सम्पादक की कलम से : नई टाउनशिप नीति और विकास

Sandesh Wahak Digital Desk : उत्तर प्रदेश सरकार ने नई टाउनशिप नीति को हरी झंडी दिखा दी है। इससे अब छोटे शहरों में भी टाउनशिप विकसित हो सकेगी। दो लाख तक की आबादी वाले नगरों में टाउनशिप के लिए 25 की जगह 12.50 एकड़ जमीन की जरूरत होगी। इसके अलावा सरकार ने विकासकर्ता और विकास प्राधिकरण की जिम्मेदारी भी तय कर दी है तथा नियमों का उल्लंघन करने पर जुर्माने व संपत्ति जब्ती का प्रावधान किया है। प्रदेश सरकार को उम्मीद है कि इससे आम आदमी को बेहतर सुविधाएं मिल सकेंगी।

सवाल यह है कि : –

  • क्या योजना को लागू करने और इसकी निगरानी करने के लिए सरकार कोई तंत्र विकिसत करेंगी?
  • टाउनशिप के नाम पर पूरे प्रदेश में निजी विकासकर्ताओं द्वारा किए जा रहे फर्जीवाड़े के खेल को रोका जा सकेगा?
  • क्या विकास प्राधिकरण, नगर निगम और नगर पालिकाएं बसाई गई कॉलोनियों में बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने में सफल हो सकी हैं?
  • सरकारी कर्मियों और विकासकर्ताओं की साठ-गांठ को रोकने के लिए कोई व्यवस्था की गई है?
  • इस बात की क्या गारंटी है कि टाउनशिप के नाम पर फजीवाड़े और अपने चहेतों को लाभ पहुंचाने का खेल नहीं होगा?

किसी भी प्रदेश का विकास उसके नागरिकों को मिलने वाली मूलभूत सुविधाओं से आंका जाता है। यूपी का मूल्यांकन भी इन्हीं मापदंडों पर किया जाता है। सुविधाओं से लैस टाउनशिप का कॉन्सेप्ट यहां भी लागू है लेकिन हकीकत इसके ठीक उलट है। शहरों में विकास प्राधिकरण और आवास विकास को कॉलोनियों को विकसित करने की जिम्मेदारी दी गई है। इन कॉलोनियों के निर्माण के बाद यहां नगर निगम और नगर पालिकाएं बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराती हैं। इस तरह आम शहरी के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश की जाती है।

विकास प्राधिकरणों में भी दावे के विपरीत सुविधाएं कम

इसके अलावा निजी विकासकर्ता भी टाउनशिप विकसित करने में जुटे हैं और इनकी संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। वे जनता को तमाम सुविधाएं उपलब्ध कराने का दावा करते हैं और जब व्यक्ति यहां प्लैट या मकान ले लेता है तो उसकी हालत खराब हो जाती है। विकासकर्ता द्वारा किए गए दावे जमीन पर अधिकांशत: नहीं दिखते हैं और वह अपने को ठगा महसूस करता है। यही नहीं विकास प्राधिकरणों में भी दावे के विपरीत सुविधाएं कम होती हैं। यह खेल आज भी जारी है।

इसके कारण कई बार मामला अदालत तक पहुंच जाता है और विकासकर्ता और विकास प्राधिकरण दोनों अपना पल्ला झाडऩे की कोशिश करते नजर आते हैं। ऐसे में सरकार की नई टाउनशिप नीति भले आम आदमी की भलाई के उद्देश्य से लागू की गई हो, यह तभी सफल होगी जब इस पर निगरानी करने के लिए अलग से तंत्र बनाया जाए और दावे के मुताबिक सुविधाएं उपलब्ध न कराने वाले निजी विकासकर्ता और विकास प्राधिकरण दोनों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की व्यवस्था की जाए अन्यथा यह भविष्य में दम तोड़ती नजर आएगी।

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