संपादक की कलम से : हिंद-प्रशांत क्षेत्र पर मंथन के मायने
Sandesh Wahak Digital Desk: राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हिंद-प्रशांत क्षेत्र की स्थिति पर मंथन को सेना प्रमुखों का सम्मेलन किया गया। इसमें 22 देशों के आर्मी चीफ ने भाग लिया। सभी ने न केवल आपसी संवाद को बढ़ाने पर जोर दिया बल्कि किसी भी प्रकार के युद्ध की स्थितियों को रोकने पर एकराय हुए। भारत और अमेरिका ने इस सम्मेलन की संयुक्त रूप से मेजबानी की।
सवाल यह है कि :-
- इस सम्मेलन के निहितार्थ क्या हैं?
- क्यों हिंद-प्रशांत क्षेत्र को लेकर दुनिया के बड़े देश चिंतित हैं?
- क्या इस क्षेत्र में चीन की आक्रामक नीतियों को रोकने के लिए अमेरिका और भारत अन्य देशों के साथ मिलकर रणनीति बना रहे हैं?
- क्या सेना प्रमुखों का यह जमावड़ा हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति बनाए रखने में सफल हो सकेगा?
- क्या चीन की नीतियों पर अंकुश लग सकेगा?
- विस्तारवादी चीन पर इसका क्या असर पड़ेगा?
- चीन से बढ़ते तनाव के बीच यह बैठक क्या भारत की दबाव की कूटनीति है?
हिंद-प्रशांत सेना प्रमुख सम्मेलन की शुरुआत 1999 में की गयी थी। इसमें इस क्षेत्र के देशों के सेना प्रमुख साझा हितों से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करते हैं। सेना की यह दुनिया की सबसे बड़ी कॉन्फेंस है। इसका मकसद आपसी समझ, संवाद और मित्रता के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना है। इस साल के सम्मेलन का विषय शांति के लिए एक साथ: भारत-प्रशांत क्षेत्र में शांति और स्थिरता बनाए रखना रहा।
चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण कई देश चिंतित
हालांकि इसका एक अहम मकसद चीन की इस क्षेत्र में जारी विस्तारवादी नीतियों को रोकना भी है। इस क्षेत्र के देश चाहते हैं कि यह क्षेत्र सभी के मुक्त रहे लेकिन चीन यहां अपनी दादागिरी दिखाता रहता है। उसकी नजर यहां स्थित छोटे देशों को ऐन-केन-प्रकारण अपने प्रभाव में लेने पर है। चीन की विस्तारवादी नीतियों के कारण केवल छोटे देश ही नहीं बल्कि बड़े देश भी चिंतित हैं। वे यहां किसी भी देश का एकाधिकार पसंद नहीं करते हैं। इस मामले में भारत समेत अन्य देशों ने चीन से कई बार विरोध भी जताया लेकिन इसका कोई खास असर नहीं पड़ा।
लिहाजा इस क्षेत्र में शांति और यथास्थिति बरकरार रखने के लिए बड़े और छोटे देश मिलकर काम कर रहे हैं। इसमें भारत भी शामिल है। भारत हिंद प्रशांत क्षेत्र में कूटनीति बढ़त लेकर चीन पर प्रकारांतर से दबाव बनाए रखना चाहता है ताकि उसके राष्ट्रीय हित सुरक्षित रहे।
अमेरिका भी भारत के साथ है क्योंकि वह जानता है कि भारत ही एशिया और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन को मुहंतोड़ जवाब दे सकता है। जाहिर है, क्षेत्र के 22 देशों ने एक तरह से चीन को घेरने की पूरी रणनीति तैयार कर रखी है और इसके बाद भी चीन ने यदि इस क्षेत्र में कोई हिमाकत की या युद्ध किया तो ये देश मिलकर उसका मुकाबला करेंगे। चीन भी जानता है कि अमेरिका और भारत का वह एकसाथ मुकाबला नहीं कर सकता है। ऐसे में यह सम्मेलन चीन पर दबाब बनाने में कूटनीतिक रूप से कारगर साबित होगा।
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