हवा में निर्माण किया, खातों में भुगतान हुआ
मंडी परिषद: महिला अवर अभियंता निकली पूरे भ्रष्टाचारी रैकेट की सरगना
Sandesh Wahak Digital Desk : प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के पहाड़िया मंडी में पौने चार करोड़ के निर्माण घोटाले का जिन्न फिर बाहर निकल आया है।
अदालत द्वारा पुलिस की विवेचना निरस्त करने के बाद यह घोटाला एक बार फिर सुर्खियों में है। बताया जा रहा है कि इस घोटाले को अंजाम देने वाले अफसरों को बचाने के लिए पुलिस के जांच अधिकारी और मंडी मुख्यालय के शीर्ष अधिकारियों ने भ्रष्टाचारियों से खूब रकम ऐंठी। अब फिर से जांच शुरू होने की खबर मिलते ही पूरे मंडी महकमे में हड़कंप है।
इस घोटाले को उजागर करने के लिए तत्कालीन मंडी निदेशकों धीरज कुमार और जेपी सिंह ने काफी प्रयास किए, वाराणसी के कमिश्नर ने एसआईटी जांच कराने के निर्देश भी दिए। डीएम ने भी जांच आख्या भेजी। लेकिन वर्तमान अधिकारियों ने दोषियों को बचाने के लिए लीपा-पोती के अलावा कुछ नहीं किया।
इलाहाबाद रेलवे का बाउचर दिखा दिया
अफसर घोटाला करने के लिए इतने उतावले थे कि सीमेंट का समायोजन इलाहाबाद रेलवे का बाउचर लगाकर फर्जी अडजस्टमेंट कर दिया। जिसकी सूचना तत्कालीन उपनिदेशक निर्माण द्वारा मुख्यालय को दी गई थी, लेकिन परिषद के अधिकारियों द्वारा साठ-गांठ कर रफा-दफा कर दिया गया।
इसी प्रकार फाल सीलिंग के मद पर डेढ़ सौ टन सरिया का भुगतान कर दिया गया। जबकि दुनिया जानती है कि फालसीलिंग में सरिया नहीं लगता। पुरानी बाउंड्रीवाल को नया दिखाकर लाखों का भुगतान करा लिया। कार्यालय में 34 नग सुपर मार्केट दुकानों का निर्माण कराया गया, इसमें मिट्टी की भराई के मद में 11 लाख रुपए भुगतान किया गया, जबकि वहां पर पहले से इंटरलॉकिंग लगी हुई ती, मिट्टी की आवश्यकता नहीं थी।
सी टाइप दुकानों में पाइल फाउंडेशन का प्राविधान था। जबकि पाइल फाउंडेशन की आवश्यकता बनारस में नहीं थी। इन्होंने घोटाले के उद्देश्य से स्टीमेट में पाइल फाउंडेशन का प्राविधान किया। थर्ड पार्टी एजेंसी राइट्स गुणगांव द्वारा 105 नग में बिना राइट्स के रिपोर्ट के पाइल फाउंडेशन का भुगतान कर दिया गया, जिसकी जांच आज भी की जा सकती है। राइड्ट द्वारा कहीं भी जिक्र नहीं किया गया कि पाइल्स पड़ी है अथवा नहीं।
इस तरह है घोटालों की फेहरिस्त
जांच कमेटी द्वारा जो निष्कर्ष निकाला गया था उसके अनुसार, टेंडर में लगने वाला 10 फीसदी का एफडीआर फर्जी पाया गया था। 100 मीटर सीसी रोड का 374 लाख का भुगतान किया गया, जबकि इस सीसी रोड की वास्तविक कास्ट 50 लाख भी नहीं थी। ठेकेदार को 35 लाख का अलग से भुगतान कर दिया। एक हजार लीटर पानी वाली 300 टंकियों का भुगतान किया गया और टंकी लगाई भी नहीं गई। उक्त सभी कार्य अवर अभियंता सुनीता ने किया।
कारनामा तो देखिए एक करोड़ रुपए की कीमत की सरिया जिस दिन आर्डर दिया गया उसी दिन सरिया की आमद भी हो गई। यानी सरिया का आर्डर हुआ सरिया लखनऊ से वाराणसी उसी दिन पहुंच भी गया। जांच टीम के मुताबिक सरिया का भी फर्जी भुगतान हुआ। सरिया किस कंपनी का है, जीएसटी बिल कहां है, कुछ पता नहीं चला। सीमेंट का 84 लाख रुपए का भुगतान कर दिया और फर्जी पेपरों से एडजेस्टमेंट कर दिया गया। ट्रक नंबर, बिल्टी आदि का कुछ पता नहीं।
चीफ इंजीनियर, जेडीसी ने लगवा दी फर्जी रिपोर्ट
इस पूरे प्रकरण को समाप्त करने के लिए चीफ इंजीनियर ग्रेड-2 सत्य प्रकाश और संयुक्त निदेशक निर्माण इंदल प्रसाद ने भ्रष्टाचारियों पर खूब महिमा बरसाई। इन दोनों ने घोटालेबाजों से साठ-गांठ कर फर्जी रिपोर्ट तैयार कर प्रकरण को ही समाप्त कर डाला। इंदल प्रसाद को आरोप पत्रों की जांच दी गई थी। तीन वर्ष बीत गए, उन्होंने अब तक जांच तक नहीं शुरू की। शीर्ष अधिकारी निदेशक और चीफ इंजीनियर ने एक बार भी इंदल प्रसाद से नहीं पूछा कि इतने बड़े मामले की जांच क्यों नहीं की।
कमिश्नर ने एसआईटी जांच को कहा, अभियंता से करा दिया
पहाडिय़ा मंडी में घोटाले को देख तत्कालीन मंडलायुक्त ने पूरे प्रकरण की जांच के लिए एसआईटी गठित करने को कहा था। लेकिन निदेशक ने अपने अधीन एक अभियंता से कराकर मामले को रफा-दफा करवा दिया। जिन ठेकेदारों को घोटाले में ब्लैक लिस्ट किया गया था, वहां के प्रभारी डीडीसी वीके राय ने सबको लिस्ट से हटाकर ठेका देना शुरू कर दिया। इस पूरे प्रकरण में वीके राय, रामेश्वर प्रसाद दुबे, प्रवीण कुमार उपनिदेशक निर्माण, रमेश सिंह, वीएन सिंह, हरिश्चंद्र सरोज आदि ने खूब फर्जीवाड़ा करके पैसे कमाए और उजागर होने पर उच्चाधिकारियों से साठ-गांठ कर ली।
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