सम्पादक की कलम से : एससीओ बैठक के मायने
Sandesh Wahak Digital Desk : शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की शिखर बैठक में सदस्य देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने ऑनलाइन शिरकत की। इस बैठक में आपसी संबंध बढ़ाने, एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करने और आतंकवाद जैसे कई मुद्दों पर चर्चा की गई।
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बैठक में अपने पड़ोसी चीन और पाकिस्तान को आतंकवाद के प्रति दोहरा मापदंड अपनाने पर न केवल खरी-खरी सुनाई बल्कि इसे वैश्विक खतरा बताते हुए इसके खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने की अपील सदस्य देशों से की।
सवाल यह है कि :-
- क्या एससीओ की बैठक में आतंकवाद के खिलाफ अच्छी-अच्छी बातें करने वाले पाकिस्तान और चीन के रवैए में कोई बदलाव आएगा?
- चीन, सदस्य देशों की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करेगा?
- क्या चीन-भारत के बीच सीमा विवाद का कोई हल निकल सकेगा?
- व्यापारिक संबंधों में सदस्य देश किसी नए एजेंडे पर चल सकेंगे?
- क्या शंघाई सहयोग संगठन सदस्य देशों के बीच आपसी सामंजस्य और भाईचारे की भावना पैदा करने में सफल होगा?
शंघाई सहयोग संगठन या शंघाई पैक्ट, चीन के शंघाई में 15 जून 2001 को स्थापित बहुपक्षीय संगठन है। यह एक यूरेशियन राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा गठबंधन है। इसमें आठ सदस्य देश, तीन पर्यवेक्षक और 14 संवाद सहयोगी देश शामिल हैं। भारत को जुलाई 2005 में अस्ताना शिखर सम्मेलन में पर्यवेक्षक का दर्जा दिया गया और 9 जून, 2017 को अस्ताना, कजाकिस्तान में एससीओ शिखर सम्मेलन में पूर्ण सदस्य का दर्जा दिया गया।
अब तक 23 शिखर सम्मेलन
फिलहाल भारत, रूस, पाकिस्तान, चीन, कजाकिस्तान, किर्गिजिस्तान, ताजिकिस्तान व उज्बेकिस्तान संगठन के सदस्य हैं। हालांकि इस संगठन के अब तक 23 शिखर सम्मेलन हो चुके हैं लेकिन यह आपसी विवादों को हल करने में सफल नहीं हुआ है।
हालत यह है कि सदस्य देशों मसलन भारत के साथ चीन-पाकिस्तान से आतंकवाद और सीमा को लेकर विवाद चल रहा है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि दोनों देशों से द्विपक्षीय संबंध तक सामान्य नहीं हैं। इसकी बड़ी वजह चीन और पाकिस्तान की नीतियां हैं। चीन जहां भारत की जमीन पर कब्जा करने की कोशिश करता रहता है वहीं दूसरी ओर वह पाकिस्तान के आतंकियों को संयुक्त राष्ट्र में संरक्षण भी देता है। इसी तरह पाकिस्तान, भारत में आतंकी गतिविधियां संचालित करता है।
जाहिर है इस बैठक का भी कोई नतीजा नहीं निकलने वाला है क्योंकि हर देश के अपने हित हैं और वह उस खांचे से बाहर नहीं आना चाहता है। यह जानते हुए भी आतंकवाद पूरी दुनिया के लिए खतरा है, संगठन के देश एक राय नहीं है। साफ है यदि इस संगठन को व्यवहारिक बनाना है तो सभी देशों को एक-दूसरे की संप्रभुता का सम्मान करना होगा और विवादों को कूटनीतिक स्तर पर जल्द से जल्द हल करना होगा अन्यथा दिखावटी बैठकों का कोई मतलब नहीं होगा।
Also Read : सम्पादक की कलम से : जनहित और सुप्रीम कोर्ट