अरबों के एनएच-56 घोटाले में नया मोड़ : लखनऊ कमिश्नर की कोर्ट में ट्रांसफर होंगे आर्बिट्रेशन के मुकदमे, छह माह में निर्णय देना जरूरी
Sandesh Wahak Digital Desk : अमेठी के एनएच-56 में मुसाफिरखाना और जगदीशपुर में बाईपास बनाने के लिए ली गई जमीनों के मुआवजे में हुए 382 करोड़ के घोटाले में नया मोड़ आया है। आर्बिट्रेशन के दाखिल वाद को लेकर किसानों को अमेठी प्रशासन के ऊपर तनिक भी भरोसा नहीं है। जिसको देखते हुए हाईकोर्ट के आदेश पर अमेठी डीएम के यहां विचाराधीन एनएच-56 के आर्बिट्रेशन वाद लखनऊ कमिश्नर की कोर्ट में ट्रांसफर होंगे। यही नहीं कमिश्नर कोर्ट को हाईकोर्ट के आदेश पर छह माह में आर्बिट्रेशन वाद पर फैसला सुनाना पडेगा।
किसानों से 9.81 करोड़ रुपए की वसूली का भी आदेश जारी किया था
दरअसल एनएचआई की ओर से 25 नवंबर 2022 को 30 गांवों में किसानों को किए गए भुगतान को संशोधित करने के लिए अमेठी डीएम के आर्बिट्रेटर कोर्ट में केस दायर किया गया था। मामले में डीएम ने जांच कराई तो 382 करोड़ रुपए अधिक मुआवजा बांटने का खुलासा हुआ। इसके क्रम में डीएम ने शासन को रिपोर्ट भेजी थी। जिस पर कार्रवाई हो रही है।
वहीं आर्बिट्रेशन वाद पर सुनवाई करते हुए डीएम ने सभी पक्षकारों को नोटिस जारी किया था। दो गांवों मंगरौरा और दुलारी नगर के वाद पर निर्णय देते हुए आर्बिट्रेटर/डीएम ने तत्कालीन सक्षम भूमि अध्याप्ति अधिकारी के तत्कालीन प्रतिकर निर्धारण को संशोधित किए जाने का आदेश दिया था। साथ ही किसानों से 9.81 करोड़ रुपए की वसूली का भी आदेश जारी किया था।
इसी प्रकरण में एक किसान राम बली द्वारा हाईकोर्ट की शरण ली गई थी। याचिका में कहा गया था कि डीएम ने पहले ही शासन को यह अवगत कराया है कि मुआवजा का निर्धारण गलत तरीके से किया गया है। ऐसे में वहां से आर्बिट्रेशन का निर्णय पारदर्शी तरीके से होना संभव नहीं है। इस पर न्यायमूर्ति विवेक चौधरी तथा न्यायमूर्ति मनीष कुमार ने एनएच के आर्बिट्रेशन से जुड़े सभी मुकदमों को कमिश्नर लखनऊ की कोर्ट में ट्रांसफर करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने लखनऊ मंडलायुक्त को 6 महीने के भीतर निर्णय करने को भी कहा है। अमेठी डीएम राकेश कुमार मिश्रा ने केस लखनऊ मंडलायुक्त की कोर्ट को ट्रांसफर किए जाने के आदेश की पुष्टि की है।
आईजी लखनऊ को एसपी का पत्र, ईओडब्ल्यू से कराएं जांच
अमेठी के एसपी ने आईजी लखनऊ को पत्र भेजकर अरबों के मुआवजा घोटाले की जांच पुलिस से ईओडब्ल्यू यानि आर्थिक अपराध अनुसंधान संगठन को स्थानांतरित करने की संस्तुति की है। जिसके बाद घोटाले की जांच जल्द ही ईओडब्ल्यू को सौंपने के आदेश जारी होने की प्रबल संभावना है। शासन के निर्देश पर मुसाफिरखाना के रजिस्ट्रार कानूनगो द्वारा मुसाफिरखाना कोतवाली में सेवानिवृत्ति एसडीएम आरडी राम तथा पीसीएस अधिकारी कुमार कनौजिया तथा अज्ञात लोगों पर धोखाधड़ी का मुकदमा दर्ज कराया गया था। इस घोटाले में सात डिप्टी कलेक्टरों समेत कई अफसरों की गर्दनें फंसी हैं।
सुलतानपुर घोटाले की तर्ज पर सीबीआई जांच की सिफारिश क्यों नहीं
2018 में सुलतानपुर में भी एनएच-56 के जमीन अधिग्रहण में 200 करोड़ का घोटाला सामने आया था। नेशनल और स्टेट हाइवे न होने के बावजूद 38 गांवों के करीब 6 हजार काश्तकारों को करीब 200 करोड़ से ज्यादा का भुगतान कर दिया गया था। तत्कालीन डीएम विवेक ने शासन से सीबीआई जांच तक की सिफारिश की थी। लेकिन सीबीआई जांच आज तक नहीं हुई।
पत्र भेजने के बाद ईडी चुप, मनी लॉङ्क्षन्ड्रग की जांच नहीं
अरबों के घोटाले के मामले में ईडी ने भी पिछले वर्ष दिसंबर में डीएम को पत्र लिखकर रिपोर्ट मांगी थी। सूत्रों के मुताबिक ईडी ने ये भी पूछा था कि इतने बड़े घोटाले की एफआईआर क्यों नहीं हुई। ये मामला राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण की वित्तीय क्षति से जुड़ा है, इसलिए इसमें ईडी ने दखल दिया था। एफआईआर होने के बाद ईडी को भी मनी लॉङ्क्षन्ड्रग की जांच शुरू करनी चाहिए थी। लेकिन अभी तक पीएमएलए एक्ट के तहत ईडी ने ईसीआईआर भी नहीं दर्ज की।
एनएचएआई अफसरों की भूमिका संदिग्ध
हैरत की बात यह है कि 2020 में ही एनएचआई को प्रकरण की जानकारी हुई और उसने जिला प्रशासन को इसकी जानकारी देते हुए आर्बिट्रेशन वाद दायर कर सर्किल रेट को दुरुस्त करने की मांग की, लेकिन मामले को दबाए रखा गया। एनएचएआई के अफसरों ने इस बात की समीक्षा तक नहीं करना जरुरी नहीं समझा कि राजस्व विभाग के अफसरों द्वारा निर्धारित मुआवजा नियमानुसार है भी या नहीं।
एनएचएआई की ओर से लिखित स्वीकृति व धनराशि आवंटित होते ही अफसरों ने आनन-फानन उसी राशि (वास्तविक मुआवजा 180 करोड़ रुपये के बजाए 564 करोड़ रुपये) का वितरण कर दिया। एनएचएआई के अफसरों ने कई साल तक किसी प्रकार की कोई आपत्ति नहीं की। चार साल तक एनएचएआई के अफसर रहस्मयी चुप्पी साधे रहे।
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