संपादक की कलम से : संसद में गतिरोध का हासिल
Sandesh Wahak Digital Desk : मणिपुर हिंसा पर प्रधानमंत्री के सदन में बयान देने की मांग पर अड़े विपक्षी गठबंधन के दलों के हंगामे के कारण संसद की कार्यवाही लगातार बाधित हो रही है। गठबंधन ने सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर अपना मास्टर स्ट्रोक चल दिया है। इसके तहत अब प्रधानमंत्री को सदन में बयान देना ही पड़ेगा। वहीं हंगामे के बीच सत्ता पक्ष ने सदन में ध्वनि मत से कई विधेयक पारित करा लिए हैं। इन विधेयकों के गुण-दोषों पर चर्चा तक नहीं की गई।
सवाल यह है कि :-
- क्या संसद सियासी अखाड़े में तब्दील हो गई है?
- क्या केवल सत्ता पक्ष पर सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से संचालित कराने की जिम्मेदारी है?
- क्या विपक्ष का काम सिर्फ हंगामा करना है?
- क्या लोकतांत्रिक प्रक्रिया में बिना गुण-दोषों पर चर्चा के पास विधेयक सही अर्थों में जनहित में उपयोगी साबित होंगे?
- अविश्वास प्रस्ताव के जरिए पीएम को बयान देने के लिए बाध्य करने के बाद भी विपक्ष गतिरोध को खत्म क्यों नहीं कर रहा है?
- क्या सत्ता और विपक्ष दोनों ही संसद के जरिए अपने सियासी लाभ-हानि का कारोबार कर रहे हैं?
लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष को जरूरी माना गया है। संसद प्रजातांत्रिक पद्धति के केंद्र में होती है। यह आम आदमी के हित में कानून बनाती है। इस दौरान पेश किए गए विधेयकों पर लंबी-लंबी चर्चा होती हैं। इस समय विपक्ष की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। विपक्ष न केवल विभिन्न विधेयकों के दोषों से सरकार को अवगत कराता है बल्कि संसोधन भी पेश करता है।
इस प्रक्रिया के बाद ही विधेयक सदन में पास होता है लेकिन पिछले एक दशक से विपक्ष ने नयी परिपाटी शुरू कर दी है। वह सदन की कार्यवाही को लगातार बाधित कर रहा है। इसका फायदा सत्ता पक्ष उठा रहा है। वह संख्या बल के बूते तमाम विधेयकों को बिना चर्चा पास कर रहा है। हैरानी की बात यह है कि अब तो सत्ता पक्ष के लोग भी संसद को ठप करने लगे हैं।
सियासी स्वार्थों की पूर्ति के लिए संसद को बनाया राजनीति का अखाड़ा
ऐसा नहीं है कि इसके पहले संसद में विपक्ष हंगामा नहीं करता था लेकिन वह कभी भी इस सीमा तक नहीं गया कि बिना चर्चा कई विधेयक पास हुए हों। सच यह है कि आज अपने निहित सियासी स्वार्थों की पूर्ति के लिए संसद को राजनीति का अखाड़ा बना दिया गया है। मूल्यहीन राजनीति की जा रही है।
ये सांसद खुद को अपनी पार्टी के प्रति अधिक और आम जनता के प्रति न के बराबर जवाबदेह मानते हैं। आज संसद का प्रयोग अपने कोर वोटरों को पार्टी का संदेश पहुंचाने के लिए एक साधन के रूप में किया जा रहा है। यह प्रवृत्ति लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। सत्ता और विपक्ष दोनों ही जनप्रतिनिधि होते हैं और दोनों के ऊपर संसद की गरिमा को बनाए रखने की जिम्मेदारी है।
जब विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया और उस पर चर्चा का समय भी तय हो गया है तो विपक्ष का हंगामा समझ से परे हैं। कायदे से इस हंगामे से कुछ हासिल नहीं होने वाला है और यह प्रवृत्ति बेहद खतरनाक है।
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