संपादक की कलम से : बारिश और विकास के दावे

Sandesh Wahak Digital Desk : हल्की बारिश ने यूपी सरकार के विकास के दावों की पोल खोल दी। जलभराव के कारण शहर पानी-पानी हो गए हैं। स्मार्ट सिटी की कथित सुविधाएं दूर तक नजर नहीं आ रही हैं। कूड़े का ढेर, चरमराता जल निकासी सिस्टम, उफनाते नाले और जाम यही शहरों की पहचान बन चुकी है। यह सब तब है जब यूपी के शहरों के विकास के लिए हर साल भारी भरकम रकम खर्च की जाती है और नगर निगम और नगर पालिकाएं कागजों पर सबकुछ दुरुस्त दिखाकर सरकार की आंखों में धूल झोंकने का काम करती हैं।

सवाल यह है कि :-

  • तमाम दावों और वादों के बावजूद शहरों की सूरत संवर क्यों नहीं रही है?
  • स्वच्छता अभियान कूड़े के ढेर पर दम तोड़ता क्यों नजर आता है?
  • आखिर बुनियादी सुविधाओं और शहरों की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए जारी होने वाली धनराशि कहां खर्च हो रही है?
  • नगर निगम और नगरपालिकाएं क्या कर रही हैं?
  • क्या भ्रष्टाचार ने पूरे तंत्र को खोखला कर दिया है?
  • क्या ऐसे ही स्मार्ट सिटी का सपना साकार होगा?
  • क्या बुनियादी सुविधाओं से जूझते शहर में देशी और विदेशी निवेशक निवेश करेंगे?

प्रदेश में कई सरकारें आईं और गईं लेकिन शहरों की सूरत आज तक नहीं सुधरी। नगर निगम और नगरपालिकाएं अपने पुराने ढर्रे पर आज भी चल रही हैं। ये सियासी अखाड़े में तब्दील हो चुकी हैं। इन्हें इस बात की कोई चिंता नहीं है कि शहरवासियों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी उनके पास है। इसके लिए नगर निगम और नगरपालिकाओं को भारी भरकम बजट दिया जाता है। साफ-सफाई से लेकर शहर को व्यवस्थित करने के लिए इनके पास पर्याप्त संसाधन है। अधिकारियों से लेकर कर्मचारियों तक की फौज है।

हल्की बारिश में ही सड़कों पर लगा गंदगी का अंबार

हैरत की बात यह है कि ये संस्थाएं हर बार सबकुछ दुरुस्त करने का दावा जोर-शोर से करती हैं। यह दीगर है कि बारिश इनके दावों की पोल खोल देती है। मसलन, राजधानी लखनऊ का ही हाल देख लीजिए। यहां हल्की बारिश में ही तमाम सड़कों पर जलभराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कूड़ा उठान की व्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है। लिहाजा सड़कों से लेकर गलियों तक में गंदगी का अंबार लगा रहता है।

पुराने लखनऊ की हालत और भी बदतर

पुराने लखनऊ की हालत और भी बदतर है। यहां सामान्य दिनों में भी नालियां बजबजाती है। बारिश के दिनों में नालों के उफनाने से सड़कों में पानी भर जाता है। गंदगी और जलभराव के कारण संक्रामक रोगों का खतरा मंडराता रहता है। यह सब तब है जब लखनऊ को स्मार्ट सिटी बनाने का सपना देखा जा रहा है।

जब लखनऊ का यह हाल है तो प्रदेश के अन्य शहरों के बारे में आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है। साफ है ये सारी अव्यवस्था लापरवाही का नतीजा है। यदि सरकार वाकई शहरों की व्यवस्था दुरुस्त करना चाहती है तो उसे संबंधित विभागों को जवाबदेह बनाना होगा। लापरवाह कर्मियों को चिन्हित कर उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी होगी अन्यथा स्थितियां बद से बदतर होती जाएंगी।

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