Manipur Violence: सेना ने मणिपुर के लोगों से की अपील, कहा- हमारी सहायता करें
बीते एक महीने से भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में हिंसा (Manipur Violence) फैली हुई है, 100 से ज्यादा लोग अपनी जान भी गवां चुके हैं।

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Sandesh Wahak Digital Desk: बीते एक महीने से भारत के पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में हिंसा (Manipur Violence) फैली हुई है, 100 से ज्यादा लोग अपनी जान भी गवां चुके हैं। राज्य सरकार, केंद्र सरकार और विपक्ष के साथ सर्वदलीय बैठक भी हो चुकी है लेकिन अभी भी समुचित समाधान नहीं निकला है। वहीं सेना ने लोगों से मणिपुर में शांति बहाल (Peace restored in Manipur) करने में उनकी मदद करने की अपील की है। सेना ने प्रभावित लोगों से आग्रह करते हुए कहा कि हिंसा प्रभावित इस पूर्वोत्तर राज्य में महिला कार्यकर्ता जानबूझकर मार्गों को अवरुद्ध कर रही हैं और सुरक्षा बलों के अभियान में बाधा डाल रही हैं। इस तरह का ‘‘अनुचित हस्तक्षेप’’ सुरक्षा बलों को समय पर जरूरी कार्रवाई करने से रोकता है।
यह बयान इंफाल ईस्ट जिले के इथम गांव में सेना और महिलाओं के नेतृत्व वाली भीड़ के बीच गतिरोध के दो दिन बाद आया है, जिसके कारण सुरक्षा बलों को वहां छिपे 12 उग्रवादियों को जाने देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। ‘स्पीयर्स कोर’ ने ट्वीट किया, मणिपुर में महिला कार्यकर्ता जानबूझकर मार्गों को अवरुद्ध कर रही हैं और सुरक्षा बलों के अभियान में बाधा डाल रही हैं। इस तरह का अनुचित हस्तक्षेप गंभीर परिस्थितियों के दौरान जान-माल का नुकसान रोकने के लिए सुरक्षा बलों को समय पर जरूरी कार्रवाई करने से रोकता है।
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मणिपुर की मदद करने में हमारी सहायता करें- सेना
उसने कहा, भारतीय सेना सभी वर्गों से शांति बहाल करने के हमारे प्रयासों का समर्थन करने की अपील करती है। मणिपुर की मदद करने में हमारी सहायता करें। अधिकारियों ने बताया था कि इंफाल ईस्ट के इथम गांव में महिलाओं के नेतृत्व वाली भीड़ और सुरक्षा बलों के बीच शनिवार को गतिरोध के बाद सेना ने नागरिकों की जान जोखिम में न डालने का ‘‘परिपक्व फैसला’’ किया और बरामद किए गए हथियारों व गोला-बारूद के साथ वहां से हट गए। इससे ही यह गतिरोध खत्म हो पाया।
गौरतलब है कि मणिपुर (Manipur) में मेइती और कुकी समुदाय के बीच मई की शुरुआत में भड़की जातीय हिंसा में 100 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है। मणिपुर में अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मेइती समुदाय की मांग के विरोध में तीन मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के बाद झड़पें शुरू हुई थीं।