संपादक की कलम से : रालोद का राजग से जुड़ने का अर्थ
Sandesh Wahak Digital Desk: आखिरकार रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने भाजपा नीत राजग गठबंधन में आने का ऐलान कर दिया है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश में जयंत का यह फैसला न केवल सपा बल्कि इंडिया गठबंधन के लिए भी किसी बड़े झटके से कम नहीं है। इसके साथ भाजपा ने उत्तर प्रदेश और बिहार में दो बड़े गठबंधन सहयोगियों को अपने पाले में कर लिया है।
सवाल यह है कि :
- जयंत चौधरी के इस फैसले के निहितार्थ क्या हैं?
- क्या इससे उत्तर प्रदेश की सियासी बिसात में भाजपा ने अपने को और मजबूत कर लिया है?
- आखिर जयंत को इंडिया और सपा दोनों ही गठबंधन से किनारा क्यों करना पड़ा?
- क्या चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न सम्मान दिए जाने के ऐलान के बाद जयंत को यह फैसला मजबूरी में लेना पड़ा?
- क्या रालोद ने सियासी यर्थाथ को समझते हुए ये कदम जानबूझकर उठाए हैं?
- क्यों कांग्रेस और सपा अपने साथियों को संभाल नहीं पा रही है?
- इसका आम चुनाव पर कितना असर पड़ेगा?
- क्या इस गठबंधन का असर पश्चिमी यूपी में भाजपा को मजबूती देगी?
इंडिया गठबंधन भले ही पूरे जोश के साथ बनाया गया हो लेकिन जब से कांग्रेस ने अप्रत्यक्ष रूप से इसकी कमान अपने हाथ में लेने की कोशिश की हालात बिगड़ते चले गए। बिहार में कभी भाजपा के सहयोगी रहे नीतीश कुमार ने न सिर्फ इंडिया गठबंधन को बॉय-बॉय कर दिया बल्कि राजग के साथ मिलकर एक बार फिर सरकार बना ली।
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर बीजेपी ने चला दांव
वहीं यूपी में सपा के साथ गठबंधन में रहे रालोद प्रमुख ने राजग के साथ हाथ मिला लिया है। ऐसा नहीं है कि जयंत से गठबंधन के लिए भाजपा ने लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कोशिश की। दरअसल, यूपी के पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान भी भाजपा ने रालोद को अपने साथ आने का न्योता दिया था, तब बात नहीं बनी थी लिहाजा सपा और रालोद ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा था और इसका फायदा भी रालोद को मिला। वहीं, भाजपा को सीटों का घाटा हुआ।
भाजपा यह बात अच्छी तरह जानती है कि यदि उसे पश्चिमी यूपी में अपनी पोजिशन बेहतर करनी है तो रालोद का साथ उसके लिए सबसे मुफीद होगा। वहीं रालोद ने भी सियासी यथार्थ को समझते हुए राजग के साथ जाना बेहतर समझा है क्योंकि गठबंधन में बिखराव के कारण लोकसभा चुनाव में उसे लाभ होता नहीं दिख रहा है।
जयंत इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि भाजपा ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने का ऐलान कर किसानों को बेहतर संदेश दिया है। ऐसी स्थिति में जयंत को सपा गठबंधन में रहने से लाभ कम हानि होने की अधिक आशंका दिख रही है। इसके अलावा सीटों को भी लेकर सपा-रालोद में तालमेल नहीं बन सका था। उसे मनचाही सीटें नहीं मिली थीं। साफ है जयंत के भाजपा के साथ आने से दोनों को लाभ मिलने की उम्मीद है जबकि सपा और इंडिया गठबंधन के लिए यह बड़ा झटका साबित हो सकता है।