संपादक की कलम से: किसान बनाम सरकार
Sandesh Wahak Digital Desk : एक बार फिर यूपी, हरियाणा और पंजाब के किसान सडक़ों पर उतर आए हैं। वे फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गारंटी को लेकर कानून बनाने और हर प्रकार के कर्ज माफी समेत कई मांगें सरकार से कर रहे हैं। हालांकि इस मामले में केंद्रीय मंत्रियों के साथ किसान नेताओं की बैठक हुई लेकिन वार्ता बेनतीजा रहने के बाद किसानों ने दिल्ली की ओर कूच भी कर दिया है। बॉर्डर पर हंगामा हुआ। वहीं दिल्ली पुलिस ने किसानों को राष्ट्रीय राजधानी में प्रवेश से रोकने के लिए पुख्ता व्यवस्था की है।
सवाल यह है कि :
- लोकसभा चुनाव से ठीक पहले तीन राज्यों के किसान संघों ने मार्च क्यों निकाला?
- आखिर किसानों को हर बार अपनी मांगों को लेकर आंदोलन के लिए मजबूर क्यों होना पड़ता है?
- क्या समस्या का समाधान वार्ता से नहीं निकल सकता है?
- क्या हंगामा और प्रदर्शन के जरिए मांगों को पूरा कराया जा सकता है?
- क्या दिल्ली मार्च पिछले किसान आंदोलन की तरह लंबा चलेगा?
- क्या सरकार किसानों की समस्याओं के समाधान को लेकर गंभीर नहीं है?
- क्या आंदोलन का कोई परिणाम निकल सकेगा?
- क्या इस आंदोलन के पीछे कोई सियासी कारण भी काम कर रहा है?
भारत को कृषि प्रधान देश माना जाता है। कृषि का जीडीपी में बड़ा योगदान रहता है। कोरोना काल में जब तमाम आर्थिक गतिविधियां ठप पड़ गई थीं तब कृषि उत्पादों ने ही देश की अर्थव्यवस्था को संभाला था। अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त राशन की सरकार की योजना किसानों की मेहनत के कारण ही सफल हुई है।
किसानों की मेहनत पर बिचौलिए मुनाफा कमा रहे
वहीं सरकार के तमाम दावों के बावजूद किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार होता नहीं दिख रहा है। किसानों की मेहनत पर बिचौलिए मुनाफा कमा रहे हैं। वे औने-पौने दाम पर किसानों से फसल खरीद लेते हैं और ऊंचे दाम पर बाजार में बेच देते हैं। यही वजह है कि किसान फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गारंटी चाहता है। इसके लिए वह सरकार से कानून बनाने की मांग काफी वक्त से कर रहा है। इसके अलावा वह हर प्रकार के कर्ज से माफी की मांग भी कर रहा है।
दूसरी ओर सरकार इस मामले में कोई सार्थक पहल करती नहीं दिख रही है। लिहाजा किसान एक बार फिर सडक़ों पर उतरे हैं। किसानों के मार्च पर रोक लगाने के लिए पाबंदिया लगाई गयी हैं। खुफिया सूत्रों से पता चला है कि इस बार भी किसान कम से कम छह माह तक धरना-प्रदर्शन की तैयारी कर दिल्ली की ओर बढ़ रहे है।
हालांकि बात-बात पर आंदोलन को उचित नहीं कहा जा सकता क्योंकि इससे आम आदमी को सबसे अधिक परेशानी उठानी पड़ती है। किसान संघों को चाहिए था कि वे सरकार से कई दौर की वार्ता करते और इसके बाद आंदोलन की राह पकड़ते। वहीं सरकार को भी चाहिए कि वह किसानों की समस्याओं का समाधान करने की दिशा में ठोस पहल करे अन्यथा इस प्रकार आए दिन होने वाला टकराव देश के लिए अच्छा नहीं होगा।