संपादक की कलम से: भारत बनाम मालदीव
Sandesh Wahak Digital Desk : भारत के खूबसूरत द्वीप लक्षद्वीप को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भारतीयों समेत दुनियाभर के लोगों से यहां की यात्रा का आह्वान छोटे से द्वीपीय देश मालदीव के तीन मंत्रियों को रास नहीं आया। इन्होंने इस मामले पर न केवल भारत बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक टिप्पणी की। भारत की ओर से इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई।
मालदीव के विपक्षी नेताओं ने भी इन मंत्रियों के बयानों की न केवल निंदा की बल्कि मुइज्जू सरकार से भारत से माफी मांगने की मांग उठाई। इस पूरे घटनाक्रम के बाद मालदीव सरकार ने अपने तीन मंत्रियों को पद से हटा दिया है लेकिन इससे भारत-मालदीव के रिश्तों में गहरी दरार पड़ गयी है।
सवाल यह है कि :
- क्या भारत और प्रधानमंत्री मोदी को निशाना बनाकर मालदीव ने अपने लिए बड़ी समस्या पैदा कर ली है?
- क्या अब वह भारत से सामान्य और आपत्ति के दिनों में मदद की उम्मीद कर सकता है?
- क्या भारतीय पर्यटकों और उद्योगपतियों के भरोसे चलने वाली उसकी अर्थव्यवस्था आने वाले दिनों में घुटनों के बल आ जाएगी?
- क्या चीन का पिछलग्गू बनकर मालदीव भारत से मिलने वाली आर्थिक मदद की भरपाई कर पाएगा?
- क्या तीन मंत्रियों को हटाने के बाद दोनों देशों के संबंध पहले की तरह सामान्य हो सकेंगे?
हिंद महासागर में मौजूद द्विपीय देश मालदीव, जनसंख्या और क्षेत्रफल के लिहाज से भले छोटा है लेकिन रणनीतिक और व्यापारिक रूप से काफी अहम है। भारत और मालदीव के बीच रिश्तों में हाल में खटास तब पैदा हुई जब यहां के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू बने। इनकी पार्टी ने भारत विरोध के नाम पर चुनाव भी लड़ा था। मुइज्जू चीन परस्त माने जाते हैं।
अब्दुल्ला महजूम माजिद ने किया भारत को लेकर बेहद आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल
यही वजह है कि जब प्रधानमंत्री मोदी ने लक्ष्यद्वीप को एक बेहतर समुद्री पर्यटन स्थल के तौर पर प्रमोट किया तो मालदीव को खतरा महसूस होने लगा और इनके मंत्रियों मालशा शरीफ, मरियम शिउना और अब्दुल्ला महजूम माजिद ने मोदी और भारत को लेकर बेहद आपत्तिजनक भाषा का इस्तेमाल किया।
भारतीय दूतावास ने न केवल इसका विरोध किया बल्कि सोशल मीडिया में भी बायकॉट मालदीव ट्रेंड होने लगा। चौबीस घंटे के अंदर दस हजार से अधिक भारतीयों ने मालदीव की अपनी यात्रा रद्द कर दी और यह सिलसिला जारी है। इसने मुइज्जू सरकार को हिला दिया है। इसकी बड़ी वजह यह है कि यहां की जीडीपी का 56 फीसदी हिस्सा पर्यटन से आता है, जिसमें भारतीयों का योगदान सबसे अधिक है।
इसके अलावा मालदीव को भारत समय-समय पर आर्थिक व सैन्य मदद भी उपलब्ध कराता है। ऐसे में यदि भारत ने अपना हाथ खींच लिया तो मालदीव की हालत बदतर हो जाएगी क्योंकि आर्थिक रूप से कमजोर हो चुका चीन मालदीव की शायद उतनी मदद न कर सके, जिससे भारत के नुकसान की भरपाई हो। वहीं भारत सरकार फिलहाल वॉच एंड सी की रणनीति पर चल रही है लेकिन अब मुइज्जू की नीति पर भारत-मालदीव संबंधों का भविष्य टिक गया है।