UP: अभी तक 25 फीसदी गायब डॉक्टर भी नहीं किए जा सके बर्खास्त

कार्रवाई को लेकर स्वास्थ्य विभाग और शासन के अफसर एक-दूसरे के पाले में फेंक रहे गोद

Sandesh Wahak Digital Desk: स्वास्थ्य विभाग से गायब सरकारी डॉक्टरों पर कार्रवाई का मामला लटकता नजर आ रहा है। इस मामले में स्वास्थ्य विभाग और शासन एक-दूसरे के पाले में गेंद फेंक रहे हैं। अभी तक विभाग से बिना बताये गायब 25 फीसदी डॉक्टरों पर भी शिकंजा नहीं कसा जा सका।

राजा गणपति आर

दरअसल करीब साल भर पहले स्वास्थ्य विभाग के निदेशक प्रशासन राजा गणपति आर ने प्रमुख सचिव स्वास्थ्य को गायब डॉक्टरों के मामले में विस्तृत रिपोर्ट भेजी थी। सूची में 742 डॉक्टरों के नाम थे। कई डॉक्टर छह माह से लेकर बीते एक दशक से अपनी ड्यूटी से नदारद हैं। नतीजतन प्रदेश के अस्पतालों में डॉक्टरों और विशेषज्ञों की भारी कमी है। विभाग में ज्वाइन करने वाले कई डॉक्टर भी सेवा को अलविदा बोल देते हैं। स्वास्थ्य विभाग और एनएचएम ने संविदा पर डॉक्टरों की तैनाती करके अधिकतम पांच लाख प्रति माह का वेतन भी तय किया।

Brajesh Pathak
यूपी के उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक

निदेशक स्वास्थ्य ने शासन को भेजी थी बर्खास्त करने की संस्तुति

इसके बावजूद योजना पूरी तरह परवान नहीं चढ़ सकी। सेवा से गायब तमाम डॉक्टर बड़े शहरों से लेकर विदेशों के नामी अस्पतालों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। इसके बावजूद विभाग ने अभी तक इन्हे बाहर का रास्ता नहीं दिखाया है। निदेशक प्रशासन की रिपोर्ट पर शासन ने कई आपत्तियां बीते वर्ष लगाईं थीं। जिसके निस्तारण के बावजूद नतीजा सिफर रहा। फिलहाल डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक भी अब इस प्रकरण में चुप्पी साधे हैं। कोरोनाकाल में मेडिकल इमरजेंसी होने के बावजूद इन सैकड़ों गायब डॉक्टरों का हृदय तनिक भी नहीं पसीजा। वर्ष 2010 में भी स्वास्थ्य विभाग ने करीब दो सैकड़ा लापरवाह डॉक्टरों को बर्खास्त किया था।

वर्षों से सेवा से गैरहाजिर चल रहे हैं करीब 750 डॉक्टर 

उस समय तैयार सूची में 10 वर्ष से गायब चल रहे डॉक्टरों के नाम शामिल थे। उस समय इन डॉक्टरों की एसीआर न होने के आधार पर कार्रवाई की गई थी। बर्खास्तगी के लिए डॉक्टरों की जो सूची तैयार की गई उसमें कई ऐसे हैं जो एमबीबीएस कर सरकारी नौकरी में आए और फिर पीजी की पढ़ाई कर निकल लिए। कुछ ऐसे पीजी पास डॉक्टर हैं, जिन्होंने सीधे लेवल टू यानी विशेषज्ञ डॉक्टर के रूप में नौकरी ज्वॉइन की थी, लेकिन बाद में अत्याधिक काम व कम सुविधाओं के कारण उनका मोहभंग हो गया और वह प्राइवेट अस्पताल नौकरी करने चले गए।

डॉक्टर

डॉक्टरों को लुभा रहे प्राइवेट अस्पताल व प्रैक्टिस

स्वास्थ्य विभाग में तैनात नए डॉक्टर को 70 हजार रुपये से थोड़ा ज्यादा मासिक वेतन मिलता है और रिटायरमेंट के करीब वरिष्ठ डॉक्टरों को तीन से साढ़े तीन लाख रुपये तक मासिक वेतन मिलता है। हालांकि सरकारी अस्पतालों में मरीजों की ज्यादा भीड़ के कारण डॉक्टरों पर काम का बोझ ज्यादा है। वहीं, प्राइवेट अस्पतालों में उन्हें शुरुआत में ही दो से ढाई लाख तक वेतन व बेहतर सुविधाएं मिलती हैं। तमाम डॉक्टर पांच लाख तक वेतन पाते हैं और काम का बोझ भी नहीं रहता।

सरकारी अस्पतालों के प्रशासनिक दिग्गज भी जिम्मेदार

लखनऊ के दिग्गज सरकारी चिकित्सा संस्थानों के तमाम बड़े प्रशासनिक अफसरों ने सेवा से इस्तीफा और रिटायरमेंट के बाद निजी अस्पतालों की ओर रुख किया है। इन बड़े अस्पतालों के लिए उन्होंने अपने करीबी विशेषज्ञों को भी नियुक्त कराया है। मेदांता जैसे बड़े अस्पताल में पीजीआई के पूर्व निदेशक राकेश कपूर मुखिया हैं। उनके जाते ही कई बड़े डॉक्टरों ने पीजीआई को अलविदा बोलकर उनके साथ काम करना उचित समझा। यही हाल केजीएमयू समेत बाकी बड़े संस्थानों का भी है।

क्या कहते हैं स्वास्थ्य विभाग और शासन के अफसर

स्वास्थ्य विभाग के एक बड़े अफसर के मुताबिक हमने शासन को पूरा प्रकरण संदर्भित कर दिया है। शासन स्तर से कार्रवाई लगातार की जा रही है। अभी तक करीब 30 गायब डॉक्टरों को बर्खास्त किया गया है। एक साथ सभी डॉक्टरों को बर्खास्त किया जाना व्यवहारिक नहीं होगा।  वहीं शासन के एक अफसर के मुताबिक अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी दूर करने के लिए नए डॉक्टरों की भर्तियां की गयी हैं। गायब डॉक्टरों पर लगातार कार्रवाई की जा रही है, उन्हें कोर्ट से कोई राहत नहीं मिले, इसको भी देखना होगा।

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