संपादक की कलम से : मणिपुर हिंसा और सरकार
Sandesh Wahak Digital Desk : सर्वोत्तर का अहम राज्य मणिपुर पिछले तीन महीने से जातीय हिंसा की आग में जल रहा है। इस हिंसा में अब तक 160 लोगों की मौत हो चुकी है। सैकड़ों घर जला दिए गए हैं। सैकड़ों लोग राहत शिविरों में रहने को मजबूर हैं। सेना और पुलिस की तमाम कोशिशों के बावजूद हिंसा थमने का नाम नहीं ले रही है और सरकार शांति स्थापित करने में सफल होती नहीं दिख रही है।
सवाल यह है कि :-
- यह हिंसा आखिर शांत कब होगी?
- क्या केंद्र और राज्य सरकार जातीय हिंसा का हल निकालने में असमर्थ है?
- क्यों जातीय हिंसा ने पूरे राज्य को अराजकता की आग में झोंक दिया है?
- क्या इस सीमावर्ती राज्य में आतंकी संगठन और विदेशी ताकतें हिंसा को बढ़ावा दे रही हैं?
- क्यों मैतेई समुदाय और नागा-कुकी जनजातियां एक टेबुल पर बैठकर समस्या का स्थायी समाधान नहीं निकाल रही हैं?
- क्या हिंसा से समस्या का समाधान निकाला जा सकता है?
- शांति वार्ता की पहल मजबूती से क्यों नहीं की जा रही है?
अड़तीस लाख वाले इस राज्य में मैतेई समुदाय और नागा और कुकी जनजातियां रहती हैं। मैतेई की जनसंख्या 50 फीसदी जबकि नागा-कुकी की आबादी 34 फीसदी है। हिंसा तब भड़की जब हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की सिफारिश की। इससे नागा और कूकी जनजातियां भडक़ गईं और हिंसा पर उतारू हो गयीं।
हिंसाग्रस्त इलाकों में कर्फ्यू लगा
इसका परिणाम यह हुआ कि दोनों ओर से हिंसा का क्रम शुरू हुआ और यह आज भी रूक-रूक कर जारी है। हिंसाग्रस्त इलाकों में कर्फ्यू लगा दिया गया है। वहीं पिछले दिनों दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने के मामले ने आग में घी डालने का काम किया और हालात बेपटरी हो गए हैं। स्थितियां इस कदर खराब हो चुकी हैं कि सेना की तैनाती के बाद भी सशस्त्र हमलावर गांवों में घुसकर न केवल हत्याएं कर रहे हैं बल्कि घरों को आग के हवाले कर रहे हैं।
खुफिया रिपोर्ट के मुताबिक हमलावरों के पास कई हजार हथियार और लाखों की संख्या में गोलियां हैं। दरअसल, ये हथियार उनको आतंकी संगठनों और दुश्मन देशों की खुफियां एजेंसियों की ओर से मुहैया कराये जा रहे है। ये आतंकी संगठन यहां हिंसा को और भड़काने में जुटे हुए हैं। इसके अलावा वे इस हिंसा को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश कर रहे हैं।
जाहिर है हालात को सामान्य करने के लिए सरकार और सेना दोनों को ही बेहद संयम से काम लेना होगा। एक गलत कदम स्थितियों को भयावह कर सकता है। सरकार को चाहिए कि वह दोनों समुदायों के लोगों को एक टेबुल पर लाए और संवाद स्थापित करे क्योंकि हिंसा से इस समस्या का समाधान नहीं निकल सकता है। इसके अलावा उसे अपने खुफिया तंत्र को और सक्रिय करना होगा ताकि हमलावरों के बीच घुसे आतंकियों को चिन्हित कर उनका खात्मा किया जा सके अन्यथा मामला हाथ से बेहाथ हो जाएगा।
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