Lok Sabha Election: ब्रज क्षेत्र में बसपा का नए चेहरों पर दांव, क्या चुनावी बेड़ा होगा पार?
Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव में सियासी दलों के अपने अपने दावे हैं। एनडीए और इण्डिया गठबंधन के इतर कुछ दल ऐसे भी हैं, जिन्होंने अकेले ही चुनावी नैया को पार लगाने की ठानी है। इसमें बसपा का नाम सबसे प्रमुख है। ब्रज क्षेत्र में सपा को भीतरघात भारी पड़ सकता है। वहीं बसपा ने इस बार इस क्षेत्र में नए चेहरों पर सियासी दांव लगाया है। देखना लाजिमी होगा कि क्या इस बार बसपा की सोशल इंजीनियरिंग कुछ कमाल दिखा पाएगी।
पिछले चुनावों में सोशल इंजीनियरिंग में भी नहीं दिखा पाई कमाल
बात सिर्फ नए चेहरों तक ही सीमित नहीं है, राजनीति के दिग्गज खिलाडिय़ों पर भी बसपा ने दांव लगाया, वह भी चुनावी बेड़ा पार नहीं करा पाए। इस बार बसपा किसी भी दल से गठबंधन किए बगैर अकेले दम पर चुनाव मैदान में है। बसपा ने ब्रज क्षेत्र की सभी लोकसभा सीटों पर नए चेहरे उतारे हैं। चुनावी जमीन पर बसपा का यह प्रयोग कितना सफल होगा इस पर सभी की नजर है। वैसे अब तक के चुनाव के नतीजे बताते हैं कि बसपा को कभी दूसरे तो कहीं तीसरे नंबर पर ही संतोष करना पड़ा है। बसपा की सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला हर बार ब्रज क्षेत्र में फेल रहा है।
2019 के चुनाव में बसपा का सपा के साथ गठबंधन था। बसपा पूरी ताकत के साथ आगरा सीट पर चुनाव लड़ी थी। हाथरस के मनोज सोनी को टिकट दिया लेकिन बसपा यह चुनाव भी नहीं जीत पायी। पार्टी का प्रत्याशी दूसरे स्थान पर ही रहा। इस बार पार्टी ने नए चेहरे के रूप में पूजा अमरोही को चुनाव मैदान में उतारा है। फिरोजाबाद में पूरी ताकत लगाने के बाद भी बसपा अभी तक खाता नहीं खोल पाई है।
2019 में था सपा बसपा का गठबंधन
2009 के आम चुनाव में बसपा ने अखिलेश यादव के खिलाफ ब्रज के दिग्गज नेता प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल को उतारा था, लेकिन बसपा यहां दूसरे स्थान पर रही। 2009 के उप चुनाव में भी बसपा को यहां जीत नहीं मिल पाई। 2014 में चुनाव में बसपा ने क्षत्रिय कार्ड खेला और विश्वदीप सिंह को टिकट दिया लेकिन बसपा तीसरे स्थान पर रही। 2019 में बसपा का सपा के साथ गठबंधन था। तब भी सपा को जीत नहीं मिल पायी।
एटा में 2014 बसपा ने मुस्लिम प्रत्याशी पर दांव लगाया। पार्टी के उम्मीदवार नूर मोहम्मद खां तीसरे नंबर पर रहे। 2019 में गठबंधन के तहत सपा प्रत्याशी भी एटा से जीत नहीं सका। 2014 में मैनपुरी से बसपा की डॉ. संघमित्रा मौर्य तीसरे नंबर पर रहीं थीं। 2009 विनय शाक्य दूसरे नंबर पर और 2004 अशोक शाक्य भी दूसरे नंबर पर रहे थे। यानी सपा के गढ़ में बसपा ही सपा को टक्कर जरूर देती दिखाई दी लेकिन जीत नहीं सकी। अब मैनपुरी से बसपा ने फिर नए चेहरे पर दांव लगाया है। शाक्य समाज से डॉ. गुलशनदेव शाक्य को टिकट दिया है।
मथुरा में 2014 में बसपा के विवेक निगम तीसरे नंबर पर रहे। 2009 में बसपा ने ब्राह्रमण कार्ड खेला और पूर्व मंत्री और ब्रज की पट्टी के दिग्गज नेता श्याम सुंदर शर्मा पर दांव लगाया। तब भी बसपा जीत नहीं पायी, दूसरे नंबर पर ही संतोष करना पड़ा। 2004 में बसपा के चौधरी लक्ष्मी नरायन दूसरे नंबर पर रहे। इस बार बसपा ने यहां से नए फिर चेहरे पर दांव लगाया है। कमलकांत उपमन्यु का टिकट काटकर बसपा ने पूर्व आईआरएस अधिकारी सुरेश सिंह को मैदान में उतारा है।
ये युवा चेहरे, राजनीति में नए
फिरोजाबाद में बसपा ने युवा चेहरे पर दांव लगाकर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश की है। यहां सत्येंद्र जैन सौली को टिकट दिया है। सौली वैश्य समाज से जुड़े हैं और युवा भी हैं। उनकी पहले से कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप वह सक्रिय रहे हैं।
बसपा ने सपा के गढ़ में राजनीति के नए खिलाड़ी पर दांव लगाकर वैश्य कार्ड भी खेला है। ऐसा ही प्रयोग बसपा ने मैनपुरी में किया है। डॉ. गुलशनदेव शाक्य की भी पहले से कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है। वह भी युवा हैं। शाक्य वोटों को बांधे रखने की कोशिश के साथ नए चेहरे पर बसपा का प्रयोग कितना सफल होगा इस पर सभी की नजर है।
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