संपादक की कमल से : जनप्रतिनिधियों की साख पर सवाल
Sandesh Wahak Digital Desk : एक युवक ने भरी सभा में सपा महासचिव स्वामी प्रसाद मौर्य की ओर जूता उछाल दिया। समर्थकों ने उसे पीटा और बाद में पुलिस के हवाले कर दिया। इसके ठीक पहले घोसी विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान पर स्याही फेंकी गई। ऐसी घटनाएं पहली बार नहीं घट रही है। इसके पहले भी ऐसी कई घटनाएं लोकसभा और विधानसभा चुनाव के दौरान और बाद में कई नेताओं के साथ घट चुकी हैं।
सवाल यह है कि :-
- जनप्रतिनिधियों और विभिन्न दलों के नेताओं के साथ ऐसी घटनाएं क्यों घट रही हैं?
- आखिर जनता में इन नेताओं के प्रति गुस्सा क्यों है?
- क्या सियासी दल अपनी साख खोते जा रहे हैं?
- क्या भड़काऊ बयानबाजी और खोखले वादे इसकी बड़ी वजह हैं?
- नेताओं को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने की कोशिश क्यों की जा रही है?
- क्या लोकतांत्रिक प्रणाली में जनप्रतिनिधियों और नेताओं के प्रति ऐसा व्यवहार किसी बड़े खतरे की ओर इशारा कर रहा है?
- क्या ऐसी घटनाओं को हल्के में लिया जा सकता है?
- क्या सियासी दल और नेता इस पर मंथन करेंगे?
पिछले एक दशक से देश की सियासत और आम आदमी की मानसिकता दोनों में बड़े बदलाव हुए हैं। सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब जनप्रतिनिधि और नेता जनता के बीच न केवल अपनी साख खोते जा रहे हैं बल्कि उसके निशाने पर भी आ गए हैं। हाल यह है कि नेताओं को सार्वजनिक रूप से अपमानित तक किया जाने लगा है।
नेताओं पर जूता उछालना या स्याही फेंकने जैसी घटनाओं में तेजी से बढ़ी
चुनाव के दौरान कई नेताओं को क्षेत्र में विकास नहीं कराने को लेकर कई गांवों में ग्रामीणों ने घुसने तक नहीं दिया और बैरंग लौटा दिया। नेताओं पर जूता उछालना या स्याही फेंकने जैसी घटनाओं में तेजी से इजाफा हुआ है। कुल मिलाकर जनता व जनप्रतिनिधियों या नेताओं के बीच जूतम-पैजार वाली स्थितियां बनती दिख रही है।
हालांकि इसके पूर्व जनता नेता या जनप्रतिनिधियों का कभी-कभार ही पुतला फूंककर अपना आक्रोश दिखाती थी। वैसे ये स्थितियां एक दिन में नहीं बनी हैं। सच यह है कि इसके लिए खुद नेता और जनप्रतिनिधि जिम्मेदार हैं।
जनप्रतिनिधियों की साख गिरने की सबसे बड़ी वजह उनका सार्वजनिक मंच से भडक़ाऊ बयानबाजी करना और चुनाव के दौरान किए गए वादों को पूरा न करना रहा है। इसमें दो राय नहीं कि ऐसी घटनाएं छिटपुट तरीके से घट रही हैं लेकिन ये बड़े खतरे का संकेत है। जिस तरह युवा अपने आक्रोश का प्रदर्शन कर रहे हैं उससे साफ है कि वे अपने चुने गए जनप्रतिनिधियों से आम जीवन से जुड़ी समस्याओं का समाधान चाहते हैं। अपने क्षेत्र का विकास चाहते हैं। जिन जनप्रतिनिधियों और नेताओं ने ऐसा किया है वे आज भी जनता के चहेते बने हैं।
साफ है, जनता और नेता के बीच चल रहे इस जूतम-पैजार की स्थितियों को सियासी दलों को गंभीरता से लेने की जरूरत है अन्यथा स्थितियां विकट हो सकती है। लोकतंत्र में इस प्रकार की स्थितियां कतई ठीक नहीं हैं।
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