संपादक की कलम से : जमीन विवाद और सरकारी तंत्र

Sandesh Wahak Digital Desk : यूपी की राजधानी लखनऊ के मलिहाबाद में जमीन विवाद में मां-बेटे समेत तीन लोगों की दिनदहाड़े हत्या कर दी गयी। यह वारदात पैमाइश के दौरान हुई। पुलिस और प्रशासन जांच कर कार्रवाई की बात कर रहा है।

सवाल यह है कि :

  • जमीनी विवाद में आए दिन खूनी संघर्ष क्यों हो रहे हैं?
  • मुख्यमंत्री के आदेश के बावजूद नौकरशाही राजस्व वादों के निस्तारण में घोर लापरवाही क्यों बरत रही है?
  • भूमि विवाद के मुकदमों पर तारीख-पर-तारीख की परंपरा क्यों जारी है?
  • जमीन विवाद में हो रही हत्याओं के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है?
  • क्या सरकारी कर्मियों की मिलीभगत के कारण हालात बेकाबू होते जा रहे हैं?
  • ऐसे मामलों में कानून की धज्जियां उड़ाने वालों पर शिकंजा क्यों नहीं कसा जा रहा है?
  • किसकी शह पर सरकारी से लेकर निजी जमीनों पर दबंग कब्जा कर रहे हैं?
  •  क्या पूरा तंत्र ही भ्रष्टाचार के आगे घुटने टेक चुका है?
  • क्या जमीनी विवाद में हो रही हत्याओं को केवल अपराध भर माना जा सकता है?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कई बार प्रशासनिक अधिकारियों को राजस्व वादों का जल्द निपटारे के आदेश दे चुके हैं। अधिकारी भी कागजों पर आल इज वेल बता रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि भूमि विवादों के निस्तारण में प्रशासनिक तंत्र घोर लापरवाही बरत रहा है। यही वजह है कि उत्तर प्रदेश के राजस्व न्यायालय में लाखों मुकदमे लंबित हैं।

प्रदेश में 2941 राजस्व अदालतें सक्रिय

इसमें दो लाख के करीब ऐसे केस हैं जो पिछले पांच साल से लंबित हैं। तारीख-पर-तारीख की परंपरा जारी है। यह स्थिति तब है जब प्रदेश में 2941 राजस्व अदालतें सक्रिय हैं। अकेले लखनऊ में ऐसे 50 से अधिक कोर्ट हैं। आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल नवंबर में पैमाइश के 633594, बंटवारे के 184262 और नामांतरण के 6,33,594 केस लंबित थे। मुकदमों के निस्तारण के लिए सरकार ने नए दिशा-निर्देश जारी किए। इसके तहत पैमाइश 90 दिन, बंटवारा छह माह और नामांतरण 90 दिन में हो जाना चाहिए लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है।

नौकरशाही की इस सुस्त चाल को लेकर सीएम ने सख्त रुख अपनाया लेकिन इसका भी कोई असर पड़ता नहीं दिख रहा है। समस्या का समाधान होने की जगह हालात लगातार बिगड़ते जा रहे हैं। भ्रष्टाचार का आलम यह है कि सरकारी कर्मियों के साथ मिलकर दबंग न केवल सरकारी जमीनों बल्कि निजी भूमि पर भी कब्जा कर रहे हैं और आम आदमी की सुनवाई कहीं नहीं हो रही है। यही वजह है कि जमीन विवाद को लेकर खूनी संघर्ष आम होता जा रहा है।

साफ है कि यदि सरकार जमीनी विवादों का समय से निस्तारण करना चाहती है तो उसे न केवल नौकरशाही के पेंच कसने होंगे बल्कि जमीनी स्तर पर विवादों को निपटरा हुआ है या नहीं, इसका स्थलीय निरीक्षण और जानकारी के लिए ठोस कदम उठाने होंगे अन्यथा नौकरशाही कागजों पर सब-कुछ दुरुस्त दिखाती रहेगी और जमीन खून से लाल होती रहेगी।

Get real time updates directly on you device, subscribe now.