संपादक की कलम से: सत्ता की सियासत और मुफ्त का नारा
Sandesh Wahak Digital Desk : सत्ता पाने के लिए चुनाव के दौरान सियासी दल लोकलुभावन घोषणाएं करते रहे हैं। लोकसभा चुनाव से पहले पांच राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना में चुनाव होने हैं। इसके साथ ही सियासी दल जनता के बीच एक बार फिर लोकलुभावन घोषणाओं की लिस्ट लेकर पहुंचने लगे हैं।
हर दल मुफ्त की रेवड़ी बांटने का वादा करने में एक-दूसरे से होड़ लेता दिख रहा है। मुफ्त का यह खेल सियासी दलों को खूब रास आ रहा है और इसे वे सत्ता पाने की गारंटी समझने लगे हैं। कर्नाटक में कांग्रेस, पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी की मुफ्त वाली घोषणाओं ने इन पार्टियों को सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई है। आम आदमी पार्टी तो मुफ्त की रेवड़ी को सत्ता तक पहुंचने को अपना सबसे बड़ा हथियार मानती है।
सवाल यह है कि :-
- जनता को मुफ्त की रेवड़ी बांटना कहां तक उचित है?
- गरीबों के लिए चलायी जा रही लोककल्याणकारी योजनाओं और मुफ्त की रेवड़ी में क्या अंतर है?
- क्या लोगों को मुफ्त की वस्तुएं देकर देश और राज्य के भविष्य से खिलवाड़ किया जा रहा है?
- क्या यह करदाताओं के साथ अन्याय नहीं है?
- क्या कर वसूली में आने वाली कमी राज्यों को दिवालिया नहीं बना देगी?
- क्या चुनाव आयोग इस मामले पर कोई गंभीर पहल करेगा?
सत्ता के लिए मुफ्त का सामान देने की सियासी घोषणाएं दक्षिण भारत से शुरू हुई और अब पूरे देश में फैल गयी है। दिल्ली से अपना सियासी सफर शुरू करने वाली आम आदमी पार्टी तो मुफ्त की रेवड़ी को सत्ता पाने का साधन बना लिया है। बिजली-पानी मुफ्त देने की घोषणा कर वह पहले दिल्ली और फिर पंजाब में सत्ता तक पहुंचने में सफल भी रही। बाद में कांग्रेस ने इसे हिमाचल और फिर कर्नाटक में इस्तेमाल किया और सफल रही। बाकी दल भी अब इसी रास्ते पर चल निकले हैं।
पंजाब पर बढ़ा आर्थिक बोझ
अब जब पांच राज्यों में विधान सभा चुनाव होने हैं, सभी दल मुफ्त की घोषणाएं कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने हाल में मध्य प्रदेश में चुनाव प्रचार के दौरान मंच से ही सत्ता में आने पर कई चीजें मुफ्त में देने का वादा कर चुके हैं। कई क्षेत्रीय दल भी इसी रास्ते पर बढ़ते दिख रहे हैं।
यह स्थिति तब है जब राज्यों की आर्थिक हालत खराब है। कर्नाटक हो या पंजाब, इन राज्यों की सरकारों को अपनी घोषणाओं को पूरा करने के लिए कर्ज लेने की नौबत आ गयी है। पंजाब पर इतना आर्थिक बोझ बढ़ गया है कि यह देश के दूसरे सबसे खराब आर्थिक स्तर वाला राज्य बन गया है।
मुफ्त की रेवड़ी देने से आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही
इसमें दो राय नहीं कि गरीबों का जीवनस्तर उठाने के लिए लोककल्याणकारी योजनाएं जरूरी हैं लेकिन कई राज्य सरकारें अपने मुफ्त का सामान देने के वादे को ही पूरा करने में इतना उलझ गयी हैं कि जनकल्याणकारी योजनाएं उपेक्षित होने लगी हैं। साथ ही सभी को मुफ्त की रेवड़ी देने से आर्थिक स्थिति कमजोर हो रही है। लिहाजा, इस पर न केवल सियासी दलों बल्कि चुनाव आयोग को भी गंभीरता से सोचने की जरूरत है।
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