संपादक की कलम से : संसद की मर्यादा और माननीय

Sandesh Wahak Digital Desk: लोकसभा में भाजपा सांसद रमेश बिधूड़ी ने अपने विपक्षी दल के सांसद के साथ जिस प्रकार की आपत्तिजनक टिप्पणी की, उसने एक बार फिर माननीयों के आचरण पर सवाल उठा दिया है। हालांकि इस मामले में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बिधूड़ी को चेतावनी दी है तो दूसरी ओर भाजपा ने अपने सांसद से पूछा है कि क्यों न आपके प्रति अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाए।

सवाल यह है कि :-

  • अपने बिगड़े बोल से ये माननीय संसद की मर्यादा को तार-तार क्यों करते रहते हैं?
  • ऐसे सांसदों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई क्यों नहीं की जाती है?
  • क्या केवल सदन के रिकॉर्ड से आपत्तिजनक टिप्पणियों को हटाने से माननीयों के आचरण में सुधार हो सकता है?
  • क्या दलों को इस मामले में खुद पहल नहीं करनी चाहिए?
  • क्या समय नहीं आ गया है जब दल अपने नेताओं को स्वानुशासन का पाठ पढ़ाएं?
  • केवल मेरी कमीज दूसरे से कम गंदी है, का फलसफा सियासत में कब तक चलाया जाएगा?
  • माननीयों के आचरण को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही गंभीर क्यों नहीं है?
  • केवल सियासत करने से क्या हालात बदल जाएंगे?

ऐसा पहली बार नहीं, जब लोकसभा या राज्यसभा में सांसद अपने आचरण से लोकतंत्र के मंदिर की मर्यादाओं को तार-तार किया है। इसी वर्ष हुए संसद के एक सत्र में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी सदन में फ्लाइंग किस देते दिखे थे। राज्यसभा में कई विपक्षी सांसद महिला मार्शल से धक्का-मुक्की करते नजर आए। आप सांसद संजय सिंह सभापति के कहने के बाद भी वेल से अपनी जगह नहीं गए।

समर्थकों व वोटरों को खुश करने की सियासत

हैरानी की बात यह है कि तब विपक्ष और संबंधित माननीयों की पार्टी उनके व्यवहार का बचाव करती नजर आयी। यही नहीं अपने व्यवहार पर इन सांसदों ने माफी तक नहीं मांगी। साफ है संसद से लेकर सड़क तक सांसदों के व्यवहार को महज सियासी लाभ-हानि की गुणा-गणित से देखा जाता है। कई बार ये संसद से ऐसे बयान देकर अपने समर्थकों व वोटरों को खुश करने की सियासत करते दिखते हैं। लोकतंत्र में इस प्रकार की बयानबाजी को कतई स्वीकार नहीं किया जा सकता है।

सांसद को अपनी बात पूरे होशो-हवास में रखनी चाहिए और संसद की मर्यादा का पालन किया जाना चाहिए। सच यह है कि सदन में ऐसे भाषणों पर कोई कठोर कार्रवाई नहीं की जाती है। हंगामा होने पर बस संसदीय रिकॉर्ड से आपत्तिजनक टिप्पणियां हटा कर मामले को शांत कर दिया जाता है। ये स्थितियां किसी प्रकार उचित नहीं कही जा सकती हैं।

दरअसल, संसद की कार्यवाही बेहतर और मर्यादा के साथ चले इसके लिए सत्ता और विपक्षी दलों को खुद को अनुशासित करना होगा। ऐसे भड़काऊ बयान देने और इसके लिए उकसाने वाले नेताओं के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। इसके अलावा संसद को भी इस मामले में नए-नियम कानून बनाने होंगे अन्यथा स्थितियों में शायद ही कभी सुधार हो सके।

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