संपादक की कलम से : कच्चातिवु द्वीप पर सवाल
Sandesh Wahak Digital Desk: ठीक लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा ने वर्षों पहले भारतीय द्वीप कच्चातिवु को श्रीलंका को सौंपने का मुद्दा उठाकर सियासत को गर्म कर दिया है। खुद पीएम मोदी, पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस फैसले को लेकर कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं। उन्होंने सार्वजनिक मंच से कहा कि रणनीतिक रूप से अहम इस द्वीप को श्रीलंका को सौंपकर कांग्रेस ने भारत की अखंडता पर चोट की।
सवाल यह है कि :-
- कच्चातिवु द्वीप इंदिरा सरकार ने श्रीलंका को क्यों सौंपा?
- क्या इसके रणनीति महत्व को तत्कालीन कांग्रेस सरकार समझ नहीं सकी थी?
- क्या अब इस द्वीप को वापस लिया जा सकता है?
- क्या द्वीप को सौंपने से श्रीलंका-भारत के बीच संबंध गहरे हुए?
- तमिलनाडु के विरोध के बावजूद इस फैसले पर मुहर क्यों लगाई गई?
- क्या तत्कालीन सरकार ने श्रीलंका की दोस्ती के लिए राष्ट्रहित को दरकिनार कर दिया था?
- आज इस मुद्दे को उठाने के पीछे भाजपा की मंशा क्या है?
- क्या यह विवाद निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच संबंधों को बिगाड़ सकता है?
कच्चातिवु द्वीप भारत के रामेश्वरम और श्रीलंका के नेदुनथीवु के बीच स्थित है। यह बंगाल की खाड़ी को अरब सागर से जोड़ता है। आजादी के समय इस पर भारत का अधिकार था। हालांकि श्रीलंका इस पर अपना दावा करता था। तमिलनाडु के मछुआरे यहां पर मछली पकडऩे जाते थे। सैन्य रणनीति के लिहाज से इसका बेहद महत्व है। आज जब श्रीलंका चीन के पाले में खेल रहा है तो इस द्वीप की प्रासंगिकता और बढ़ गयी है।
भारतीय मछुआरों की गिरफ्तारी का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा
यहां से श्रीलंका और समुद्र में होने वाली चीनी गतिविधियों पर आसानी से नजर रखी जा सकती है लेकिन तत्कालीन इंदिरा सरकार ने दोस्ती प्रगाढ़ करने के लिए इस द्वीप को 1974 में श्रीलंका को सौंप दिया। 1976 में एक और समझौता हुआ और इस द्वीप पर भारतीय मछुआरों का जाना प्रतिबंधित कर दिया है। लिहाजा आज यहां पहुंचने वाले भारतीय मछुआरों को श्रीलंकाई सेना कैद कर लेती है। बाद में सरकार के हस्तक्षेप के बाद उन्हें छोड़ा जाता है।
तब तमिलनाडु में इसका जमकर विरोध किया गया था लेकिन तत्कालीन सरकार ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। बाद में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और सरकार की ओर से दलील दी गई कि इस द्वीप को पाने के लिए युद्ध करना पड़ेगा। इसमें दो राय नहीं कि तमिलनाडु में सियासी बढ़त लेने के लिए भाजपा ने इस मामले को उठाया है। माना जा रहा है कि अन्नामलाई के नेतृत्व में भाजपा यहां अपनी पकड़ मजबूत करना चाहती है।
इस सबके बावजूद यह सवाल लाजिमी है कि चीन से युद्ध के बावजूद भारत की तत्कालीन सरकार ने इस द्वीप के रणनीतिक महत्व को नजरअंदाज क्यों किया। भाजपा भले ही इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस पर हमलावर हो, भारत की बदली गई इस भौगोलिक स्थिति को सुधारने के लिए शायद ही कोई सरकार युद्ध जैसे कदम उठाए। हां, यदि कूटनीति से इसे प्राप्त किया गया तो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में भारत काफी मजबूत जरूर हो जाएगा।