाई एक इंच भी नहीं बढ़ी। दो दिन पहले ही आगरा में तीन दर्जन से ज्यादा दवाएं जांच में नकली साबित हुई हैं। लेकिन लखनऊ समेत बाकी जिलों में नकली दवाओं के गैंग पर सीधी चोट करने से सरकारी तंत्र को परहेज इसलिए भी है क्योंकि इस खेल में कुछ अपने भी बेनकाब हो सकते हैं।
इंदिरानगर व जानकीपुरम से चलते हैं फर्जी कॉल सेंटर
ठीक एक साल पहले दिल्ली पुलिस ने तीन फर्जी कॉल सेंटरों का पर्दाफाश किया था। जो नकली और प्रतिबंधित दवाओं के खेल से जुड़े थे। जिन्होंने 6373 लोगों से दो करोड़ की ठगी की थी। इन सेंटर्स के सरगना लखनऊ के इंदिरानगर और जानकीपुरम से पूरा फर्जीवाड़ा चला रहे थे। मरीजों का डेटा खरीदकर इनसे सम्पर्क करके करोड़ों की नकली दवाएं थमाई जाती हैं। नकली दवाओं के इस हाईटेक गैंग की जड़ें आज तक लखनऊ में खत्म नहीं की जा सकी हैं।
अफसरों की पत्नी को लगाया था नकली इंजेक्शन, हुआ गर्भपाल
वर्ष 2010 में लखनऊ के एक अफसर की पत्नी गर्भवती थीं, जिन्हें डॉक्टर ने सुरक्षित प्रसव के लिए महंगा इंजेक्शन लगवाने का सुझाव दिया। ढाई हजार रुपये के इंजेक्शन की तीन डोज महिला को लगाई गई, इसके बाद भी उनका गर्भपात हो गया। अफसर और डॉक्टर ने इंजेक्शन बनाने वाली कंपनी से संपर्क किया तो पता लगा कि जिस इंजेक्शन की बात हो रही है, उसका उत्पादन कंपनी दो साल पहले ही बंद कर चुकी है। इसके बाद इस मामले में अवैध बिक्री व भंडारण के आरोप में लखनऊ और गोरखपुर से पांच लोगों की गिरफ्तारी भी हुई थी।
आयुर्वेद की 22 दवाओं में एलोपैथ का मिश्रण, 10 दवाएं नकली
आयुर्वेद में भी नकली और मिलावटी दवाओं का धंधा बढऩे लगा है। हाल ही में प्रदेश में 10 ऐसी दवाएं चिन्हित हुई हैं, जो जांच में निकली पाई गई हैं। इसके अलावा 22 ऐसी दवाएं भी हैं, जिनमें एलोपैथ के रसायनों का मिश्रण है। ये दवाएं हरियाणा, उत्तराखंड, पंजाब और मध्य प्रदेश में बनाई जा रही थी। आयुर्वेद निदेशक डॉ. पीसी सक्सेना ने ऐसी दवाओं पर प्रतिबंध लगा दिया है। हालांकि बाद में नामी कंपनियों की लिव 52 जैसी कुछ दवाओं को आयुर्वेद निदेशालय से राहत मिल गयी थी।
एक्ट में संशोधन, बार कोड से पहचानें असली दवा
केंद्र सरकार ने पिछले वर्ष नकली और असली दवाओं के बीच पहचान को सरल बनाने के लिए क्यूआर कोड की शुरुआत की थी। केंद्र सरकार ने तीन सैकड़ा दवाओं की में क्यूआर कोड लगाने की पहल की है। गूगल लेंस या मोबाइल फोन से स्कैन करके असली नकली दवा की पहचान की जा सकती है। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट 1940 में संशोधन करते हुए दवा कंपनियों को अपने ब्रांड पर एचटू/क्यूआर लगाना अनिवार्य कर दिया गया है। भारत के ड्रग्स कंट्रोल जनरल ऑफ इंडिया ने फार्मा कंपनियों को दवाओं पर बार कोड लगाएं लगाने के सख्त निर्देश जारी कर रखे हैं।
पूरा कारोबार हवाला के जरिए होता है: ड्रग इंस्पेक्टर
ड्रग इंस्पेक्टर ब्रजेश यादव के मुताबिक नकली दवाओं का पूरा कारोबार हवाला के जरिये किया जा रहा है। पेमेंट भी कुछ खास एप से कराया जाता है। आने वाले माल के लिए कोई भी बिल वाउचर इस्तेमाल नहीं होता है। निर्माता फैक्ट्रियों जहां स्थित हैं, खेल वहीं से चल रहा है। नकली दवाओं की सूचना और शिकायतों पर लगातार छापे की कार्रवाई की जा रही है। कई बार नकली दवाएं पकड़ी गयी है।
क्या कहती है लखनऊ केमिस्ट एसोसिएशन?
लखनऊ केमिस्ट एसोसिएशन के प्रवक्ता विकास रस्तोगी के मुताबिक राजधानी में करीब आठ हजार से अधिक दवा की दुकानें हैं। इसमें 3 हजार थोक और पांच हजार के करीब रिटेल दवाओं की दुकानें हैं। राजधानी में हर माह करीब 350 करोड़ का दवा कारोबार होता है। इसमें करीब 15 फीसदी की हिस्सेदारी नकली और डुप्लीकेट दवाओं की है। हमारे जैसे व्यापारियों के लिए ऐसे तथ्य बड़ी चिंता की बात है।
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