ध्वस्तीकरण आदेश का पालन क्यों नहीं किया गया? हाईकोर्ट ने लखनऊ डीएम को लगाई फटकार
लक्ष्मण टीला के पास अवैध निर्माण ढहाने का मामला
Sandesh Wahak Digital Desk: हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने शहर के चौक इलाके में लक्ष्मण टीले के पास अवैध निर्माण हटवाने के मामले में लखनऊ के डीएम से कारण पूछा है कि आखिर क्यों काफी समय से ध्वस्तीकरण आदेश का पालन नहीं किया गया है। कोर्ट ने यह भी पूछा कि ऐतिहासिक स्मारकों और पुरातात्विक स्थलों के नियम के तहत उन्होंने ढहाने के आदेश के अमल को क्या कदम उठाए हैं? कोर्ट ने मामले में राज्य सरकार के अधिवक्ता को पूरी जानकारी सरकार से लेकर अगली सुनवाई पर 29 मई को पेश करने को कहा है।
लखनऊ के जिलाधिकारी से मांगा जवाब
न्यायमूर्ति राजन रॉय और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ल की खंडपीठ ने यह आदेश ऋषि कुमार त्रिवेदी समेत 4 याचियों द्वारा दाखिल याचिका पर दिया। याचिका में कहा गया कि वर्ष 2016 और 2023 में कथित अवैध निर्माण को ढहाने के आदेश भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने दिए थे। जिनका पालन नहीं किया गया। याचियों का कहना था कि लखनऊ के डीएम को इन आदेशों के पालन में कानून के खिलाफ किए गए निर्माण को हटवाना था, जो नहीं किया गया। याचियों ने इस निर्माण को हटवाने के आदेशों के पालन की गुजारिश की है।
कोर्ट ने पहले, मामले में जानकारी तलब कर पक्षकार टीले वाली मस्जिद के मौलाना फजलुल मन्नान रहमानी को को डीएम के माध्यम से नोटिस तामील करवाने का आदेश देकर नोटिस तामील का सबूत पेश करने को कहा था। इसके तहत, बीती 17 मई को मौलाना की ओर से अधिवक्ता पेश हुए और वकालतनामा दाखिल किया।
कोर्ट के पूछने पर अधिवक्ता ने कहा कि ध्वस्तीकरण आदेश को अभी चुनौती नहीं दी गई है। अधिवक्ता ने मामले में जवाबी हलफनामा दाखिल करने को समय मांगा। इसपर कोर्ट ने उन्हें पक्ष पेश करने का मौका दिया। साथ ही कहा कि अन्य पक्षकार भी अगर चाहे तो जवाब दाखिल कर सकते हैं।
प्रदेश में इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस व पढ़ाई पर रोक नहीं : हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने एक अहम फैसले में कहा कि उत्तर प्रदेश में चिकित्सा पद्धति इलेक्ट्रो होम्योपैथी की पढ़ाई और प्रैक्टिस पर कोई रोक नहीं है, लेकिन प्रैक्टिस करने वाले अपने नाम के आगे डॉक्टर नहीं लिख सकते हैं। साथ ही किसी को भी इसकी डिग्री या डिप्लोमा नहीं दिया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी की पढ़ाई पर भी रोक नहीं है, लेकिन इसकी शिक्षा दे रहे संस्थान केवल प्रमाणपत्र जारी कर सकते हैं। सरकार ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी के लिए अभी कोई कानूनी प्रावधान नहीं बनाया है, इसलिए संस्थान किसी को भी डिग्री या डिप्लोमा नहीं दे सकते हैं।
न्यायमूर्ति विवेक चैधरी और न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ने यह आदेश हरदोई और अयोध्या के इलेक्ट्रो होम्योपैथी के दो प्रैक्टिसनरों राजेश कुमार व एक अन्य की याचिका पर दिया। याचिका वर्ष 2009 में दाखिल की गई थी। इसके बाद समय के साथ केंद्र सरकार, राज्य सरकार, सुप्रीम कोर्ट और कुछ हाईकोर्ट ने इलेक्ट्रो होम्योपैथी के विषय में आदेश जारी किए। उन सभी का संज्ञान में लेते हुए कोर्ट ने यह आदेश दिया है।
इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस को लेकर कुछ निर्देश
कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ने 25 नवंबर, 2003 को एक आदेश जारी किया था। जिसमें इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस को लेकर कुछ दिशा-निर्देश हैं। कहा कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस में उन दिशा-निर्देशों का पालन किया जाना जरूरी है। कहा कि इलेक्ट्रो होम्योपैथी की प्रैक्टिस से याचीगण को तब तक न रोका जाए जब तक कि सरकार इसको लेकर कोई नियम नहीं बनाती है। कोर्ट ने इस टिप्पणी व आदेश के साथ याचिका निस्तारित कर दी।