सम्पादक की कलम से : मोदी-पुतिन वार्ता के निहितार्थ
Sandesh Wahak Digital Desk : रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन व भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच फोन पर यूक्रेन युद्ध, वैग्नर ग्रुप के विद्रोह की कोशिश व आपसी रणनीतिक साझेदारी पर वार्ता हुई। इस दौरान मोदी ने रूसी राष्ट्रपति से यूक्रेन विवाद को युद्ध की जगह कूटनीति और वार्ता से निपटाने की बात कही। हालांकि यह पहली बार नहीं है जब मोदी ने यूक्रेन समस्या का शांतिपूर्ण समाधान निकालने की अपील रूस से की है। वे अंतरराष्ट्रीय मंचों से भी कह चुके हैं कि आज का युग युद्ध का नहीं है।
सवाल यह है कि :-
- अचानक रूसी राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री से फोन पर वार्ता क्यों की?
- क्या पुतिन, भारत-अमेरिका के बीच बढ़ती रक्षा भागीदारी को लेकर चिंतित हैं?
- क्या रूस में निजी सेना वैग्नर ग्रुप के विद्रोह की कोशिशों के बाद पुतिन की साख को धक्का लगा है?
- क्या वे भारत से यूक्रेन युद्ध को लेकर नैतिक समर्थन चाहते हैं?
- क्या आर्थिक रूप से कमजोर रूस, भारत से कुछ अन्य उम्मीद पाले है?
पिछले सवा साल से यूक्रेन और रूस के बीच जंग जारी है। रूस के हमलों से यूक्रेन लगभग तबाह हो चुका है। यहां से लाखों लोग पलायन कर दूसरे देशों में जा चुके हैं। खेती-किसानी और अंतरराष्ट्रीय व्यापार पूरी तरह ठप पड़ चुका है। युद्ध का खामियाजा रूस को भी भुगतना पड़ रहा है। अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगा रखे हैं।
अमेरिका समेत यूरोपीय देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाया
इसके कारण रूस की आर्थिक हालत चरमरा चुकी है। लंबे खींचते युद्ध के कारण रूसी जनता में भी असंतोष पैदा हो गया है। रही-सही कसर यूक्रेन में युद्ध कर रही पुतिन की निजी सेना वैग्नर ग्रुप ने विद्रोह की कोशिश कर निकाल दी। हालांकि विद्रोह नहीं हुआ और निजी सेना अपनी बैरकों में लौट गयी लेकिन इससे पुतिन के युद्ध को जारी रखने की नीति पर सवाल उठा दिए हैं। भले ही पुतिन इसे अमेरिकी खुफिया एजेंसी सीआईए की करतूत बता रहे हो लेकिन वे अंदर से पूरी तरह हिल गए हैं।
इसी बीच अमेरिका और भारत के बीच बढ़ती रक्षा भागीदारी ने भी रूस को चौकन्ना कर दिया है। हालांकि रूस और भारत की मित्रता प्रगाढ़ है और पुतिन भी जानते हैं कि इसमें अन्य देशोंके बढ़ते संबंधों का कोई असर नहीं पड़ेगा, बावजूद इसके वे भारत के साथ रक्षा साझेदारी बढ़ाने पर जोर देते रहे हैं। भारत से रक्षा सौदे बढ़ाकर रूस अपनी बिगड़ती हालत में सुधार कर सकता है।
यूक्रेन युद्ध के बाद भारत ने रूस से तेल का खूब आयात किया है, इससे रूस को आर्थिक ताकत मिली। वहीं भारत भी संबंधों का ध्यान रखते हुए कभी भी रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर पुतिन की नीति पर सवाल नहीं उठाए न ही कोई टिप्पणी की। हालांकि कूटनीति तौर पर पीएम मोदी रूस को हमेशा वार्ता का संदेश देते दिखे। जाहिर है पुतिन की वार्ता के पीछे रूस में चल रही गतिविधियों की जानकारी देने के साथ पीएम मोदी से इस विकट परिस्थिति में सहयोग की अपेक्षा की भी है लेकिन पुतिन को भी समझना होगा कि युद्ध नहीं वार्ता ही समस्या का एकमात्र समाधान है।
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