पतंजलि गुरुकुलम की रक्षा मंत्री ने रखी आधारशिला, बोले- संस्कृत के संरक्षण के लिए गुरुकुल आवश्यक
Sandesh Wahak Digital Desk : केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह ने शनिवार को कहा कि लॉर्ड मैकाले को देश की पारंपरिक शिक्षा प्रणाली को खत्म करने और लोगों को मानसिक रूप से गुलाम बनाने के लिए भारत भेजा गया था।
उन्होंने कहा कि भारतीय मानस पर मैकाले की शिक्षा प्रणाली के प्रभाव का मुकाबला करने के लिए ‘गुरुकुल’ का पुनरुद्धार आवश्यक है। हालांकि, रक्षा मंत्री ने सलाह दी कि शिक्षा के इन केंद्रों को पारंपरिक शिक्षा प्रणाली के साथ ‘कृत्रिम बुद्धिमत्ता’ और ‘क्वांटम प्रौद्योगिकी’ जैसी उभरती प्रौद्योगिकी के साथ तालमेल बनाना चाहिए।
सिंह ने हरिद्वार में पतंजलि गुरुकुलम के शिलान्यास समारोह में संतों और छात्रों की एक सभा में कहा कि मैकाले को भारतीयों के मानस पर कब्जा करके उन्हें मानसिक रूप से गुलाम बनाने के लिए भारत भेजा गया था।
हरिद्वार में ‘गुरुकुलम एवं आचार्यकुलम’ के शिलान्यास समारोह में संबोधन।
https://t.co/DEM1Iz9TrA— Rajnath Singh (@rajnathsingh) January 6, 2024
भारत की सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत के प्रति मैकाले के उपेक्षापूर्ण रवैये के बारे में बात करते हुए, केंद्रीय मंत्री ने कहा कि ब्रिटिश अधिकारी ने एक बार एक यूरोपीय पुस्तकालय में एक अलमारी को भारत की सभी सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत से बढ़कर बताया था।
देश में पाश्चात्य शिक्षा प्रणाली की शुरुआत लॉर्ड मैकाले ने की थी। सिंह ने कहा कि मैकाले की शुरू की गई शिक्षा प्रणाली ने भारतीयों की ऐसी पीढ़ियों को जन्म दिया, जो अपनी संस्कृति और परंपराओं के बारे में हीन भावना लेकर बड़ी हुई। सिंह ने कहा कि हमारी नैतिक विरासत को जीवित रखने” के लिए शिक्षा की पारंपरिक ‘गुरुकुल’ प्रणाली का पुनरुद्धार आवश्यक है, इन केंद्रों को देश के सांस्कृतिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।
संस्कृत के संरक्षण के लिए आगे आएं देश के गुरुकुल
इस अवसर पर, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव भी उपस्थित रहे। राजनाथ सिंह ने अपने उद्बोधन में अपील की कि संस्कृत के संरक्षण और संवर्धन के लिए देश के गुरुकुल आगे आएं। उन्होंने कहा कि संस्कृत वैज्ञानिक भाषा है। दुनिया के कई विद्वानों ने प्रकृति और सृष्टि को समझने के लिए संस्कृत का ही अध्ययन किया। उन्होंने कहा कि संस्कृत का अहम स्थान है। योग दर्शन भी महर्षि पतंजलि ने संस्कृत में ही लिखा था। उन्होंने संस्कृत पढ़ने लिखने और बोलने वालों की कम होती संख्या को लेकर चिंता जताई।