संपादक की कलम से: सभापति धनखड़ का दर्द
Sandesh Wahak Digital Desk: राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बार फिर सदन में उपजी अव्यवस्था पर अपना दर्द बयां किया। उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा पर उनके पौत्र जयंत चौधरी को बोलने की अनुमति दी तो कांग्रेस सदस्यों ने हंगामा कर दिया।
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने सभापति पर नियमों की अनदेखी करने का आरोप तक लगा दिया। इस पर सभापति ने अपना क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि वे कांग्रेस के अपमानजनक आचरण से इतना दुखी हुए कि उनके मन में अपने पद से इस्तीफा देने का विचार तक आ गया।
सवाल यह है कि :
- कांग्रेस नेता चौधरी चरण सिंह को मिले सम्मान पर जयंत चौधरी के सदन में बोलने पर इतने असहज क्यों हो गए?
- क्या बात-बात पर संसद के दोनों सदनों में हंगामा करने की विपक्ष की प्रवृत्ति को उचित कहा जा सकता है?
- क्या बिना हंगामा किए सभापति से सवाल नहीं पूछा जा सकता था?
- क्या रालोद के विपक्षी गठबंधन से अलग होने की अटकलों से कांग्रेस नेतृत्व परेशान हो गया है?
- क्या सत्तारूढ़ भाजपा को सियासी दांव-पेच में पछाड़ नहीं पाने के चलते विपक्ष ऐसा कर रहा है?
लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी ने किसानों के मसीहा कहे जाने वाले पूर्व पीएम चौधरी चरण सिंह समेत देश के पांच दिग्गजों को भारत रत्न देने का ऐलान किया है। राजग सरकार की इस घोषणा का असर पश्चिमी यूपी, हरियाणा और पंजाब के किसानों और जाट बिरादरी पर पड़ा है। चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने के ऐलान के बाद किसानों ने जिस तरह जश्न मनाया है, उससे इसकी पुष्टि होती है। इस ऐलान का असर सियासत पर भी दिख रहा है।
जयंत चौधरी ने राजग के साथ जाने से खुलकर इंकार नहीं किया
पश्चिमी यूपी में प्रभाव रखने वाले राष्ट्रीय लोकदल के विपक्षी गठबंधन को छोडक़र भाजपा नीत गठबंधन में आने की चर्चा गर्म हो गयी है। रालोद प्रमुख जयंत चौधरी ने राजग के साथ जाने से खुलकर इंकार नहीं किया है। राज्यसभा में दिए गए अपने भाषण में जयंत ने जिस तरह मोदी सरकार की तारीफ की है, उससे भी स्थितियां बहुत कुछ साफ होती नजर आ रही है।
स्पष्ट है, कांग्रेस नेता अपने गठबंधन के लगातार तितर-बितर होने से परेशान है। इस कारण भी वे जयंत के बोलने पर हंगामा करते दिखे। हालांकि, कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष पिछले पांच साल में हर सत्र में हंगामा करता रहा है। इस मामले में कई सांसदों को निलंबित भी किया गया। लिहाजा कई विधेयक बिना चर्चा के पास हो गए। ऐसे में धनखड़ का दर्द वाजिब है।
सवाल यह है कि लोकतंत्र की रक्षा का दावा करने वाला विपक्ष लोकतंत्र के मंदिर में बात-बात पर हंगामा क्यों करता है? विपक्ष को यह समझना होगा कि जनता ने उसे हंगामा करने नहीं बल्कि अपनी समस्याओं के हल के लिए चुनकर सदन भेजा है। इस प्रकार की कार्यशैली का जनता पर गलत असर पड़ता है और इसका खामियाजा उसे चुनाव में उठाना पड़ सकता है।