यूपी के 36 जिलों में मनरेगा फर्जीवाड़े की आहट, रिपोर्ट तलब
मुख्यमंत्री योगी से शिकायत के बाद ग्राम विकास विभाग के बड़े अफसर भी सहमे
Sandesh Wahak Digital Desk/Manish Srivastava : यूपी में बसपा सरकार के दौरान सैकड़ों करोड़ के मनरेगा घोटाले की नींव रखी गई थी। कहने को इस घोटाले की जांच देश की शीर्ष एजेंसी सीबीआई के हवाले है। इसके बावजूद अभी तक घोटाले का जिम्मेदार कोई बड़ा आईएएस सीबीआई के हत्थे नहीं चढ़ा है। सिर्फ सच्चिदानंद दुबे को छोडक़र। ऐसा लगता है फर्जी जॉब कार्डों के जरिये आज भी मनरेगा घोटाला खुलेआम अंजाम दिया जा रहा है।
फिलहाल एक बार फिर यूपी में मनरेगा के कार्यों पर गंभीर सवाल खड़े होने शुरू हो गए हैं। प्रकरण की गंभीरता देख ग्राम्य विकास आयुक्त ने विस्तृत रिपोर्ट तलब की है।
दरअसल महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत पिछले वित्तीय वर्ष में कराए गए कार्यों में श्रम-सामग्री के तय मानकों (60:40 अनुपात) से खिलवाड़ के कारण बड़े पैमाने पर वित्तीय अनियमितता के आरोप लगे हैं। प्रदेश के 36 जिलों में बड़े खेल की आशंका से बड़े अफसर भी सहम गए हैं। तभी सोमवार को श्रम-सामग्री अनुपात का आंकलन करते हुए विस्तृत रिपोर्ट ग्राम्य विकास आयुक्त जीएस प्रियदर्शी ने संयुक्त विकास आयुक्तों से मांगी है।
लाखों श्रमिक मनरेगा योजना का लाभ पाने से चूके
सोमवार को लिखे पत्र के बाद संयुक्त विकास आयुक्तों ने भी संबंधित जिलों को डिजिटल और हस्ताक्षरित कापी तत्काल उपलब्ध कराने के निर्देश दिए हैं। केंद्रीय रोजगार गारंटी परिषद के पूर्व सदस्य संजय दीक्षित ने फर्जीवाड़े के इस मामले को उजागर करते हुए मुख्यमंत्री योगी और केंद्रीय ग्रामीण विकास एवं पंचायती राज मंत्री गिरिराज सिंह को पत्र लिखकर जांच कराने और भ्रष्ट अफसरों पर सख्त कार्रवाई की मांग की है। जिसके बाद ग्राम विकास विभाग के बड़े अफसर भी सक्रिय हुए हैं। आरोपों के मुताबिक सिंडिकेट के चलते जहां लाखों श्रमिक मनरेगा योजना का लाभ पाने से चूक गए।
वहीं भ्रष्ट अफसरों, ठेकेदारों के गठजोड़ ने लम्बी चपत भी लगाई है। वित्तीय वर्ष 2022-23 में मजदूरी पर 658509 लाख रुपये और सामग्री पर 4,82,319 लाख रुपये खर्चे गए हैं।
बसपा सरकार के दौरान भी हुआ था अरबों का घोटाला, सीबीआई और ईडी बड़ों पर मेहरबान
मायावती सरकार के दौरान हुआ मनरेगा घोटाला कई हजार करोड़ का है। जिसको 2007 से 2010 के बीच अंजाम दिया गया था। घोटाले में करीब ढाई दर्जन आईएएस और 6 दर्जन पीसीएस समेत डेढ़ सैकड़ा अफसर फंसे थे। सीबीआई और ईडी ने ताबड़तोड़ तमाम मुकदमे करीब एक दशक पहले दर्ज किये थे। इसके बाद ईडी जहां अफसरों के ठिकानों पर छापेमारी करना भूल गयी। वहीं सीबीआई ने कई जिलों के डीएम समेत बड़े अफसरों को बख्श दिया। सिर्फ सोनभद्र में ही तकरीबन 400 करोड़ की हेराफेरी हुई थी। तत्कालीन डीएम पंधारी यादव थे। सीबीआई द्वारा घोटाले में गिरफ्तार बलरामपुर के पूर्व डीएम सच्चिदानंद दुबे की सम्पत्तियों को भी ईडी ने नहीं खोजा।
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