संपादक की कलम से: न्यायपालिका पर दबाव का सवाल
Sandesh Wahak Digital Desk: एक बार फिर एक विशेष गुट द्वारा न्यायपालिका पर दबाव बनाने और उसकी साख को कमजोर करने की कोशिश के सवाल उठने लगे हैं। देश के दिग्गज वकीलों के बाद अब सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 21 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों ने देश के प्रधान न्यायाधीश डीवाई चद्रचूड़ को पत्र लिखकर अपनी चिंताएं जाहिर की हैं। साथ ही प्रधान न्यायाधीश से इस अनावश्यक दबाव से न्यायपालिका को बचाने का आग्रह किया है।
सवाल यह है कि :
- कौन लोग हैं जो न्यायपालिका की साख को बट्टा लगाने की साजिश रच रहे हैं?
- ऐसा क्या हुआ कि अधिवक्ता और सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को सीजेआई को पत्र लिखने की जरूरत पड़ गयी है?
- क्या सार्वजनिक मंचों से अदालती फैसलों को अपने हित में तोड़-मरोडक़र पेश करने की प्रवृत्ति ने हालात बिगाड़ दिए हैं?
- क्या सियासी दल अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए न्यायपालिका को टुल्स की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश कर रहे हैं?
- क्या इस गंभीर और खतरनाक प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जरूरत नहीं है?
पिछले एक दशक से न्यायपालिका को अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए इस्तेमाल करने की लगातार कोशिशें की जा रही हैं। इसके लिए सार्वजनिक मंचों का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। हालत यह है कि फैसला पक्ष में आने पर जहां न्यायपालिका की जय-जयकार की जाती है वहीं विरोध में आने पर कोर्ट की साख पर सवाल उठाए जाते हैं।
सुप्रीम व हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों से अपने पत्र किस ओर कर रहा इशारा
इस तरह से न्यायपालिका पर दबाव बनाने की लगातार कोशिश की जा रही है। इसमें कौन लोग शामिल हैं, इसकी ओर सुप्रीम व हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों से अपने पत्र में इशारा भी किया है। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि ये वे लोग हैं जो अपने संकीर्ण राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों की पूर्ति के लिए न्यायिक प्रणाली में जनता के विश्वास को कम करने की कोशिश कर रहे हैं। इनका एक गुट है जो सोच-समझकर दबाव बनाने के लिए गलत सूचना और सार्वजनिक रूप से न्यायपालिका का अपमान कर रहे हैं।
यह हालात तब और बढ़ गए है जब भ्रष्टाचार के मुद्दों पर फंसे कई सियासी दलों के नेताओं के प्रति न्यायपालिका कोई नरमी नहीं बरत रही है। खुद प्रधान न्यायाधीश भी इस दबाव की साजिश को समझते हैं और उन्होंने इसका कई बार उल्लेख भी किया है। साथ ही कह चुके हैं कि न्यायपालिका के कंधे बहुत मजबूत हैं और वे इन दबावों को झेलने में सक्षम हैं। बावजूद इसके न्यायपालिका के साख को प्रभावित करने की किसी भी कोशिश को तत्काल रोकने की जरूरत है।
न्यायपालिका को इससे निपटने के लिए ठोस कार्ययोजना बनानी होगी अन्यथा सोशल मीडिया समेत अन्य मंचों से कोर्ट के आदेशों को तोड़-मरोडक़र अपने हित में इस्तेमाल की परंपरा खतरनाक रूप से बढ़ती जाएगी। जाहिर है, दिग्गज वकीलों और पूर्व न्यायाधीशों की चिंता न केवल बेहद गंभीर है बल्कि इसका जल्द निपटारा करना भी जरूरी है अन्यथा सिर के ऊपर पानी जा सकता है।
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