संपादक की कलम से : सांसदों का निलंबन और सियासत
Sandesh Wahak Digital Desk : संसद की सुरक्षा में सेंध को लेकर विपक्षी सांसदों ने जिस तरह का व्यवहार लोकसभा और राज्यसभा में किया, उसने एक बार फिर संसद की मर्यादा को तार-तार कर दिया। आसन का अपमान और अशोभनीय आचारण के आरोप में लोकसभा के 13 और राज्यसभा के एक सांसद को संसद के वर्तमान सत्र की शेष अवधि के लिए निलंबित कर दिया गया।
विपक्षी दलों का कहना है कि उन्हें सदन में सुरक्षा में सेंध पर सवाल पूछने और चर्चा कराने की मांग को लेकर सस्पेंड किया गया। इस पर खुद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने साफ कर दिया गया कि सांसद मामले पर राजनीति नहीं करें और उनको संसद की गरिमा को बनाए रखने के लिए निलंबित किया गया है।
सवाल यह है कि :
- क्या हंगामा करना और सदन की गरिमा को चोट पहुंचाना ही विपक्ष का लक्ष्य है?
- संसद की सुरक्षा व्यवस्था पर चर्चा क्यों नहीं करायी जा सकती है?
- क्या अपनी सुरक्षा के लिए संसद खुद जिम्मेदार है?
- क्या लोकसभा चुनाव के मद्देनजर विपक्ष इस तरह का हंगामा कर अपनी सियासत चमकाना चाहता है?
- क्या सदन की कार्यवाही को न चलने देना व जरूरी विधेयकों पर चर्चा कराकर पास कराने में अड़गा लगाने को उचित कहा जा सकता है?
- क्या ये स्थितियां लोकतंत्र पर कुठाराघात नहीं हैं?
पिछले एक दशक से संसद में विपक्षी सांसदों के हंगामा करने और अशोभनीय आचरण की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। साधारण और गंभीर दोनों ही मुद्दों पर चर्चा कम हंगामा कर कार्यवाही को बाधित करने का चलन हो गया है। हाल में जिस तरह का व्यवहार कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों के सांसदों ने दोनों सदनों में किया, वह किसी से छिपा नहीं है। आखिर सदन की गरिमा बनाने रखने के लिए 14 सांसदों को सदन से निलंबित किया गया।
संसद की सुरक्षा में सेंध को लेकर सरकार को घेरने के मूड में विपक्ष
दरअसल, माननीयों ने इस प्रकार का आचरण संसद की सुरक्षा में सेंध को लेकर किया था। यह जानते हुए कि संसद की सुरक्षा का जिम्मा खुद संसद के पास है, उन्होंने न केवल आसन का अपमान किया बल्कि चर्चा की मांग भी की। ऐसा नहीं है कि इसके पहले ऐसी घटनाएं नहीं घटी है लेकिन तब इस प्रकार की स्थितियां नहीं उत्पन्न हुई थीं। यही नहीं अब इसे लेकर सियासत भी तेज हो गयी है।
सच यह है कि विपक्ष संसद की सुरक्षा में सेंध को लेकर सरकार को घेरने के मूड में है और अपने कोर वोटरों तक इसके जरिए सियासी संदेश देना चाहती है ताकि इसका लाभ उसे लोकसभा चुनाव में मिल सके। इसमें दो राय नहीं कि इस गंभीर मुद्दे पर संसद में चर्चा की जानी चाहिए लेकिन इसके लिए जिस तरह का व्यवहार माननीयों ने किया, उसे किसी भी स्थिति में उचित नहीं ठहराया जा सकता है।
संसद किसी पार्टी की नहीं है। यह देश की है और इसकी सुरक्षा का सवाल बेहद जरूरी है। ऐसे में सभी को मिलकर इस पर विचार करना चाहिए। विपक्ष को समझना चाहिए कि सदन की गरिमा को तार-तार करने से उनके प्रति जनता में अच्छा संदेश नहीं जाएगा।