संपादक की कलम से : विश्वकर्मा योजना से उम्मीद
Sandesh Wahak Digital Desk : देश में परंपरागत हस्तशिल्पियों और कारीगरों के आर्थिक विकास के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना की शुरुआत की। इसके तहत लाभार्थियों को न केवल टूल किट दिए जाएंगे बल्कि 500 रुपये रोज का स्टाइपेंड भी दिया जाएगा। कारोबार को बढ़ाने के लिए लाभार्थियों को तीन लाख तक के लोन देने का भी प्रावधान किया गया है। योजना को गति देने के लिए 13 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। लाभार्थियों के कौशल विकास के लिए ट्रेनिंग की भी व्यवस्था की गई है।
सवाल यह है कि :-
- पीएम विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना देश के आर्थिक विकास में अपना योगदान किस तरह करेगी?
- क्या यह योजना हाशिए पर खड़े छोटे हस्तशिल्पियों और कारीगरों के लिए भविष्य में मुफीद साबित होगी?
- क्या योजना लालफीताशाही के अड़ंगेबाजी वाली चाल से बच सकेगी?
- क्या ठोस रणनीति और निगरानी तंत्र के लिए सरकार ने कोई व्यवस्था बनायी है?
- क्या यह योजना लोकल फॉर ग्लोबल की संकल्पना को साकार करने में मददगार साबित होगी?
- क्या इससे बढ़ती बेरोजगारी पर कुछ लगाम लग सकेगी?
पीएम विश्वकर्मा कौशल सम्मान योजना निश्चित रूप से सरकार की अच्छी पहल है। यह उन लोगों को आगे बढ़ाने और उनके हाथ मजबूत करने के लिए शुरू की जा रही है, जो दो जून की रोटी जुटाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। जिन 18 परंपरागत हस्तशिल्पियों और कारीगरों को इसमें शामिल किया गया है।
उनमें नाई, राजमिस्त्री, मालाकार, धोबी, दर्जी, ताला बनाने वाले, अस्त्रकार, मूर्तिकार, पत्थर तराशने वाले, लोहार, सुनार, पत्थर तोड़ने वाले, जूता बनाने वाले, खिलौना निर्माता, नाव, फिशिंग नेट, टोकरी/चटाई/झाड़ू और हथौड़ा व टूलकिट निर्माता हैं। ये आज भी गांवों की आर्थिकी में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। हालांकि इनकी आर्थिक हालत बेहद खराब है।
नाममात्र के ब्याज पर तीन लाख तक का लोन
यही वजह है कि सरकार ने इनके आर्थिक स्थिति को मजबूत करने और इनके हुनर को निखारने के लिए इस योजना की शुरुआत की है। नाममात्र के ब्याज पर तीन लाख तक का लोन देकर इनके कारोबार को बढ़ाने पर फोकस किया जा रहा है। वहीं इनके हुनर को देश-दुनिया में पहचान दिलाने के लिए इनको प्रशिक्षित करने की व्यवस्था की गई है।
यही नहीं सरकार ने इनके हुनर से दुनिया भर से परिचित कराने की व्यवस्था की है। सरकार इनके उत्पादों की ब्रांडिंग भी करेगी। इसमें दो राय नहीं कि यदि यह योजना सही तरह से परवान चढ़ी तो इसका फायदा न केवल हाशिए पर खड़े इन परंपरागत काम करने वाले कारीगरों और हस्तशिल्पियों को मिलेगा बल्कि दुनिया भर में इनके उत्पाद भी पहुंचेंगे। इससे रोजगार के साधनों में भी बढ़ोतरी होगी। इसका सीधा फायदा देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा। हालांकि योजना को परवान पर चढ़ाने के लिए सरकार को इसे लालफीताशाही की अड़ंगेबाजी वाली चालों से बचाना होगा और इसकी समय-समय पर समीक्षा करनी होगी।
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