लखनऊ नगर निगम: कर विभाग में पुराना है रिश्वतखोरी का खेल
हर महीने करोड़ों के टैक्स का चूना लगाकर अपनी जेबें भर रहे अफसर-कर्मचारी
Sandesh Wahak Digital Desk/Vinay Shankar Awasthi : लखनऊ नगर निगम के राजस्व निरीक्षक सुबोध वर्मा को रिश्वतखोरी के मामले में भले ही एंटी करप्शन ने गिरफ्तार किया हो मगर, रिश्वतखोरी के इस खेल के असली किरदार अभी बेनकाब होने बाकी हैं।
नगर निगम के कर विभाग में हर महीने करोड़ों के राजस्व को चूना लगाया जा रहा है। इस खेल में राजस्व निरीक्षक ही नहीं बल्कि अफसर-कर्मचारी से लेकर कई जोनल अधिकारी तक शामिल रहते हैं। तभी तो इनके वेतन और रुतबे में जमीन-आसमान का अंतर नजर आता है। नगर निगम में आवासीय भवनों से लेकर अनावासीय भवनों तक का टैक्स कम करने के एवज में खूब रिश्वत चल रही है।
कर निर्धारण तिथि के अनुसार रिश्वत वसूली
नाम न छापने की शर्त पर एक कर्मी ने बताया कि आवासीय भवन की फाइल पर कर अधीक्षक 1000, कर निर्धारण अधिकारी 1200, जोनल अधिकारी 1500, कम्प्यूटर ऑपरेटर 200 रुपए फिक्स रहते हैं। बाकी की बची हुई रकम में राजस्व निरीक्षक व वार्ड का बाबू आपसी तालमेल से बंदरबांट करते हैं। इसके अलावा सबसे बड़ा खेल अनावसीय भवनों का टैक्स घटाने में किया जाता है। इन भवनों में एआरवी (वार्षिक मूल्य) और कर निर्धारण तिथि के अनुसार रिश्वत वसूली जाती है।
भवन स्वामियों को दिया जाता है टैक्स कम करने का लालच
यह खेल भवन स्वामी को लाखों का बिल भेजकर शुरू होता है। बाद में उसी भारी-भरकम टैक्स को घटाने के लिए जब भवन स्वामी नगर निगम पहुंचता है तो उसको 50 प्रतिशत तक टैक्स कम कारने की पेशकश की जाती है। अगर, बात बन जाती है तो उससे 50 प्रतिशत रकम वसूल कर टैक्स कम कर दिया जाता है। इसके लिए कर अधीक्षक, कर निर्धारण अधिकारी, जोनल अधिकारी, कम्प्यूटर ऑपरेटर को राजस्व निरीक्षक हिस्सा पहुंचाते हैं तब फाइल आगे बढ़ती है। बाद में भवन स्वामी को टैक्स की रसीद देकर मुंह बंद करने की हिदायद देकर विदा कर दिया जाता है।
ऐसे में साफ है कि नगर निगम के कर विभाग में रिश्वतखोरी का जिम्मेदार केवल राजस्व निरीक्षक ही नहीं बल्कि पूरा सिस्टम है। चूंकि बाकी के अफसरों की वसूली पर्दे के पीछे से होती है ऐसे में उनके फंसने की कोई संभावना नहीं रहती। बता दें कि अगर कोई राजस्व निरीक्षक बिना रिश्वत लिए टैक्स असेस्मेंट का काम करता है तो उच्च अफसर उसे सबसे खराब वार्ड देते हैं और सबसे पहले उसी पर कार्रवाई भी होती है। कई बार तो फाइल पर रकम न देने पर अफसर उसे खरी-खोटी भी सुनाते हैं।