संपादक की कलम: विपक्षी एकता में पेंच

क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस को न केवल हाशिए में डालना चाहते हैं बल्कि विपक्षी एकता के नाम पर उसका सियासी शोषण करने का एजेंडा चला रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस क्या कदम उठाती है।

Sandesh Wahak Digital Desk: बिहार की राजधानी पटना में पूरे तामझाम के साथ भाजपा विरोधी करीब एक दर्जन से अधिक विपक्षी दलों की बैठक हुई। प्रेसवार्ता की गई और इस पूरी कवायद के सूत्रधार रहे सीएम नीतीश कुमार ने ऐलान किया कि विपक्ष एकजुट होकर लोकसभा चुनाव लड़ेगा लेकिन बैठक में और सार्वजनिक तौर पर जो कुछ हुआ उसने विपक्षी एकता की पोल खोल दी। ममता ने कांग्रेस और उमर अब्दुल्ला ने अरविंद केजरीवाल को खरी-खरी सुना दी।

दूसरी ओर केजरीवाल ने भी अपना रुख साफ कर दिया कि वे विपक्ष का साथ तभी देंगे जब केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस व अन्य दल उनका समर्थन करेंगे। हालांकि पर्दे के पीछे भी कई सवाल है, जो विपक्षी एकता को जमीन पर उतारने में बड़ा रोड़ा साबित होंगे।

सवाल यह है कि…

  • क्या विपक्षी एकता की यह कवायद केवल बैठकों और प्रेस वार्ता तक सीमित रह जाएगी या इसका कोई नतीजा निकलेगा?
  • क्या क्षेत्रीय दलों के मुखिया अपनी-अपनी महत्वाकांक्षाओं को तिलांजलि दे पाएंगे?
  • क्या लालू ने राहुल का बाराती बनने की बात कह कर संकेतों में उनके प्रधानमंत्री पद की उम्मीदवारी को स्वीकार कर लिया है?
  • क्या कांग्रेस, विभिन्न राज्यों में सत्ताधारी दलों से विभिन्न मुद्दों पर विरोध करने की अपनी रणनीति को छोड़ सकेगी?
  • क्या क्षेत्रीय क्षत्रप कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकार कर पाएंगे?

क्षेत्रियों पार्टियों को कांग्रेस से हैं उम्मीदें

विपक्षी एकता के नाम पर क्षेत्रीय दल कांग्रेस से तमाम उम्मीदें पाले हुए हैं। बैठक में यह बात ममता बनर्जी ने बड़ी साफगोई से कही भी। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में कांग्रेस उनकी सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन बंद कर दे। केंद्र में साथ और राज्य में विरोध की नीति एक साथ नहीं चल सकती। आम आदमी पार्टी के संयोजक केजरीवाल से केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ कांग्रेस ने कोई वादा नहीं किया। लिहाजा वे प्रेसवार्ता छोडक़र दिल्ली रवाना हो गए। वहीं तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन ने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी से गठबंधन किया जाना चाहिए। साफ है सीटों के बंटवारे में वे कांग्रेस से बड़ा दिल दिखाने की बात कर रहे हैं।

आखिर विपक्षी एकता की कैसे बनेगी बात?

जाहिर है, विपक्षी एकता की धुरी तभी साकार होगी जब कांग्रेस विभिन्न राज्यों में मजबूत या सत्ताधारी दलों को अपने हिस्से की अधिकांश सीटें दे दे। ऐसा करके कांग्रेस अपने पैर पर खुद कुल्हाड़ी क्यों मारेगी? वह कभी नहीं चाहेगी कि वह क्षेत्रीय दलों की बैसाखी के सहारे रहे।

वहीं यदि कांग्रेस पश्चिमी बंगाल, दिल्ली, पंजाब, महाराष्ट्र, जम्मू-कश्मीर, तमिलनाडु, बिहार और उत्तर प्रदेश में प्रमुख विपक्षी दलों को लोकसभा चुनाव की अधिकांश सीटें सौंप देती है तो बकौल कांग्रेस नेता प्रमोद कृष्णम, फिर कांग्रेस के पास बचेगा क्या?

कांग्रेस का अगला कदम होगा बेहद अहम

दरअसल, क्षेत्रीय दल अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस को न केवल हाशिए में डालना चाहते हैं बल्कि विपक्षी एकता के नाम पर उसका सियासी शोषण करने का एजेंडा चला रहे हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस क्या कदम उठाती है।

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