संपादक की कलम से : सिर्फ सहायता राशि पर्याप्त नहीं
Sandesh Wahak Digital Desk : उत्तर प्रदेश सरकार ने एशियाई खेलों में पदक विजेताओं को सहायता राशि देने का ऐलान किया है। इसके तहत गोल्ड मेडल लाने वाले खिलाड़ी को तीन करोड़, सिल्वर और कांस्य पदक विजेता को क्रमश: डेढ़ करोड़ और 75 लाख की सहायता दी जाएगी।
सवाल यह है कि :-
- क्या विजेता खिलाड़ियों को सहायता राशि देने भर से प्रदेश के लोगों के मन में खेलों के प्रति रुचि उत्पन्न हो सकेगी?
- क्या सरकारी स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं के अभाव में खेलो इंडिया को जमीन पर उतारा जा सकेगा?
- ग्रामीण क्षेत्रों में खेल प्रतिभाओं को निखारने के लिए सरकार के पास क्या रणनीति है?
- खेलों में भाई-भतीजावाद को कम किए बिना सरकार की खेलों को प्रोत्साहन देने की मंशा क्या सफल हो पाएगी?
- क्या कुछ एक स्टेडियम बन जाने भर से देश और प्रदेश में विश्व स्तर के खिलाड़ी तैयार हो जाएंगे?
- क्या बच्चों में खेल के प्रति रुचि उत्पन्न करने के लिए कोई ठोस प्रयास किये जा रहे हैं?
- आज भी बच्चे पढ़ाई और खेलों के बीच तालमेल क्यों नहीं बिठा पा रहे हैं?
इसमें दो राय नहीं कि केंद्र और प्रदेश सरकार ने खेलों के विकास के लिए कई कदम उठाए हैं। गांवों में खेल मैदान और शहरों में स्टेडियम बनाए जा रहे हैं। खेल के नाम पर हर वर्ष करोड़ों रुपये भी खर्च किए जा रहे हैं। इस खेल नीति के कारण एशियाई खेलों के एक संस्करण में पहली बार भारतीय खिलाड़ियों ने 107 पदक जीते।
बच्चों को खेलों का प्रशिक्षण देने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं
खेलों के प्रचार-प्रसार के लिए खेलो इंडिया के तहत खेल स्पर्धाओं का आयोजन किया जाता है लेकिन सरकार खेलों की नर्सरी स्कूलों की ओर ध्यान नहीं दे रही है। आज भी तमाम सरकारी स्कूलों में खेलों से संबंधित बुनियादी सुविधाएं मसलन खेल मैदान और उपकरणों का अभाव है। इन स्कूलों का खेल बजट भी मामूली है। यही नहीं बच्चों को खेलों का प्रशिक्षण देने की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है।
चीन और जापान जैसे देश वैश्विक खेल प्रतियोगिताओं में भारत से इसलिए आगे हैं क्योंकि वहां प्राथमिक शिक्षा के साथ खेलों का प्रशिक्षण दिया जाता है। प्रशिक्षण के लिए हर साल करोड़ों रुपये खर्च किए जाते हैं। हर खेल के लिए स्कूलों में प्रशिक्षक की तैनाती की जाती है। वहीं भारत में इसका ठीक उल्टा है। यहां सरकारी स्कूलों में खेलों की पूरी तरह उपेक्षा हो रही है। खेलों की बुनियादी सुविधा नहीं होने के कारण बच्चे चाहकर भी खेलों में भाग नहीं ले पाते हैं।
यह स्थिति केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि अन्य राज्यों में भी है। साफ है यदि सरकार विश्व स्तर के खिलाड़ी तैयार करना चाहती है तो उसे इसकी नर्सरी यानी सरकारी स्कूलों को खेल सुविधाओं से लैस करना होगा। बच्चों को उनकी रुचि के मुताबिक खेलों का प्रशिक्षण देना होगा और तमाम सुविधाएं मुहैया करानी होगी। साथ ही खेलों को रोजगार से भी जोडऩा होगा। दूसरी ओर सरकार को खेल संघों में व्याप्त भाई-भतीजावाद को खत्म करना होगा अन्यथा स्थितियों में कोई खास बदलाव नहीं आएगा।
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